प्रवचन: बच्चों को संस्कारित करने को स्वयं अच्छा बनें: जैन मुनि मणिभद्र

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आगरा।नेपाल केसरी व मानव मिलन संस्थापक जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज ने कहा है कि यदि हम अपने बच्चों को संस्कारित करना चाहते हैं तो हमें स्वयं अच्छा होना होगा। धर्म संस्कार पर चलना चाहिए। क्योंकि बच्चे परिवार में जैसा देखते हैं, वैसा ही करते हैं फिर वैसा ही बनते हैं।

राजामंडी के जैन स्थानक में हो रहे पर्यूषण पर्व पर प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने कहा कि बच्चों को यदि संस्कारित करेंगे तो परिवार पर उसका प्रभाव पड़ता है। बच्चे देश का भविष्य हैं। देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें धर्म संस्कार देना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमें बच्चों को समय देना चाहिए। यदि हम बचपन में उन्हें समय नहीं देंगे तो वृद्धावस्था में उनके पास हमारे लिए कोई समय नहीं रहेगा।

मुनिवर ने पोलासपुर के महाराज विजय सिंह और महारानी श्री देवी के पुत्र राजकुमार अतिमुक्त कुमार का प्रसंग सुनाया, जिन्होंने नौ वर्ष की आयु में भगवान महावीर से दीक्षा ली थी। जैन मुनि ने बताया कि बालक अतिमुक्त कुमार राजमहल के बाहर खेल रहा था। अचानक उसकी निगाह जैन संत पर पड़ी। वे पोलास नगर में भिक्षा के लिए भ्रमण कर रहे थे। राजकुमार ने उनका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि वे श्रमण हैं। पंचव्रत धारी हैं और भिक्षा के लिए भ्रमण कर रहे हैं। इस पर राजकुमार ने उनसे अपने घर पर आकर भिक्षा लेने का आग्रह किया और वह उन्हें राजमहल ले गया। महारानी ने संत की अगवानी की और भिक्षा दी।

अतिमुक्त कुमार ने कहा कि यहीं पर भोजन ग्रहण कर लें तो उन्होंने मना कर दिया। कहा कि मेरे भी गुरू हैं, जिन्हें भिक्षा दिखा कर उनकी आज्ञा लेकर उसे ग्रहण करुंगा। अतिमुक्त कुमार चौंका कि आप तो स्वयं सिद्ध पुरुष हैं, आपके भी गुरू हैं। कहा कि वह उनके दर्शन करने जाएगा।

भगवान महावीर के दर्शन और वाणी श्रवण करके बालक में वैराग्य की ज्योति जाग गई। उसने घर पर आकर अपनी मां को अपने संकल्प से अवगत कराया। महाराजा विजय सिंह बोले, हमारा मन तो ये था कि तुम्हारे बड़े होने पर राजपाट तुम्हें सौंप कर हम वैराग्य को अंगीकार कर लें, लेकिन तुम चाहते तो एक बार सिंहासन पर बैठ तो जाओ। हमारी इच्छा पूरी हो जाएगी।

सिंहासन पर कुछ दिनों बैठा कर अतिमुक्त कुमार को उसके माता-पिता ने भगवान महावीर को सौंप दिया। भगवान महावीर ने उस बालक को दीक्षा दे दी।

जैन मुनि ने कहा कि मनुष्य का जीवन मूल्यवान है। वह 84 लाख योनियों में भटकता है। नर्क में जा कर भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं कर सकता। लेकिन मनुष्य के रूप में वह मोक्ष मार्ग पर जा सकता है। उसके लिए उसे पुरुषार्थ करना होगा। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का जीवन दो तरह का होता है कुटिल और सरल। सरल हृदय में भगवान का वास होता है। क्षमा याचना से आत्मा पवित्र होती है। इसलिए हमें यह भावना अंगीकार करनी चाहिए।

प्रयूषण पर्व के सातवें दिन मंगलवार की धर्म सभा में नीतू जैन दयालबाग की 15 उपवास ,सुमित्रा सुराना की 10 उपवास, अनौना दुग्गर 9 उपवास , अंशु दुग्गर की 8 उपवास, सुनीता दुग्गड़ ,पद्मा सुराना, मनीष लिघे,निकिता,हिमांशु मनानिया,प्रतीक ,सुहानी जैन, उज्जवल जैन,नीतू जैन की 7 उपवास की तपस्या चल रही है। आयम्बिल की लड़ी में मधु बुरड़ की 7 आयम्बिल एवम बालकिशन जैन, लोहामंडी की 19 आयंबिल की,कंचन दुग्गड़ की 49 एकाशने की तपस्या चल रही है।महेंद्र बुरड़ ने अठायी उपवास के बाद पारणा कर लिया।

प्रयूषण महापर्व पर नवकार मंत्र का 24 घंटे का अखंड जाप जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र महाराज ,पुनीत मुनि एवम विराग मुनि के सानिध्य में महावीर भवन जैन स्थानक में 31 अगस्त तक निरंतर जारी है ।जिसमे प्रात: 6:00 से सायं 6:00 बजे तक महिलाएं एवम सायं 6:00 से प्रातः 6:00 बजे तक होने वाले अखंड जाप में पुरुष भाग ले रहे है। अंतगड सूत्र वाचन प्रतिदिन प्रातः 8:30 बजे से हो रहा है। प्रयूषण पर्व पर पुरुषों का प्रतिक्रमण महावीर भवन एवम महिलाओं का सुराना भवन में शाम 7:00 से 8:00 बजे तक प्रतिदिन चल रहा है।

सोमवार के कार्यक्रम में श्री श्वेतांबर स्थानवासी जैन ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक जैन ओसवाल, महामंत्री राजेश सकलेचा कोषाध्यक्ष आदेश नरेश चपलावत, प्रेमचंद जैन, अशोक जैन गुल्लू, रंजीत सुराना, वैभव सोनी सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे।

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