स्कूली छात्रों के मन की बात: बाजार आधारित शिक्षा बना रही बच्चों को तनाव ग्रस्त

अन्तर्द्वन्द

बाल दिवस (14 नवम्बर) बीत गया किन्तु वह याद दिला गया हम सबको कि हमारे-आपके घरों में, आस-पड़ोस, गली-मुहल्ले में कभी न कभी सोहर की आवाज गूंजी थी, गूंजेगी, क्योंकि किलकारिओं का स्वागत करना हमारी असीम खुशिओं का द्योतक होता है। संतति का आगमन प्रकृति का, भविष्य का आगमन है और वह प्रायः देती है हमारी पीढ़ी बदल जानें की सूचना। लेकिन हमारी अगली पीढ़ीओं के सरदार-सरदारनिओं का भविष्य सुनहरा हो, समय के साथ साथ यह सोच भी बलवती होती जाती है हम सबकी, किन्तु हमारी सोच, हमारी आकांक्षाएं और हमारे सपनें, बच्चों के पेसानी पर बल भी डाल देती हैं।

बच्चों से हमारी अपेक्षाओं की फ़ेहरिस्त, भगवान हनुमान की पूँछ सी लम्बी होती जाती है । लेकिन बच्चा और उसका मन हमारे उन सपनों को पूरा करने में या उन अपेक्षाओं का भार उठाने में, प्रायः दब जाता है, गुम-सुम हो जाता है । यह बात उभर कर आई है ‘मेन्टल हेल्थ एंड वेल-बीइंग ऑफ़ स्कूल स्टूडेंट्स-ए सर्वे, 2022′ से, जो कि एनसीइआरटी द्वारा आयोजित थी । इस सर्वेक्षण में देश के कुल 3,79,842 छात्र सम्मिलित थे जो कि 6 से 12.वी कक्षा में पढ़ते थे । मन-मंथन से ही मन की बात जानी जा सकती है और इसीलिए इस सर्वेक्षण का महत्व है । वस्तुतः नई शिक्षा नीति-2020 बात करती है छात्रों के सर्वांगीर्ण विकास की जिसमे छात्र की बौद्धिक क्षमता अथवा संज्ञानात्मक विकास के साथ साथ चरित्र निर्माण और 21 वी शताब्दी के लिए आवश्यक कौशल निर्माण और विकास पर जोर है ।

शिक्षा, संवाद, सहयोग, मिल कर काम करने की क्षमता और दृढ़ता का विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बौद्धिक क्षमता का विकास, विद्यार्थिओं के मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक कल्याण को समान महत्व देती है। वहीं संज्ञानात्मक विकास, संज्ञान अर्थात मन की उन आंतरिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने पर बल देती है जिससे कि जानने अथवा विश्लेषण करने की क्षमता बढती है । बालक अपने इस ज्ञान और अनुभव का प्रयोग नवीन परिस्थितिओं का सामना करने के लिए कर सकता है । किन्तु अभिभावक की सोच, पालित को बाजार आधारित शिक्षा और अर्थव्यवस्था में भी अद्वितीय पुरुष बना देने की होती है । बालक को नर श्रेष्ठ और बालिका को अनुपम बनाने की हमारी सोच के बीच आइये जाने, समझें कि क्या हम जानते हैं उनके और अपने बच्चों के मन की बात जिनके ह्रदय और मस्तिष्क पर हम अपनी आकांक्षाओं का भार डालते हैं, राज करना चाहते हैं, जिन्हें हम तनाव ग्रस्त बनाते हैं ।

मानसिक स्वास्थ और उसकी खैरियत, छात्रों के सर्वांगीर्ण विकास के लिए आवश्यक अति महत्वपूर्ण पहलुओं में सम्मिलित है । अतः सर्वेक्षण के द्वारा यह जानने की कोशिश की गई है कि छात्रों द्वारा स्वयं अपने बारे में उनकी क्या राय है और साथ ही छात्रों से ही समझें-जानें की परिवार और समाज, छात्र के जीवन में झांक कर क्या सोच बनाता है, छात्रों के बारे में? सर्वे में छात्रों से उनके व्यक्तिगत और सामाजिक स्व एवं उनकी अकादमिक पहलुओं सम्बन्धी धारणा आदि के बारे में जानकारियां ली गईं। स्पष्ट है कि छात्रों के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की गईं हैं और इन जानकारिओं का महत्व न केवल छात्र के लिए वरन परिवार और समाज की सोच को भो प्रभावित करने के लिए मत्वपूर्ण होगा ।

