सुप्रीम कोर्ट ने लगाई लताड़, क्या अब सुधरेंगे दरबारी पत्रकार?

अन्तर्द्वन्द

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस एम्. एफ. जोसेफ और ऋषिकेश रॉय की बेंच ने एक बहुत ही क्रांतिकारी बात कही, इस बेंच ने कहा कि “मेंस्ट्रीम मीडिया बिना किसी रेगुलेशन” के यानी बिना किसी नियंत्रण के चलाए जा रहे हैं उन पर समय-समय पर हेट स्पीच एस को बढ़ावा दिया जा रहा है दोस्तों इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा इतना सब कुछ होने के बावजूद सरकार मूकदर्शक बनी बैठी है. सुप्रीम कोर्ट ने ने यह कहा कि जब यह भड़काऊ डिबेट चल रही होती हैं न्यूज़ एंकर का काम होता है कि उन्हें रोके रेगुलेट करें पर वो ऐसा नहीं करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़ चैनल्स को सजेशन दिया है कि इस प्रकार की डिबेट कोई न्यूज़ चैनल करवाता है या कोई न्यूज़ एंकर ऐसा होने देता है न्यूज़ एंकर को तत्काल ऑफ एयर किया जाना चाहिए.

पर हम सब जानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है यह जो न्यूज़ एंकर और जो न्यूज़ चैनल्स जिनकी सुप्रीम कोर्ट बात कर रहा है वह पिछले लगभग 8 सालों से दरबारी पत्रकारिता के आदी हो चुके हैं इनके पास अकूत संपत्ति आ चुकी है इनके पास अकूत संसाधन आ चुके हैं, इनके पास जनता के मुद्दों को उठाने के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है अगर वह ऐसा करना भी चाहें तो वो जानते हैं किस देश में बढ़ रहे हैं रेड कल्चर से उनको भी निपटना पड़ सकता है उनके यहां भी आई टी, इ डी, और कोई आश्चर्य नहीं होगा कि सीबीआई तक के छापे भी किसी रोज पड़ जाएं.

दोस्तों यह पहली बार नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने मेंस्ट्रीम मीडिया को फटकार लगाई हो इससे पहले एक भड़काऊ चैनल सुदर्शन चैनल की डिबेट पर दायर की गई याचिका सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज की बेंच ने इस मामले पर सरकार का ध्यान खींचा था फिर भी लगातार यह चैनल न जाने कितने नफरत से भरे हुए प्रोग्राम लेकर आता रहा. हम जानते हैं किस देश में 80% मेंस्ट्रीम मीडिया दरबारी हो चुका है जिसके लिए एक विशेष उपनाम भी इजाद किया जा चुका है. जिसे “गोदी मीडिया” भी कहते हैं. यानी कि सत्ता की गोद में खेलने वाली मीडिया. न्यूज़ चैनल की आय का साधन प्रचार ही होता है और उन्हें जितना प्रचार मिलेगा उतना ही उन्हें आर्थिक लाभ होगा और आर्थिक लाभ से ही कोई संस्था चलती है. यही कारण है कि इस देश के प्रमुख उद्योगपति घराने आज देश के सभी न्यूज़ चैनल के मालिक बने बैठे हैं.

और इन उद्योगपति घरानों की और सरकार की आपस में क्या जुगलबंदी है यह किसी से भी छिपा नहीं है. अंबानी घराना देश के ज्यादातर मीडिया प्लेटफार्म पर मालिकाना हक रखता है. “पुरी फैमिली” हो , “अग्रवाल फैमिली” हो या अदानी फैमिली आज की तारीख में कोई भी ऐसा मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं है जहां पर एक उद्योगपति घरानों का दखल ना हो. ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि जिन्हें सरकार इतना कुछ दे रही है जिनके लिए और जिनके हित के लिए नीतियां बनाई जा रही हैं और वो भी तब , जब ओर इस देश में एक उद्योगपति दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे अमीर उद्योगपति बन जाता है और इस देश में लगातार महंगाई के, बेरोजगारी, बेकारी, भ्रष्टाचार के आंकड़ों में बढ़ोतरी हो रही है, तब यह सवाल जरूर बनता है की आर्थिक तंगी से जूझ रहे इस देश का सारा धन, सारे संसाधन और इन के दम पर जो लोग अरबपति बनते जा रहे हैं. जिनके हित साधे जा रहे हैं वही लोग ही इन मीडिया हाउसेस के मालिक हैं, तो आखिर क्यों यह मालिक लोग चाहेंगे कि र सत्ता में बैठे उनके दोस्तों के खिलाफ कोई भी खबर जनता के बीच आए. दोस्तों कुछ न्यूज़ चैनल्स है जो इंडिपेंडेंट तौर पर सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे हैं. और इक्का-दुक्का मेन स्ट्रीम चैनल जैसे एनडीटीवी जैसे चैनल जो सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ बोलते रहे हैं चाहे कोई भी सरकार क्यों ना रही हो. कांग्रेस के समय में यह चैनल कांग्रेस से मुखर होकर सवाल पूछते थे और आज भाजपा के समय में चैनल भाजपा की सरकार से मुखर होकर सवाल पूछते हैं, और स्वस्थ लोकतंत्र में ऐसा होना भी चाहिए पर बैक डोर से एनडीटीवी को घेरने की कवायद जो अडानी के द्वारा शुरू की गई है उसे यह साफ जाहिर है कि सरकार के हितों की रक्षा करने के लिए उनके दोस्त और यह कारपोरेट घराने किसी हद तक भी जा सकते हैं.

