प्रवचन: जो आत्मा में रमण करता है, वही ब्रह्मचारी- जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज

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आगरा ।राष्ट्र संत नेपाल केसरी डा.मणिभद्र महाराज ने कहा कि ब्रह्मचारी का अर्थ लोग सही नहीं लगाते। ब्रह्म का अर्थ होता है आत्मा और चारी अर्थ है रमण करने वाला। यानि जो आत्मा में रमण करे, वही ब्रह्मचारी है। जबकि कुछ लोग अविवाहित रह कर साधना करने वाले को ब्रह्मचारी कहते हैं।

महावीर भवन, न्यू राजा मंडी में प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने कहा कि ब्रह्मचारी के जीवन में कभी दुख नहीं होता। क्योंकि ब्रह्मचारी को पता है कि दूसरों का मूल्यांकन करने पर ही दुख होता है। आत्मावलोकन करने से ही दुख नहीं होता। वह केवल अपनी ओर देखता है। दूसरे की ओर देखना उसका काम नहीं, इसलिए वह दुखी नहीं रहता। हमारी कमी है कि हम दूसरों के बारे में 24 घंटे सोचते हैं, जिससे राग-द्वेष बढ़ता है, जबकि अपने बारे में कुछ नहीं सोचते। जैन मुनि ने कहा कि हमें लगता है सामने वाला जो सोच रहा है, वह हमारे बारे में बात कर रहा होगा। हमें लगता है कि वह हमारी निंदा करता है। हमारे शरीर में पांच इंद्रीय हैं, उनकी पवित्रता के बारे में हमें सोचना चाहिए, लेकिन एसा नहीं करते। इसलिए ज्ञानीजन कहते हैं कि तुम किसी की परवाह मत करो। कोई तुम्हारे में बारे में क्या सोच रहा है, मत सोचो। केवल सभी का अच्छा करते चलो, जीवन का उद्धार हो जाएगा।

जैन मुनि ने कहा कि धर्म करना बहुत कठिन है। जिस व्यक्ति ने शरीर को पवित्र बना लिया, वह भी सबसे बड़ा धर्म कर्म है। उन्होंने कहा कि धर्म की जय बोलना तो आसान है, लेकिन साधु का मार्ग जानना, उस पर चलना बहुत कठिन है। संतों की शरण में आ कर धर्म को जानें, मानें और उस पथ के अनुगामी बनें। हर व्यक्ति को सजग रहना होगा। सभी परंपराओं को जानना होगा। तभी मानव जीवन का उत्थान होगा। बच्चों को भारतीय संस्कृति, परंपराओं के बारे में बताएं। तभी वह शाश्वत हो सकेगी।सोमवार की धर्मसभा के बाद मानव मिलन परिवार आगरा द्वारा डॉक्टर मणिभद्र जी की प्रेरणा से जीव दया कार्यक्रम के अंतर्गत 4 बकरों को खरीदकर रामलाल वृद्ध आश्रम को आजीवन सेवा के लिए प्रदान किया गया।

इसमें मानव मिलन परिवार के अध्यक्ष राजीव चपलावत, सौरभ जैन ,अमित जैन, सुलेखा सुराना, पूजा जैन, अर्पित जैन, आदेश बुरड़, राजेश सकलेचा, सचिन जैन, अशोक जैन गुल्लू, सुमित्रा सुराना, पद्मा सुराना आदि उपस्थित थे।

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