सर्वे से पता चला कि बच्चों को स्कूलों में सीखने-पढ़ने के समय कक्षा में शिक्षण एवं निर्देश सम्बन्धी; सफलता और असफलता सम्बन्धी; अध्यापकों, प्रिंसिपल और अन्य छात्रों से विमर्श सम्बन्धी; विभिन्न अनुभव होते हैं, जिसका प्रभाव न केवल उनके पूरे छात्र जीवन, वरन वयस्कता पर भी पड़ता है। इसके विपरीत छात्रों की भावनाएं एवं भावनात्मकता उनके सामाजिक परिवेश से भी बहुत गहरे से प्रभावित होती हैं । तो प्रश्न तो यह है कि क्या हम जानते हैं इन सब पहलुओं के सम्बन्ध में जिनका छात्रों के जीवन और उनकी स्वयं की महत्ता पर भारी प्रभाव पड़ता है ? निश्चय ही नहीं और बिना जाने हम उनके बारे में निर्णय लेते रहते हैं ।

आइये जानें । जीवन में सम्बन्धों या वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को आत्मसात करने में बच्चा जितनी तेजी दिखाता है अर्थात उसके पास यदि यह कौशल है तो उतना ही जीवन में उसकी सफलता प्राप्त करने की संभावना ज्यादा हो जाती हैं । तो 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हां में उत्तर दिया अर्थात ये छात्र अकादमिक और व्यक्तिगत विकास की दौड़ में आगे रहेंगे क्योंकि वे सम्बन्धों को अच्छी तरह से निभा पाएंगे और किसी समस्या के समाधान का प्रबंधन भी बेहतर ढंग से कर सकते हैं और साथ ही वे सदा प्रेरित रहेंगे अच्छा करने के लिए । किन्तु 57 प्रतिशत छात्र इस कौशल में अपने को पिछड़ा हुआ मानते हैं।. जहां तक दूसरों पर भरोसा करने-रखने का प्रश्न है तो केवल 27 प्रतिशत छात्रों ने ही कहा कि वे प्रायः दूसरे व्यक्तियों पर भरोसा करते हैं । इसका अर्थ है कि 73 प्रतिशत बच्चे सामाजिक व्यवहार और दूसरों से जुड़ने कि कला-विधा से अपने को वंचित पाते हैं जो कि आगे बढ़ने की एक आवश्यक शर्त मानी जाती है ।

स्कूली और व्यक्तिगत जिंदगी में संतुष्टि एक और पहलू है जो कि अकादमिक सफलता को प्रभावित करती है। छात्र का स्कूल से जुड़ाव अकादमिक सफलता की राह को सुगम बनाता है । सर्वे में पाया गया की व्यक्तिगत जिंदगी (51%) की तुलना में बच्चे स्कूली जिंदगी से (73%)ज्यादा प्रसन्न थे । तो स्पष्ट है कि स्कूलों की दशा पर बार-बार प्रश्न उठाने का हमारा औचित्य कम बनता है और हमारी परवरिश और परिवार द्वारा बच्चों पर अपेक्षाओं के भार और दबाव पर प्रश्न ज्यादा खड़ा होता ।