ऐसे में यह सोचने वाला मुद्दा है कि सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार का इन न्यूज़ चैनल पर और इसके मालिकों पर कितना असर होता है क्योंकि यह क्योंकि यह उद्योगपति घराने और यह दलाल एंकर ऐसा कभी नहीं चाहेंगे कि वह ऐसा कोई भी प्रोग्राम करें जो जनता के मुद्दों पर केंद्रित हो और सवाल सरकार से पूछे जाए. दोस्तों को भटकाने के लिए आखिर यह न्यूज़ चैनल कुछ ना कुछ ऐसे मुद्दे प्लांट करते हैं जिसके कारण जनता का ध्यान अहम मुद्दों से भटकाए जा सके

जैसा कि दोस्तों आप सब जानते हैं कि कांग्रेस इस वक्त “भारत जोड़ो यात्रा” पर है. चूँकि कांग्रेस भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी है और लगातार पिछले 8 सालों में कांग्रेस का ग्राफ गिरता रहा है. पर कई मोर्चों पर बावजूद इसके कांग्रेस बीजेपी को टक्कर भी देती नजर आई है अगर हम बात करें राज्यों के चुनावों की तो पिछले कुछ राज्यों के चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ एक बड़ी बढ़त मिली थी पर इनमें से अधिकतर राज्यों में बीजेपी ने कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर “ऑपरेशन लोटस” के जरिए अपनी सरकार बनाई है यह बीजेपी की इलेक्टोरल विक्ट्री नहीं है. यह बात भारतीय जनता पार्टी को भी अच्छी तरह से पता है. गौरतलब है कि कांग्रेस की यात्रा दक्षिण में कन्याकुमारी से उत्तर में कश्मीर तक जाएगी इसके बीच में यात्रा के दौरान ऐसे कई राज्य भी शामिल होंगे जहां पर भारतीय जनता पार्टी ने सरकारों को तोड़कर अपनी सरकार बनाई है.

जिनमें प्रमुख तौर पर कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्य शामिल है क्योंकि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को राहुल गांधी के नेतृत्व में दक्षिण में अभी तक इस यात्रा को बहुत अच्छा रिस्पांस मिला है और “भारत जोड़ो यात्रा” पर भारतीय जनता पार्टी के हर एक प्रहार को कांग्रेस की आईटी सेल ने और कांग्रेस के नेताओं ने अच्छी तरह से झेला है और उसका मुंहतोड़ जवाब भी दिया है. इसलिए भारत जोड़ो यात्रा को मिलता यह भारी जनसमर्थन भारतीय जनता पार्टी की चिंताएं बढ़ा रहा है. गौरतलब है कि इस यात्रा से कांग्रेस को कितना फायदा होगा इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस का ग्राफ इस यात्रा के बाद जरूर बढ़ेगा.

बीजेपी की सारी चिंता इस बात की है कि अगर सिर्फ 50 सीटों पर भी गणित गड़बड़ हुआ तो 2024 का रण भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसलिए लगातार भारतीय जनता पार्टी कई तरीके इजाद कर रही है ताकि वह कांग्रेस की इस यात्रा को या तो डिस्क्रेडिट कर सके या इसे बंद करवाया जा सके.

