नया शोध: दो रातों की नींद हमारी भाषा में एक नया शब्द जोड़ देती है

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नींद में दिमाग आवाजों और शब्दों से खेलता है। 10 साल की उम्र तक यह प्रक्रिया बहुत तेजी से चलती है। इसलिए बच्चों को पूरी नींद सोने देने के लिए कहा जाता है। बच्चों की लंबी नींद में भाषा सीखने की प्रक्रिया चलती रहती है।

सपने में भाषा का बेहतर इस्तेमाल करते हैं लोग

यूनि. ऑफ यॉर्क में नींद, भाषा और चेतना लैब में मनोविज्ञान के प्रोफेसर गैरेथ गैसकेल कहते हैं- नींद में आवाजों की बहुत ज्यादा हलचल होती है। इसलिए हमारे सपने भी कई भाषाओं में आते हैं। सपनों में कई बार हम ऐसी भाषा बोलते हैं जो अभी सीख रहे होते हैं। जैसे हिन्दी भाषी व्यक्ति जो टूटी-फूटी अंग्रेजी जानता है, सपने में अंग्रेजी में बात कर रहा होता है। सपने में बोली जा रही उसकी भाषा का स्तर उसकी वास्तविक क्षमता से भी बेहतर हो जाता है क्योंकि सपना देख रहा दिमाग ऐसे शब्दों का खूब इस्तेमाल करता है, जो कहीं अवचेतन में हैं।

यह भी संभव है कि हम ऐसी भाषा में सपने देखें जिसे हम तो नहीं बोलते, लेकिन आसपास बोली जाती है। दरअसल, दिमाग उन आवाजों को पहचान चुका होता है। गैसकेल कहते हैं- कई भाषाएं बोलने वालों को अक्सर बहुभाषी सपने आते हैं। सपने में एक भाषा के शब्द दूसरी भाषा के उसी तरह से साउंड करने वाले शब्दों के साथ इस्तेमाल होने लगते हैं।

बोलने-सुनने में अक्षम लोग सपने में इशारों में बात करते हैं

अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि जो लोग बोल-सुन नहीं सकते उनके सपने में भाषा नहीं होती। वे इशारों में बातें करते हैं। गैसकेल कहते हैं- बहुभाषी सपनों के कई स्तर होते हैं। इसमें एक साथ कई भाषाएं होती हैं तो कई बार कोई एक भाषा जो मातृभाषा नहीं होती। कई बार लिंग्विस्टिक एंग्जाइटी ड्रीम्स भी आते हैं। इसमें इंसान किसी दूसरी भाषा में संघर्ष करता रहता है। अपने सपनों की डिक्शनरी में नए शब्द ढूंढ़ता है। उसके दिमाग में ऐसे कई शब्द आते हैं, जिनका उसे मतलब ही नहीं पता होता।

गैसकेल कहते हैं- जब भी हम कोई नया शब्द सीखते हैं तो उसे अच्छी तरह इस्तेमाल करने के लिए अपनी जानकारी से अपडेट करना होता है। इसके लिए नींद की जरूरत होती है। दरअसल नींद के दौरान ही दिमाग पहले से मौजूद ज्ञान के साथ नए ज्ञान का सामंजस्य बिठा पाता है।

सोते हुए प्रतिभागियों को भाषण सुनाकर अध्ययन किया गया

अध्ययन में शामिल सोते हुए प्रतिभागियों को वास्तविक भाषण और बेमतलब वाला छद्म भाषण सुनाया गया। ईईजी के जरिए उनके दिमाग को स्कैन किया गया। सोते हुए प्रतिभागियों का दिमाग सिर्फ वास्तविक भाषण को सुन रहा था। यह भी पाया गया कि जब हम सपना देख रहे होते हैं, तो दिमाग उन आवाजों को सुनना बंद कर देता है जिनसे सपना टूट सकता है।

-एजेंसी