जहाँ तक प्रश्न है कि क्या छात्र समझते हैं कि उनका दाईत्व है कि वे जीवन में कुछ अच्छा करें? तो इस प्रश्न के जवाब में 84 प्रतिशत छात्रों ने यह माना कि यह उनका दाईत्व है ।इसका अर्थ हुआ कि देश के छात्र अपने दाइत्वों को न केवल जानते हैं वरन किसी विपरीत परिस्थिति में, परिस्थितिओं से लड़ना और उसे नियंत्रण में रखना जानते और समझते भी हैं । तो क्या समाज और परिवार द्वारा समय समय पर नवयुवकों की कर्तव्य परायणता और दाईत्व उठाने की क्षमता और योग्यता पर संदेह करने कि हम सब की आदत पर ही प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा हो जाता है ? तो देश और हम सब को समझना होगा कि नवयुवक, योग्य नागरिक भी बनना चाहते हैं और अपने उत्तर-दाइत्वों को बखूभी निभाना भी।लेकिन दूसरों के नज़रिये को छात्रों द्वारा जहाँ तक समझने का प्रश्न है तो केवल 31 प्रतिशत छात्र ही दूसरों कि भावनाओं को ठीक से समझ पाते हैं ।

दूसरों के नजरिओ को समझने की कला में पिछड़ने का अर्थ है कि समाज में स्वस्थ सम्बन्ध कायम करने की हमारी योग्यता पर एक प्रश्न चिन्ह अवश्य है । समाज में एक दूसरे को समझने के लिए संवाद की कला का विकास होना अति आवश्यक है । संवाद विहीनता, समाज में अतिवाद को जन्म देती है ।

दूसरी तरफ, आत्मविश्वास, सफलता की सीढ़ी मानी जाती है । किन्तु आत्मविश्वास की कमी, छात्र की सीखने कि और संवाद की योग्यता को प्रभावित करके छात्र में असुरक्षा और चिंता बढ़ाती है । सर्वे ने पाया कि 23 प्रतिशत छात्र आत्मविश्वास की कमी के शिकार थे । कक्षा में प्रश्न पूछने, संवाद करने में झिझक, छात्र को पढाई में पिछड़ने के लिए एक बड़ा कारण बन सकता है। तो देखना होगा कि वे बच्चे कहीं हमारे आपके घर के तो नहीं हैं जो कि फटकार लगने या उपहास बना दिए जाने के शिकार तो नहीं हो गए हैं ? किन्तु प्रसन्नता की बात यह है की 77 प्रतिशत छात्र, आत्मविश्वास से लवरेज पाए गए ।

छात्र का बेहतर मानसिक स्वास्थ बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि वह समाज में अपनी छवि और संवाद बना सकने में सक्षम है कि नहीं ? इस सन्दर्भ में 56 प्रतिशत छात्रों ने बताया कि समाज के लोग उन्हें खुशमिजाज व्यक्ति मानते हैं । यह निष्कर्ष प्रसन्नता भरा है किन्तु दूसरी तरफ केवल 25 प्रतिशत छात्र ही मानते हैं कि उनके अध्यापक उन्हें नेतृत्व करने में सक्षम मानते हैं । इसका अर्थ हुआ कि 75 प्रतिशत छात्र मानते हैं कि उनके अध्यापक उन्हें नेतृत्व क्षमता विहीन मानते हैं ।यह नकारात्मक सोच छात्र के व्यक्तित्व विकास के लिए बेहतर नहीं है ।

लेकिन सर्वे ने एक सकारात्मक पक्ष यह उजागर किया है कि 70 प्रतिशत छात्र यह मानते हैं कि अन्य लोग उनको भरोसा करने लायक मानते हैं और उनके मित्र भी उनपर बहुत भरोसा करते हैं । छात्रों की यह धारणा उनमें आत्म सम्मान की भावना भरती है जो कि उनके सामाजिक सम्बन्धो को सकारात्मक रूप से प्रभावित करतीं है ।लेकिन प्रश्न तो यह है कि क्या हम सब भी अपने बच्चों पर पूरा भरोसा करते हैं कि नहीं ? इसी तरह, 33 प्रतिशत छात्र अपने दोस्तों को खुश करने का प्रयास, उनकी इक्छाओ को पूरा करके, करते हैं। इसके विपरीत, 15 प्रतिशत उत्तरदाता छात्रों ने बताया कि वे अपने मित्रों के दबाव को नहीं मानते हैं।

