चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों की ओर से किए जाने वाले लोकलुभावन वादों यानी फ़्री बी पर रोक लगाने को लेकर सख़्ती दिखाई है. शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि ये एक गंभीर मुद्दा है और चुनाव आयोग और सरकार ये नहीं कह सकते कि वो इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनावी अभियानों के समय राजनीतिक पार्टियों की ओर से किए जाने वाले इन लोकलुभावन वादों के कल्चर को रोकने के लिए एक शीर्ष निकाय बनना चाहिए.
इसमें नीति आयोग, वित्त आयोग, सत्ताधारी और विपक्षी पार्टी, आरबीआई और अन्य संबंधित पक्षों के प्रतिनिधियों की राय को शामिल किया जाना चाहिए.
अदालत ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल और याचिकाकर्ता से कहा है कि वो सात दिनों में बताएँ कि इस विशेषज्ञ निकाय का गठन कैसे होगा.
चुनावों में मुफ्त की घोषणा वाले वादे के ख़िलाफ़ अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की है. मामले में अगले सप्ताह फिर सुनवाई होगी.
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीते महीने बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे उद्घाटन के दौरान ये कहा था कि देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है जो कि देश के लिए बहुत ही घातक है. उन्होंने कहा कि इस रेवड़ी कल्चर से लोगों को बहुत सावधान रहना है.
-एजेंसी