कई रहस्यों को अपने अंदर समेटा हुआ है बाबा केदारनाथ धाम

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2013 में आई भीषण आपदा में भी केदारनाथ के पीछे चमत्कारिक रूप से भीमशिला आ गयी जिससे मंदिर की सुरक्षा हुई। केदारनाथ का रहस्य इसके निर्माण से लेकर बाद में हुए कई चमत्कारों को समेटे हुए हैं। आज हम आपको एक-एक करके केदारनाथ के सभी रहस्य बताएँगे।

केदारनाथ मंदिर का निर्माण

जब आप केदारनाथ जाएंगे तो देखेंगे कि मंदिर का निर्माण कटवां के भूरे रंग के विशाल पत्थरों, चट्टानों व शिलाखंडों से किया गया हैं। इनको जोड़ने के लिए आपस में इंटरलॉकिंग की गयी हैं। केदारनाथ मंदिर समुंद्र तल से 22,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

अब रहस्य की बात यह हैं कि इतनी ज्यादा ऊंचाई पर इन पत्थरों व शिलाखंडों को कैसे पहुँचाया गया था। साथ ही इन्हें कैसे एक के ऊपर एक रखकर मंदिर का निर्माण किया गया। केदारनाथ मंदिर का ऐसे भव्य निर्माण की आज के समय में केवल परिकल्पना ही की जा सकती है।

400 वर्षों तक हिम में दबा रहा केदारनाथ

पांडवों के बाद इस मंदिर का पुनः निर्माण आदि शंकराचार्य के द्वारा किया गया था। इसके बाद उन्होंने इसी मंदिर के पीछे समाधि ले ली थी जो आज तक वहां है। इसके बाद 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच कई भारतीय राजाओं के द्वारा मंदिर का पुनः निर्माण करवाया गया था जिससे इसका जीर्णोद्धार हुआ था।

वाडिया इंस्टिट्यूट हिमालय के द्वारा किये गए शोध में यह बात सामने आई थी कि 13वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक यह क्षेत्र पूरी तरह से हिम/ बर्फ से ढक गया था। तब लगभग 400 वर्षों तक केदारनाथ मंदिर पूरी तरह से हिम से ढका रहा था। इस कारण भी मंदिर को कोई क्षति नही हुई थी।

इसके प्रमाण आज भी मंदिर की दीवारों पर देखने को मिल जाते हैं। हालाँकि 17वीं शताब्दी के बाद जब हिम का अनुपात कम हुआ तो मंदिर पुनः दृष्टि में आया। इसके बाद से केदारनाथ की यात्रा पुनः सुचारू रूप से शुरू हो गयी थी।

 केदारनाथ के पास स्थित श्री भैरवनाथ मंदिर

केदारनाथ मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध भैरवनाथ जी का मंदिर स्थित हैं। इसे इस क्षेत्र का क्षेत्रपाल भी कहा जाता हैं जो इस मंदिर की सुरक्षा करते हैं। सर्दियों के माह में दीपावली के अगले दिन से केदारनाथ मंदिर के कपाट भीषण बर्फबारी के कारण बंद कर दिए जाते हैं और उसके छह माह के बाद मई माह में अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते हैं।

मान्यता हैं कि इन छह माह में मंदिर की सुरक्षा का भार श्री भैरवनाथ जी ही सँभालते हैं। जो भी भक्तगण केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने हेतु यहाँ आते हैं उन्हें पहले श्री भैरवनाथ मंदिर के दर्शन करना अनिवार्य होता हैं अन्यथा केदारनाथ की यात्रा विफल मानी जाती हैं।

केदारनाथ में जलती अखंड ज्योत

सर्दियों के माह में जब केदारनाथ मंदिर छह माह के लिए बंद हो जाता हैं तब यहाँ रहस्यमय तरीके से अखंड ज्योत लगातार छह माह तक प्रज्ज्वलित रहती हैं। दीपावली के बाद से यहाँ पर भीषण बर्फबारी का दौर शुरू हो जाता हैं जिस कारण केदारनाथ भगवान के प्रतीकात्मक स्वरुप को नीचे उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में स्थापित कर दिया जाता हैं।

इन छह माह में वहां के स्थानीय नागरिक भी वहां रह नही पाते हैं। इस कारण वहां से सभी श्रद्धालु, भक्तगण, स्थानीय नागरिक, दुकानवाले, उत्तराखंड सरकार के अधिकारी इत्यादि सब नीचे आ जाते हैं। छह माह तक यह स्थल एक दम सुनसान रहता हैं व केदारनाथ धाम जाने के सभी मार्ग भी बंद हो जाते हैं।

जब मंदिर के पुजारियों के द्वारा छह माह बाद केदारनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं तब भी वहां अखंड ज्योत जलती हुई मिलती हैं। साथ ही ऐसा प्रतीत होता हैं कि कल ही यहाँ किसी ने पूजा की थी। छह माह तक मंदिर बंद रहने के पश्चात भी ऐसा प्रतीत होता हैं कि मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई की गयी हैं। यह केदारनाथ मंदिर के रहस्यों में से सबसे बड़ा रहस्य हैं।

केदारनाथ मंदिर की भीमशिला

वर्ष 2013 में उत्तराखंड व केदारनाथ में आई भयंकर त्रासदी के बारे में कौन नही जानता होगा। उस समय आसमान से इतनी भयंकर मेघगर्जना व वर्षा हुई थी जितनी संभवतया आजतक ना हुई हो। उस आपदा में लगभग दस हज़ार से भी ज्यादा श्रद्धालु मारे गए थे।

सभी नदियाँ उफान पर थी व हर जगह भीषण बाढ़ आ गयी थी। तब बाढ़ का प्रचंड रूप केदारनाथ मंदिर की ओर भी बढ़ रहा था। केदारनाथ मंदिर के पीछे जो आदि शंकराचार्य का समाधि स्थल था वह पूरी तरह से बाढ़ में बह गया था।

इससे पहले की बाढ़ का पानी केदारनाथ मंदिर के पास पहुँचता, उससे पहले ही चमत्कारिक रूप से एक विशाल चट्टान पानी में बहती हुई आई और ठीक मंदिर के पीछे रुक गयी। इसी चट्टान से टकरा कर पानी का बहाव दो भागों में बंट गया और मंदिर के दोनों ओर से आगे निकल गया।

आज हम इस चट्टान को भीमशिला के नाम से जानते हैं। जो भी केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने जाता हैं वह इस चट्टान की भी पूजा करता हैं। मान्यता हैं कि स्वयं महादेव ने मंदिर की सुरक्षा के लिए इस भीमशिला चट्टान को केदारनाथ धाम भेजा था।

इन सभी रहस्यों के अलावा, एक बात और हैं जो हम आपको बताना चाहते हैं। दरअसल पुराणों की भविष्यवाणी के अनुसार भविष्य में इस संपूर्ण क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे जिनमे केदारनाथ व बद्रीनाथ धाम प्रमुख हैं।

पुराणों के अनुसार एक दिन नारायण की शक्ति से पहाड़ों का मिलन होगा व बद्रीनाथ तथा केदारनाथ के मार्ग लुप्त हो जाएंगे। इसके बाद एक नए धाम का उदय होगा जिसे भविष्यबद्री के नाम से जाना जाएगा।

-एजेंसी