Operation Bayonet: कैसे एक-एक आतंकियों को मोसाद की टीम ने मारा…

Cover Story

5 सितंबर 1972 को फिलिस्तीन के आतंकियों ने म्यूनिख के ओलिंपिक गांव पर हमला किया। उनके निशाने पर इजरायल की ओलिंपिक टीम थी। आतंकियों ने इजरायल की ओलिंपिक टीम के 11 सदस्यों की हत्या कर दी। इस घटना के पीछे फिलिस्तीन के 8 आतंकियों का हाथ था। उससे बदला लेने के लिए इजरायल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मीर ने एक ऑपरेशन को मंजूरी दी। उस Operation का नाम था Operation रॉथ ऑफ गॉड। उसे Operation Bayonet के नाम से भी जाना जाता है।

यह Operation 20 सालों से ज्यादा समय तक चला जिस दौरान मोसाद की टीम ने चुन-चुनकर आतंकियों को मारा। स्टीवन स्पीलबर्ग की 2005 में आई फिल्म म्यूनिख इस ऑपरेशन पर आधारित है। आज हम आपको बताएंगे कि कैसे एक-एक आतंकियों को मोसाद की टीम ने मारा…

पहला बदला

मोसाद की टीम ने पहला बदला 16 अक्टूबर 1972 को लिया। इजरायली एजेंटों का पहला शिकार था अब्दुल वाइल जैतर। फिलिस्तीन का रहने वाला जैतर पेशे से अनुवादक था और उन दिनों रोम में रह रहा था। जैसे ही जैतर रात का खाना खाकर लौटा, पहले से मौजूदा इजरायल के दो एजेंटों ने उसे गोलियों से भून दिया।

डॉ. महमूद हमशरी

मोसाद का दूसरा निशाना था डॉ. महमूद हमशरी। वह फ्रांस के अंदर पीएलओ (फिलिस्तीन लिब्रेशन ऑर्गनाइजेशन) का प्रतिनिधि था। मोसाद की एक एजेंट ने पत्रकार बनकर हमशरी को अपने जाल में फंसाया। उस एजेंट ने हमशरी को पैरिस स्थित उसके अपार्टमेंट से बाहर बुलाया। जब हमशरी बाहर था तो मोसाद की एक टीम उसके अपार्टमेंट में घुसी और एक डेस्क टेलीफोन के नीचे बम लगा दिया। 8 दिसंबर 1972 को ‘पत्रकार’ ने हमशरी को फोन किया। फोन हमशरी ने उठाया जिससे पुष्टि हो गई कि वह कमरे में ही मौजूद है। मोसाद की टीम ने टेलिफोन के माध्यम से एक सिगनल भेजा और बम फट गया। इस हमले में हमशरी की मौत नहीं हुई लेकिन वह बुरी तरह घायल हो गया और करीब एक महीने बाद उसकी मौत हो गई।

सबसे अहम मिशन

अगले कुछ महीनों के अंदर चार अन्य संदिग्ध मारे गए। उनके नाम बासिल अल कुबैसी, हुसैन अब्दुल चिर, जैद मुकासी और मोहम्मद बौदिया थे। रॉथ ऑफ गॉड का सबसे अहम मिशन अप्रैल 1973 में अंजाम दिया गया।

दरअसल, मोसाद की लिस्ट में शामिल ज्यादातर लोग लेबनान में रहते थे जहां उनकी सुरक्षा का जबर्दस्त बंदोबस्त था। उनलोगों की हत्या के लिए Operation रॉथ ऑफ गॉड के हिस्से के तौर पर एक और ऑपरेशन लॉन्च किया गया। उसका नाम था ऑपरेशन स्प्रिंग ऑफ यूथ। 9 अप्रैल 1973 की रात में इजरायली टीम ने Operation को अंजाम दिया। कमांडो को पानी और जमीन के रास्ते लेबनान की राजधानी बेरूत पहुंचाया गया। इस मुहमि पर जाने वाली टीम में एहुद बराक भी शामिल थो जो बाद में इजरायल के प्रधानमंत्री बने। शहर में मोसाद के पहले से मौजूद एजेंट से टीम ने वहां पहुंचकर संपर्क किया। इजरायल के कमाडों की कई टीमों ने शहर में कई जगह छापे मारे और इजरायल के पैराट्रूपर के एक दस्ते ने पीएफएलपी (पॉप्युलर फ्रंट फॉर लिब्रेशन ऑफ फिलिस्तीन) के हेडक्वॉटर पर हमला किया। मुख्य दल ने मोहम्मद यूसुफ अल नज्जर, कमल अदवान और कमल नासिर को मार गिराया।

मोसाद की चूक

म्यूनिख हमले के गुनाहगारों को निशाना बनाने की चक्कर में मोसाद ने एक चूक कर दी। मोसाद के एजेंट ने एक निर्दोष की हत्या कर दी। कहानी कुछ इस तरह है। म्यूनिख हत्या के करीब एक महीने बाद मोसाद को खुफिया जानकारी मिली। मोसाद को पूरा यकीन हो गया कि हमले का मास्टरमाइंड अली हसन सलामत नॉर्वे के एक शहर लिलेहैमर में रह रहा है। 21 जुलाई 1973 को मोसाद के एजेंटों ने हमला किया और गलती से मोरक्को के एक वेटर अहमद बौचिकी की हत्या कर दी। उसका म्यूनिख हमले और ब्लैक सेप्टेम्बर से कुछ लेना-देना नहीं था। नॉर्वे की पुलिस ने मोसाद के छह एजेंटों को गिरफ्तार कर लिया। उनमें दो महिला एजेंट भी शामिल थीं। टीम लीडर माइक हरारी समेत कुछ एजेंट्स बच निकलने में कामयाब हुए थे। मोसाद का मानना है कि सलामत ने उनको चकमा दिया था। नॉर्वे पुलिस की जांच में यूरोप भर में फैसले मोसाद के एजेंटों का पता चला। इसके बाद इजरायल पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव पड़ा और कुछ समय के लिए ऑपरेशन को टाल दिया।

मास्टरमाइंड अली हसन सलामत की हत्या

पांच साल के बाद फिर से इजरायल ने ऑपरेशन को शुरू किया। मोसाद ने अली हसन सलामत की तलाश तेज कर दी। वह रेड प्रिंस के उपनाम से जाना जाता था।

साल 1978 के आखिरी महीनों में मोसाद ने पता लगा लिया कि सलामत बेरूत में रह रहा है। मोसाद की एक एजेंट एरिका मैरी चैम्बर्स लेबनान में ब्रिटिश पासपोर्ट पर पहुंची। एरिका ने उस गली में ही एक कमरा किराये पर लिया जिस होकर सलामत बार-बार आता जाता था।

इसके बाद मोसाद के दो और एजेंट पहुंच गए। एजेंटों के पहुंचने के कुछ समय बाद गली में एक कार खड़ी कर दी गई। कार में विस्फोटक सामग्री भरी थी। कार को ऐसी जगह पर खड़ा किया गया था जहां से वह रूम में रह रहे मोसाद के एजेंट को नजर आ सके। 22 जनवरी 1979 को जब सलामत और उसके अंगरक्षक गली में कार से आए तो मोसाद के एजेंट ने रेडियो डिवाइस से उस कार को उड़ा दिया जिसमें विस्फोटक था। पांच नाकाम प्रयासों के बाद आखिरी मोसाद ने सलामत को ठिकाने लगा ही दिया।

-एजेंसियां