जानिए! सनातन परंपरा में क्यों पहनते हैं जनेऊ और क्या है महत्व?

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सनातन परंपरा में वैसे तो कई रीति-रिवाज होते हैं लेकिन उनमें से यज्ञोपवीत संस्कार सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है. ‘यज्ञोपवीत’ को जनेऊ के नाम से भी जाना जाता है. इस संस्कार के तहत सूत से बने तीन धागों वाले यज्ञोपवीत को धारण किया जाता है. जो भी इसको पहनता है उसको कई नियमों का पालन भी करना पड़ता है. मान्यता है कि इसको धारण करने से मनुष्य के द्वारा किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं. लेकिन, इसको धारण करने के कुछ विशेष नियम होते हैं, जिनकी अनदेखी आपके लिए अशुभ साबित हो सकती है.

आइए जाने क्या है जनेऊ का महत्व और क्या हैं इसको पहनने के नियम.

क्यों पहनते हैं जनेऊ और क्या है महत्व

सनातन परंपरा के अनुसार तीन धागे वाले जनेऊ को धारण करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. माना जाता है कि जनेऊ के तीन धागे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है. वहीं, जो व्यक्ति विवाहित होता है या गृहस्थ जीवन जीता है उसे छह धागों वाला जनेऊ धारण करना होता है. इन छह धागों में तीन अर्धांगिनी के लिए और तीन स्वंय के लिए माने जाते है.

जनेऊ पहनने का नियम

जनेऊ को हमेशा बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिए. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मल-मूत्र विसर्जन के समय जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए. ऐसा इसलिए किया जाता है कि मल-मूत्र विसर्जन करते समय जनेऊ आपकी कमर के ऊपर रहे और अपवित्र न हो जाए. इसके अलावा यदि आपके परिवार या घर में किसी के जन्म अथवा मृत्यु के दौरान, सूतक लगने के बाद तुरंत बदल लेना चाहिए. ध्यान रखें कि इस पवित्र धागे में कभी भी कोई चीज न बांधे. ऐसा करना आपको अशुभ फल दे सकता है.

जनेऊ धारण की सही उम्र

माना जाता है कि गर्भ धारण के आठ वर्ष के अंदर बच्चे का यज्ञोपवीत संस्कार करवा देना चाहिए. हालांकि आज के समय में अधिकतर लोग ऐसा नहीं करते हैं. कई लोग विवाह के दौरान ही यज्ञोपवीत करवा लेते हैं. असल मायने में किसी भी धार्मिक कार्य या पूजा अनुष्ठान करने से पहले जनेऊ धारण करना चाहिए. अधिकतर लोग इससे जुड़े नियमों को जानकर डर जाते हैं और इसे धारण नहीं करते हैं.

Compiled: up18 News