प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट से सरकार को नोटिस, दो हफ्तों में मांगा जवाब

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा समय मांगे जाने के बाद मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति रवींद्र एस भट की पीठ ने केंद्र को याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया। मेहता के द्वारा जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय और मांगे जाने पर कोर्ट ने यह आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने इसी तरह की अन्य याचिकाओं पर भी औपचारिक नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई 14 नवंबर की तारीख तय की।

शीर्ष अदालत के आदेश के बाद भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुनवाई को रोकने और उचित प्रतिक्रिया नहीं देने के लिए केंद्र की आलोचना की।

टाइम्स नाउ से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘केंद्र ने पहले दो सप्ताह मांगे, चार सप्ताह के लिए टाल दिया और अब दो सप्ताह और चाहते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार सुनवाई रोक रही है और गंभीर नहीं है।’

क्या है Places of Worship Act 1991

Places of Worship Act 1991 के अनुसार 15 अगस्त 1947 के पहले पूजा स्थलों की जो स्थिति थी, वही रहेगाी। सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में इस अधिनियम की वैधता पर सवाल उठाया गया है। कहा गया है कि यह कानून देश पर आक्रमण करने वालों द्वारा अवैध रूप से निर्मित किए गए पूजा स्थलों को मान्य कर रहा है। इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित किया जाए।

याचिका दाखिल करने वाले लोग

काशी शाही परिवार की बेटी महाराजा कुमारी कृष्णा प्रिया, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व संसद सदस्य चिंतामणि मालवीय, सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी अनिल काबोत्रा, अधिवक्ता चंद्रशेखर, वाराणसी निवासी रुद्र विक्रम सिंह, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने 1991 के अधिनियम के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने दायर की थी याचिका

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की थी, जिसमें हिंदू याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं को चुनौती देते हुए कहा गया था कि अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से पूरे भारत में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी। इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने भी 1991 के कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच का विरोध करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।

एक दलील में कहा गया है, ‘अधिनियम में भगवान राम के जन्मस्थान को शामिल नहीं किया गया है, लेकिन इसमें भगवान कृष्ण का जन्मस्थान शामिल है, हालांकि दोनों ही निर्माता भगवान विष्णु के अवतार हैं और पूरी दुनिया में समान रूप से पूजे जाते हैं।’

-एजेंसी