मथुरा: श्रीकृष्ण-जन्मस्थान से 20 जून को भव्य रूप में न‍िकाली जाएगी भगवान जगन्नाथ रथयात्रा

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इस संबंध में जानकारी देते हुऐ श्रीकृष्ण-जन्मस्थान सेवा-संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने बताया कि भगवान श्री जगन्नाथजी की इस भव्य रथयात्रा के अलौकिक दर्शन एवं इसमें शामिल होने का पुण्य प्राप्त करने के लिए विगत कई वर्षों में जो स्थानीय श्रद्धालुओं में एक प्रेममयी भावना उत्पन्न हुई है, उससे इस वर्ष की रथयात्रा और अधिक भव्य रूप से नगर के प्रमुख मार्गों से निकाली जायेगी।

यह भव्य जगन्नाथ-रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया मंगलवार को सायं लगभग 4 बजे श्रीकृष्ण-जन्मस्थान से आरंभ होकर डीगगेट, मंडी रामदास, चौक बाजार, स्वामी घाट, छत्ता बाजार, होली गेट, कोतवाली मार्ग एवं भरतपुर गेट होते हुये श्रीकृष्ण-जन्मस्थान पर पहुंचकर पूर्ण होगी।

रथयात्रा भगवान जगन्नाथ जी के सूर्यनारायण स्वरूप का प्रतीक है। इस यात्रा में ठाकुर श्री बलराम जी, देवी सुभद्रा जी एवं भगवान जगन्नाथ जी रथ में विराजकर, नगर भ्रमण कर भक्तजनों को कृत-कृत करते हैं। श्री बलराम जी के रथ को ‘तालध्वज’,   देवी सुभद्रा जी के रथ को ‘दर्प दालान’ एवं श्रीकृष्ण (जगन्नाथ जी) के रथ को  ‘नन्दघोष’ नाम से जाना जाता है।

संस्थान द्वारा आयोजित इस रथयात्रा में एक ही भव्य काष्ठ रथ पर तीनों रथों का समेकित रूप परिलक्षित होता है। यात्रा आरंभ होने से पूर्व जन्मस्थान के भागवत भवन में स्थित श्री जगन्नाथजी मंदिर से सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र आता है, तदोपरान्त क्रमश:  भगवान बलभद्र जी, देवी सुभद्रा एवं भगवान श्रीकृष्ण की वस़्त्र आभूषणों से अलंकृत प्रतिमायें रथ पर विराजती हैं। इसके बाद विधि-विधान से देवताओं का आव्हान एवं पूजा करने के उपरान्त सैकड़ों भक्तगण पूरी श्रद्धा के साथ रथ को खींचते हैं।

भगवान जगन्नाथजी की यह रथयात्रा जन्मस्थान से सायं 4 बजे से आरंभ होने के उपरान्त रात्रि लगभग 8 बजे तक  श्रीकृष्ण-जन्मस्थान  परिसर  में स्थित  पवित्र  लीलामंच के समीप  पहुंचेगी। तदोपरान्त भगवान जगन्नाथ जी आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक गुण्डीचा मंदिर में रहते हैं, जो कि भागवत भवन के चैतन्य महाप्रभु के श्रीविग्रह के समीप बनाया जाता है।

ज्ञातव्य हो कि गुण्डीचा मंदिर ही वह दिव्य स्थान है जहॉं पर साक्षात विश्वकर्मा ने बढ़ई के रूप में भगवान जगन्नाथजी (बलभद्र जी, सुभद्रा जी, श्रीकृष्ण) की काष्ठ  प्रतिमाओं  का  निर्माण किया था। इसके अन्य नाम ‘ब्रह्मलोक’ या ‘जनकपुर’ भी है।

भगवान जगन्नाथजी इसी गुण्डीचा मंदिर में ठहरकर आषाढ़ शुक्ल द्वादशी को अपने निज मंदिर में भव्य यात्रा के मध्य वापस  पधारते हैं। अपनी वापसी यात्रा में भगवान जगन्नाथ जी विदुरजी के घर साग-भात का भोग ग्रहण करते हैं। श्रद्धालुओं, भक्तों एवं सन्तों की ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथजी की रथयात्रा में सम्मिलित होने अथवा  ठाकुरजी  के दर्शन  करने  मात्र से  मानव  जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।

नील माधव के रूप में भगवान श्रीकृष्ण हमारे सबसे बड़े आराध्य देव हैं। कलि काल में अन्न की सबसे बड़ी महिमा है। इसलिए भगवान जगन्नाथ जी की पूजा अध्यात्मिक समृद्धि के साथ-साथ भौतिक उन्नयन के लिए भी होती है। यह त्यौहार भगवान श्रीकृष्ण के अपने घर वापसी का भी प्रतीक है। भगवान जगन्नाथ जी की इस भव्य रथयात्रा का भारतवर्ष में अनेकों स्थलों पर आयोजन किया जाता है। इसी कड़ी में श्रीकृष्ण-जन्मस्थान सेवा-संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली भगवान जगन्नाथ रथयात्रा में भक्तों का उत्साह हर वर्ष वृहद रूप से दृष्टव्य होता है।

संस्थान ने समस्त धर्मप्रेमी जनता से अनुरोध किया है कि भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा का अपने प्रतिष्ठानों एवं घरों पर स्वागत कर, भगवान जगन्नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त करें।  श्रीकृष्ण-जन्मस्थान परिसर से प्रारम्भ होने वाली इस रथयात्रा में सम्मिलित होकर अलौकिक आनन्द एवं अक्षुण्य पुण्य प्राप्त करें।