अब आइये छात्रों के अकादमिक अनुभवों को साझा करें।छात्रों के जीवन में उनका अकादमिक पक्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है । यह पक्ष बहुत कुछ निर्भर करता है छात्र कि स्वयं की क्षमता पर या वह जिस वातावरण में रहता है ।उसकी भावनाएं और उसका सामाजिक पक्ष भी महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व है ।सर्वे बताता है कि 39 प्रतिशत छात्र हमेशा अपने अकादमिक प्रदर्शन से संतुष्ट रहते हैं । तो संतुष्टि का यह स्तर बेहतर नहीं हैं अतः यह जानने कि कोशिस की जानी चाहिए कि इसका कारण क्या है ? वैसे 29 प्रतिशत छात्रों ने बताया था कि पढाई में पिछड़ने का महत्वपूर्ण कारण उनकी एकाग्रता में कमी का होना है । समय का प्रबंधन सही ढंग से नहीं कर पाने के कारण भी छात्र तनाव में आते हैं । इन सब से पढाई में पिछड़ना तो होगा ही । दूसरी तरफ केवल 22 प्रतिशत छात्र ही ऐसे थे जिन्होंने बताया कि वे पढाई में पीछे नहीं रहते हैं । तो एकाग्रता बढ़ाने और समय का उचित प्रबंधन करने कि आवश्यकता है ।

सर्वे ने यह भी उद्घाटित किया कि 36 प्रतिशत छात्र समाज में अपनी अच्छी इमेज बनाने के लिए पढाई में अच्छा करना चाहते हैं । लेकिन 37 प्रतिशत छात्रों ने यह माना कि उन्हें उनके अध्यापकों का पूरा ध्यान, सहयोग नहीं मिलता है जिसके परिणाम स्वरुप उनकी चिंता बढ़ती है और वे तनावग्रस्त हो जाते हैं ।लेकिन तनाव के अनेक कारण और भी हैं । उनकी तनाव का आधा (50 प्रतिशत)कारण तो पढाई ही है साथ ही परीक्षा और उसका परिणाम भी (31 प्रतिशत) तनाव को बढ़ाता है । सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तो यह हैं कि 15 प्रतिशत छात्र तो चिंतित होते ही नहीं हैं ।

तो सर्वे रिपोर्ट ने समाज और परिवार को आईना दिखा दिया है की छात्रों के अनेक सकारात्मक पक्ष हैं । वे दाईत्व उठाने मेँ संकोच नहीं करते । वे स्कूली जीवन की चुनौतिओं का आनंद लेने मेँ प्रसन्न हैं। उनके मित्र उन पर भरोसा कर सकते हैं। वे अकादमिक जीवन ही नहीं जीना चाहते हैं वरन आपने शारीरिक इमेज को भी सुन्दर बनाना चाहते हैं ।। लेकिन जीवन की नकारात्मकता ने उन्हें भी नहीं छोड़ा है। वे कहीं न कही प्रश्न पूछने और संवाद करने में पिछड़ते हैं । एकाग्रता और समय के उचित प्रबंधन की कमी से ग्रस्त हैं । एक बड़ा छात्र वर्ग अध्यापकों के असहयोग से निरास और चिंतित भी है ।लेकिन पढाई,परीक्षा और परिणाम उनके तनाव का प्रमुख कारण हैं । परिवार और समाज उनसे केवल सर्वोकृष्ट परिणाम चाहता है, किन्तु छात्र सर्वांगीर्ण जीवन की राह की ओर दौड़ता है । परिवार अपने मन की बात ही करना चाहता है और जिनके लिए कभी उत्सव मनाया होता है उन्हें ही अपने अपेक्षाओं के भार तले अवसाद ग्रस्त बना देता है। क्या हम नहीं जानते की अपेक्षाओं की सूली पर कोटा, छात्रों की आत्महत्या की राजधानी बनी हुई है ? क्या आप भी चाहते हैं की आपके घर का कोई चिराग आपकी अपेक्षाओं की आंधी तले बुझ जाय ?

(लेखक का आभार उन लेखकों, प्रकाशकों एवं संस्थाओ को है जिनकी रिपोर्टो एवं लेखन सामग्री का उपयोग इस आलेख को तैयार करने में किया गया है)

(लेखक विमल शंकर सिंह, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं)