इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कुख्यात संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की कोर्ट में हत्या की सीबीआई से जांच कराने की मांग नामंजूर कर दी। कोर्ट ने मामले में दाखिल एक जनहित याचिका को निस्तारित कर कहा कि इसमें किए गए सीबीआई जांच के आग्रह को अभी मंजूर नहीं किया जा सकता क्योंकि अभी कोर्ट के समक्ष यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि जांच सही ढंग से नहीं होगी। साथ ही कोर्ट ने याची वकील को छूट भी दी कि आगे यदि उसे लगे कि जांच सही नहीं हो रही तो वह इसके लिए नई याचिका दायर कर सकता है। कोर्ट ने भरोसा जताया कि एसआईटी मामले की सही दिशा में जल्द जांच करेगी। न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की ग्रीष्मावकाश कालीन खंडपीठ ने यह आदेश एक स्थानीय अधिवक्ता की याचिका पर दिया।
राज्य सरकार की ओर से याचिका का विरोध करते हुए महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र व मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र सिंह का कहना था कि याचिका समय से पहले दाखिल की गई। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि मामले की विवेचना सही तरीके से नहीं हो रही है। सरकार ने घटना वाले दिन ही तीन सदस्यीय एसआईटी बना दी थी, जो तेजी से जांच कर रही है। कोर्ट परिसरों की सुरक्षा को गंभीरता से लेने का तर्क सरकार की ओर से दिया गया। इस दलील के साथ सरकार के वकीलों ने याचिका को खारिज करने योग्य कहा।
याची अधिवक्ता मोतीलाल यादव का कहना था कि भरी अदालत में हुई इस हत्या से कानून के शासन की अवधारणा प्रभावित हुई साथ ही घटना को लोगों की सुरक्षा से जुड़ा होना बताया। ऐसे में प्रदेश की अदालतों के परिसरों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाने चाहिए, जिससे कोर्ट का काम सुचारु व सुरक्षित रूप से चल सके। याची ने यह भी कहा कि घटना के तुरंत बाद सरकार ने जांच के लिए जो एसआईटी बनाई है वह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि अदालत में हुए इस हत्याकांड की गूंज देशभर में सुनाई पड़ी है। ऐसे में इसकी गहन तफ्तीश जरूरी है।
याची ने कहा कि ऐसे में हत्याकांड की विवेचना सीबीआई से कराई जानी चाहिए। कोर्ट ने आगे जरूरत होने पर नई याचिका दायर करने की छूट देकर पीआईएल निस्तारित कर दी। याचिका में राज्य सरकार समेत प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, लखनऊ पुलिस कमिश्नर समेत वजीरगंज कोतवाली के इंस्पेक्टर को पक्षकार बनाया गया था।
उधर, जिला जज कोर्ट ने भी जीवा हत्याकांड की विवेचना सीबीआई से कराने की मांग वाली अर्जी कर दी है। प्रभारी जिला जज विवेकानंद शरण पांडेय ने अपने आदेश में कहा कि याचिका काल्पनिक तथ्यों और आशंकाओं के आधार पर बिना किसी लिखित सबूत के दाखिल की गई है। किसी मामले की विवेचना सीबीआई को सौंपने की शक्ति मजिस्ट्रेट या विशेष कोर्ट को नहीं है, बल्कि यह शक्ति हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को है।
बता दें कि जीवा की हत्या को राज्य प्रायोजित हत्या बताते हुए पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर व उनकी पत्नी ने सीबीआई से विवेचना कराने की मांग वाली अर्जी जिला जज की कोर्ट में दाखिल की थी।
Compiled: up18 News