संस्कृत भाषा में आत्मसात किया गया शब्द चाय

Life Style

यदि आप किसी को चाय अथवा कॉफी का आग्रह करते हैं तो संस्कृत भाषा में इस प्रकार पूछ सकते हैं :—

भवान् काफीं पिबति उत चायम् ? (आप कॉफी पीना चाहेंगे अथवा चाय?)

कोई आप से यह पूछ ले तो आप यह उत्तर दे सकते हैं

— मह्यं किञ्चित् चायं कुरु (मुझे थोड़ी सी चाय दें!)

चाय में शक्कर नहीं चाहिए तो कहें :—

— शर्करां विना एक चषकमितं चायपानं कृपया ददाति वा? (क्या आप मुझे बिना चीनी की एक कप चाय देंगे?)

चाय में दूध भी चाहिए तो कहिए :—

— शोधिने चायकषाये किञ्चित्क्षीरं कृपया योजयतु। (कृपया उबाली हुई चाय में थोड़ा दूध मिलाएँ।)

चायकषाये

वैसे चाय अथवा टी का अर्थ चाय के पौधे कैमेलिया साइनेंसिस (Camellia sinensis) की पत्तियों से बनी चाय के अर्थ तक सीमित नहीं है। चाय के अर्थ का विस्तार होकर किसी भी प्रकार की सुगन्धित औषधियों, पुष्पों, पत्तियों, शाखाओं, आदि को उबलते पानी में कुछ समय रख कर बनाए गए पेय के अर्थ में हो गया है। जैसे अतिगन्धा (लेमन-ग्रास) एन्ड्रोपोगोन शेनन्थेस (Andropogon Schaenunthes) के पेय को भी चाय कहा जाता है। इस प्रकार के पेय को क्वाथ, काढ़ा, कषाय, आदि का नाम दिया जा सकता है।

हिन्दी तो विदेशज शब्दों को आत्मसात करने में संस्कृत से भी कहीं अधिक उदार है। अतः हिन्दी में भी चाय को चाय ही कहते हैं।

वैसे मेरे पिताजी चाय के लिए काढ़ा शब्द का प्रयोग किया करते थे!

और अन्त में आपके लिए सुखद आश्चर्य :—

वैसे संस्कृत में चाय शब्द पहले से है।

चाय, ऋ ञ निशामे । अर्च्चे । इति कविकल्पद्रुमः ॥ (भ्वां-उभं-सकं-सेट् ।) ऋ, अचचायत् । ञ, चायति चायते । निशाम इति चाक्षुषज्ञानम् । तं पर्व्वतीयाः प्रमदाश्चचायिरे । इति माघः । इति दुर्गादासः ॥

— कल्पद्रुम

इस शब्द के अर्थ हैं – अर्चना करना, सम्मान करना, आराधना करना, जानना, भेद करना, समझना आदि। और जिसका एक बार चाय से परिचय हो जाता है वह चाय की चाय ही करता है। और चाव से चाह भी करने लगता है।

– अरविन्द व्यास