हिमालय से भी 500 करोड़ साल पुरानी हैं झारखंड स्थित राजमहल की पहाड़ियां

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झारखंड के एक पुरातत्वविद् पं. अनूप कुमार वाजपेयी ने दावा किया है कि राजमहल की पहाड़ियां में कई रहस्य छिपे है। दुमका जिले की महाबला पहाड़ियों पर आदि मानव के पैरों की छाप, हिरण के खुर, गिलहरी और मछली के जीवाश्म वाले चट्टान हैं। उन्होंने इन पदछापों की उम्र 30 करोड़ साल से भी अधिक होने की संभावना जताई है। इसके साथ ही यह दावा भी किया है कि आदि मानवों की लंबाई 10 से 14 फीट तक रही होगी।

पं. अनूप वाजपेयी के शोध आधारित दावे के बाद झारखंड सरकार के पथ निर्माण विभाग ने यहां दो बोर्ड लगाए हैं, जिसमें यहां जीवाश्म होने की जानकारी दी गई है। वाजपेयी ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मिलकर उन्हें अपने अध्ययन निष्कर्षों से अवगत कराया है। उन्होंने अपने अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर एक पुस्तक भी लिखी है, जिसे दिल्ली की एक प्रकाशन संस्था ने छापा है। इसके बाद जीवाश्मों के अध्ययन में रुचि रखने वाले शोधार्थियों के अलावा पर्यटक इन पदचिन्हों को देखने पहुंच रहे हैं।

चट्टान के अवशेष में आदि मानव के पदचिह्न

जिस चट्टान पर ये अवशेष पाये गये हैं, वह जरमुंडी प्रखंड की झनकपुर पंचायत के बरमसिया में घाघाजोर नदी के किनारे स्थित हैं। बकौल वाजपेयी, पदचिह्नों को देखकर प्रतीत होता है कि आदि मानव कभी इस स्थल के आसपास रहे होंगे इसलिए उनके कदमों के निशान इस जगह पर बने। प्रलय के कारण सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन जीवाश्म अब भी राजमहल की पहाड़ियों में बहुतायत में मौजूद हैं।

राजमहल की पहाड़ियों में नौ पदचिह्न मिले

वाजपेयी ने राजमहल की पहाड़ियों की श्रृंखला से जुड़ी महाबला पहाड़ी में ऐसे नौ पदचिन्हों की तलाश की है। इसके अलावा उन्होंने गिलहरी और मछली की आकृति, हिरण के खुर जैसे जीवाश्म की तलाश करने का भी दावा किया है। ये आकृतियां काफी बड़ी हैं और इसके आधार पर उनका अनुमान है कि उस समय के इंसान व अन्य जीव आकृति में भी बड़े रहे होंगे। कथित आदि मानव के पदचिन्हों के दो डग के बीच की दूरी डेढ़ से पौने दो मीटर तक है। पैर का अंगूठा करीब दो इंच से अधिक मोटा है। पंजा करीब एक फीट का है। इसी के आधार पर वह उस दौर के इंसानों की ऊंचाई 10 से 14 फीट होने की संभावना जताते हैं। उनका कहना है कि ये जीवाश्म कार्बोनिफेरस एरा के हो सकते हैं।

2600 वर्ग किलोमीटर में फैली हैं राजमहल की पहाड़ियां

26 सौ वर्ग किलोमीटर में राजमहल की पहाड़ियां फैली है। जुरासिक काल के फॉसिल्स सबसे पहले भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान यानी इंडियन पैलियोबॉटनी के जनक प्रो. बीरबल साहनी ने तलाशे थे। वे 1935 से 1945 के बीच फॉसिल्स की तलाश और उनपर रिसर्च मेंयहां दर्जनों बार आये थे। पहाड़ियों के बीच काफी लंबा वक्त गुजारा था। उन्होंने जो फॉसिल्स तलाशे, उनके कई नमूने लखनऊ स्थित बीरबल साहनी संस्थान में संरक्षित करके रखे गये हैं, जो दुनिया भर के भूगर्भशास्त्रियों के लिए रिसर्च का विषय है। बीरबल साहनी के महत्वपूर्ण रिसर्च को देखते हुए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने राजमहल की पहाड़ियों को भूवैज्ञानिक विरासत स्थल का दर्जा दे रखा है।

राजमहल की पहाड़ियों और आस-पास के इलाके में मौजूद फॉसिल्स दुनिया भर में जुरासिक काल पर रिसर्च कर रहे विज्ञानियों की दिलचस्पी का केंद्र हैं। देश-विदेश की कई टीमें सालों भर यहां अध्ययन के लिए पहुंचती रहती हैं। कुछ साल पहले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) से जुड़े वैज्ञानिकों को यहां के कटघर गांव में अंडानुमा जीवाश्म मिले थे, जो रेप्टाइल्स की तरह थे। साहिबगंज, सोनझाड़ी और पाकुड़ जिले के महाराजपुर, तारपहाड़, गरमी पहाड़ बड़हारवा इलाकों में भी बड़ी संख्या में फॉसिल्स मिल चुके हैं।

जुरासिक काल के पेड़ों की पत्तियों की छाप मिली

नेशनल बॉटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट की टीम ने करीब ढाई साल पहले यहां दूधकोल नामक स्थान पर फॉसिल्स की तलाश की थी। उनपर जुरासिक काल के पेड़ों की पत्तियों की छाप (लीफ इंप्रेशन) है। इसके 150 से लेकर 200 मिलियन वर्ष पुराने होने का अनुमान है। झारखंड सरकार ने फॉसिल्स को संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। साहेबगंज के मंडरो में सरकार ने 16 करोड़ की लागत से फॉसिल्स पार्क का निर्माण कराया है।

Compiled: up18 News