विनय धर्म का मूल है: राष्ट्र संत डा.मणिभद्र महाराज
आगरा। राष्ट्र संत जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज ने कहा है कि विनय धर्म का मूल है। पूरा धर्म उसी पर आधारित है। जो व्यक्ति विनम्र नहीं होता, उसका हर जगह अपमान होता है। उससे सभी लोग घृणा करते हैं। विनम्र व्यक्ति को भगवान भी पसंद करते हैं।
न्यू राजामंडी के जैन स्थानक में जैन संतों का वर्षावास हो रहा है, जिसके तहत मंगलवार से उत्तराध्ययन सूत्र की मूल वाचनी शुरू हुई, जिसमें भगवान महावीर के जीवन के अंतिम प्रहर के प्रवचन और उनके जीवन का सार है।
उत्तराध्ययन सूत्र जैन धर्म की गीता है। वैदिक परम्परा में जो स्थान गीता का है, इस्लाम परम्परा में जो स्थान कुरान का है, ईसाई मत में जो स्थान बाइबल का है, बौद्ध परम्परा में जो स्थान धम्मपद का है, वहीं स्थान जैन धर्म में उत्तराध्ययन सूत्र का है। इस सूत्र में जीवन के आदिकाल से अन्तकाल तक, विनय से लेकर जीव-अजीव का भेदकर मोक्ष जाने तक का सरल सुत्बोध शैली में वर्णन किया गया है। इसका एक-एक सूत्र जीवन में उतारने लायक है। सभी 36 सूत्र संजीवनी बूटी है। संजीवनी जैसे सम्पूर्ण रोगों का विनाश कर सकती है, ऐसे ही विकारों के शमन के लिए उत्तराध्ययन संजीवनी है।
भगवान महावीर की इस अनमोल वाणी उत्तराध्ययन सूत्र के प्रथम दिन विनय पर चर्चा की गई। जैन संत ने कहा कि हमारी काया, हमारी वाणी ही हमारी आत्मा है। आत्मा के बिना मन, काया, वचन का कोई अस्तित्व नहीं है। क्रोध, मोह, माया, लोभ भी आत्मा के बिना अधूरी है। भगवान महावीर कहते हैं कि आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानना चाहिए।
जैन मुनि का कहना था कि धर्म का शुभारंभ विनय से ही होता है। अगर व्यक्ति में विनम्रता नहीं है, उसे झुकने की कला नहीं आती तो वह जैन धर्म का अनुयायी नहीं हो सकता। क्रोध, मोह, माया, लोभ, अहंकार पर दमन करना वाला ही साधक होता है, लेकिन इसके लिए पुरुषार्थ करना होता है। एक बार सफलता मिल गई तो व्यक्ति के लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाते हैं। इस धरती पर तो वह सम्मानित होता ही है, परलोक में भी पूजनीय होता है, लेकिन विनय किसी से जबर्दस्ती नहीं कराई जा सकती।
ज्ञान, विनय, दर्शन, चारित्र्य, मन, वचन, काया, लोकोपाचार की चर्चा करते हुए राष्ट्र संत ने कहा कि यह धर्म के मूल है। इन्हें हमें समय-समय पर समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब हमें कभी अच्छे काम करने का मौका मिले, तो भगवान को धन्यवाद देना चाहिए। जो लोग धर्म की तन, मन धन से सेवा करते हैं, उनको प्रोत्साहित करना चाहिए।मंगलवार की धर्म सभा में नरेश चप्लावत, राजेश सकलेचा, संजय सुराना, विवेक कुमार जैन, नरेंद्र सिंह जैन, अतिन जैन, राजीव चप्लावत, महावीर प्रसाद जैन, अजय सकलेचा,आदि भक्तजन उपस्थित थे।
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