सुल्‍तान बनने-की चाह में सल्‍तनत भी गंवा बैठे टीपू….

अन्तर्द्वन्द

आजकल अचानक ‘टीपू’ बहुत बेचारे और दया के पात्र हो गए हैं। हों भी क्यों नहीं, सुल्‍तान बनने-की चाह में टीपू उस ‘सल्‍तनत’ को भी गंवाने लगे हैं जिस पर वह अब तक अपना ‘एकाधिकार’ समझते थे।

दुख की बात यह है कि ये सब उस एक अदद ‘सिपहसालार’ के कारण हो रहा है, जो कभी उनके लिए ‘आज़म’ हुआ करता था।

दरअसल, उर्दू में ‘आज़म’ का अर्थ ‘महान और पराक्रमी’ होता है। बेशक सपा के इस सिपहसालार ने पार्टी के लिए अपना नाम सार्थक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी किंतु पार्टी के स्‍वयंभू मुखिया ने उन्‍हें लावारिस छोड़ दिया लिहाजा नतीजा सामने है।

टीपू की मानें तो उन्‍होंने ऐसा कुछ नहीं किया जिसका ठीकरा उनके सिर फोड़ा जा रहा है लेकिन मुश्‍किल यह है कि टीपू के अपने लोग इस मामले में उनकी बात मानने को तैयार नहीं हैं।

टीपू के खिलाफ बगावती सुर भी सबसे पहले वहीं से सुनाई दिए जहां के लोग कभी टीपू के एक इशारे पर अपनी जान न्‍योछावर करने को तैयार रहते थे। देखते-देखते उस सुर से सुर मिलाने वालों की संख्‍या बढ़ती गई। बागियों का कारवां भी बढ़ने लगा।

यहां तक कि चचाजान भी फ्रंटफुट पर आकर खेलने लगे। कहने लगे कि ‘आज़म’ के साथ अन्‍याय हुआ है। और ये अन्‍याय कुछ खास लोगों की चुप्‍पी के कारण है। उन्‍होंने तो ‘खास’ लोगों के नाम भी ‘आम’ कर दिए। कह दिया कि यदि वो समय पर खड़े होते तो ‘आज़म’ इस कदर बेबस न होते।

देखा जाए तो ‘चचा’ ने इस तरह एक तीर से कई निशाने साधे। जो चचा कभी अपने अब्बा समान बिग ब्रदर के खिलाफ एक शब्‍द नहीं बोले और बुरे से बुरे समय में यही रट लगाए रहे कि वो ‘भाईजान’ की खातिर हर कुर्बानी देने को तैयार हैं, अब उन्‍हीं को सामने रखकर उन्‍होंने टीपू को जता दिया कि मियां… बहुत हुआ। समझ सको तो समझ लो वर्ना लुटिया डूबने में अब बहुत समय बचा नहीं है। हम तो चले ससुराल गलियां, मतलब जहां इज्जत बख्‍शी जाए वहां। अब जो तुम्‍हें सूझे वो तुम करो। घर का घरुआ तो तुम कर ही चुके हो, अब पार्टी का भी करके देख लो।

चचा ने इशारों-इशारों में टीपू को यह भी समझाने की भरपूर कोशिश की है कि बरखुरदार… अभी तुम बाबा को न जान पाए हो और न समझ पाए हो। लाल टोपी बाबा को उसी तरह उकसाती है जैसे वह भोले बाबा के ‘नंदी’ को उकसाती है। पता नहीं किस तरह खुद को कंट्रोल किए बैठे हैं। जिस दिन घुटी हुई खोपड़ी घूम गई, उस दिन न घर के रहोगे न घाट के। यूं भी कहते हैं कि राजा, जोगी, अग्‍नि, जल… इनकी उलटी रीति। बचते रहियो “परसराम”, थोड़ी रखियो प्रीति।।
तुमने तो बाबा से बेमतलब कुछ ज्‍यादा ही मोहब्‍बत पाल ली है, इसलिए उसका खामियाजा जल्‍द भुगतना पड़ सकता है।

पता नहीं ये बुआ भी कहां से सनसनीखेज खबर खोज लाईं कि बबुआ विदेश भागने की फिराक में है। उसने सारा बंदोबस्‍त कर लिया है। मजे की बात यह है कि बुआ ने बाकायदा प्रेस कॉफ्रेंस करके ये जानकारी दी है। खुदा खैर करे।

बुआ की खोजी जानकारी में दम इसलिए भी नजर आ रहा है कि बात-बात पर ‘टि्वटराने’ वाले ‘बबुआ’ ने अब तक बुआ की खबर का खंडन तक नहीं किया।

बुआ का ये भी दावा है कि बीते चुनाव में उनकी सल्तनत को बरगलाकर अपनी बनाने का दावा करने वाले बबुबा से अब सल्‍तनत का भ्रम पूरी तरह टूट चुका है और वो ऐसे मौके की तलाश में है जिससे बबुआ को छठी का दूध याद कराया जा सके।

पता नहीं बबुआ ने अपना नाम क्या सोचकर रखा था, जैसा वो दावा करते हैं कि उनका नाम उनके अम्‍मी-अब्‍बा या दादा-दादी ने नहीं, उन्‍होंने खुद रखा था किंतु उनके काम इस नाम के ठीक उलट लगते हैं। ऐसे में नाम सार्थक हो तो कैसे हो।

अविनाशी, अमर और ब्रह्मांड का स्वामी जैसे बहुअर्थी नाम का ये निचोड़ देखकर तो ऐसा लगता है कि किसी ने सही कहा था- ”मियां…. नाम में क्या रखा है, काम बोलते हैं।

अब आज़म की भैंस भविष्‍य में किस करवट बैठेगी, यह तो वक्‍त ही बताएगा… अलबत्ता इतना अहसास जरूर होने लगा है कि चौबेजी छब्‍बेजी बनने के चक्कर में दुबे जी बनकर रह गए हैं इसलिए कोई नहीं कह सकता कि उनकी उठी पैंठ अब कभी लगेगी भी नहीं। लगेगी तो कब तक लगेगी। ईश्‍वर न करे कि उससे पहले कहीं बाबा भीमराव की उपासक बुआजी के मुंह से निकली यह बात सच साबित हो जाए कि बबुआ तो भाग्‍यो।

-यायावर

-सब माया है-