उधर भारतीय जनता पार्टी की पित्र संस्था यानी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कुछ ऐसा कर रही है जिसकी उससे कभी उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी. जैसे कि आर एस एस के सरसंघचालक आज दिल्ली में निजाम कमेटी के प्रमुख निजाम इलियासी से मिले इसी के साथ साथ उन्होंने कई अन्य मुस्लिम नेताओं से कई घंटों तक बातचीत की, कई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उनकी इस बातचीत का अहम केंद्र था दोनों ही धर्मों के बीच में आपसी सामंजस्य और नफरत की बुनियाद को खत्म करना.

दोस्तों समय-समय पर मोहन भागवत कुछ ऐसे बयान देते आए हैं जिन्होंने सभी को चौंका दिया है. एक तरफ यूपी के चुनाव के दौरान हम देखते हैं कि 80 बनाम 20 की राजनीति की जाती है, अभी तक भारतीय जनता पार्टी जहां हार्ड कौर हिंदुत्व की राजनीति करती आई है, उसके कई नेता दंगों में संलिप्त पाए जाते रहे हैं. आठ वर्षों के दौरान भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कई नेता विवादित बयान देते आये हैं, जैसा कि आप जानते हैं – नूपुर शर्मा जैसी भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता जिनके बयान पर पूरे देश में धार्मिक उन्माद भड़क उठता है. इन सब के बावजूद भी मोहन भागवत का इन मुस्लिम नेताओं से और इमाम से मिलना क्या दर्शाता है? क्या भारतीय जनता पार्टी को इस बात का डर है कि कहीं कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से देश में एक धार्मिक सद्भावना ना पैदा हो जाए? या फिर आर एस एस के बारे में आज के दौर में यह प्रचलित मत भी है कि वह बीजेपी की पॉलीटिकल लीक से हटकर, वो अपना एजेंडा खुद तय करती है.

दोस्तों कहा जाता है कि आर. एस. एस. समय से बहुत आगे की नीतियां बनाती है आर. एस.एस. की स्थापना से आज तक का सफर अगर हम गौर से देखें तो हम यह पाएंगे कि इसे 100 साल होने वाले हैं पर आर. एस. एस. के जन्म के दशकों बाद वह में इस देश के सत्ता के केंद्र में अपनी जगह बना पाने में सफल हुई, उसकी इतनी पुरानी तैयारियों का परिणाम पिछले आठ सालों में सफल होता नज़र आया. बीच में अटल जी की भाजपा के नेतृत्व में जोड़ तोड़ की सरकारें बनीं मगर फिर भी इस संगठन को इतने साल लग गए सत्ता के केंद्र में आने में, और सत्ता के केंद्र में आने के बाद जिन नेताओं के हाथ में आर. एस. एस. ने कमाने दी उन्होंने कहीं ना कहीं इस संगठन को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया. जी हां दोस्तों मीडिया के गलियारों में सूत्रों के हवाले से ऐसी खबरें तैरती हुई मिल जाती हैं की आर एस एस के और भारतीय जनता पार्टी के बीच ब्रिज का काम करने वाले तमाम कार्यकर्ता या तो साइडलाइन कर दिए गए हैं और या तो पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी में सम्मिलित हो गए हैं. अगर ऐसा है तो क्या अब आर.एस. एस. अब बीजेपी की पॉलिटिकल लाइन से हटकर कुछ बड़ा प्लान कर रही है?

और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की मीडिया को फटकार और सरकार को जवाब तलब करने की यह घटना बहुत अहम हो जाती है. दोस्तों इतना ही नहीं अभी कुछ ही दिनों पहले सेंट्रल गवर्नमेंट के ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्ट्री के मंत्री अनुराग ठाकुर ने मेंस्ट्रीम मीडिया पर चल रही भड़काऊ डिबेट के विषय में कहा था कि मेंस्ट्रीम मीडिया को ऐसी डिबेट पर लगाम लगानी चाहिए, और उन्होंने कहा था कि उन्हें डिबेट में ऐसे मेहमान नहीं बुलाना चाहिए जो इस तरह की भड़काऊ बातें करते हैं, दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अनुराग ठाकुर वही मंत्री हैं जिन्होंने दिल्ली के एक सभा में “गोली मारो सालों” को जैसे भड़काऊ नारे लगवाए थे. तो उनकी इस बदलती हुई फितरत को क्या समझा जाए? अगर इन सभी घटनाक्रमों को मिला करके देखें तो हमें मोटे तौर पर यह दिखाई पड़ता है कि कहीं ना कहीं मेंस्ट्रीम मीडिया को भस्मासुर बना चुका है, और सिस्टम अब कहीं ना कहीं उसके इस भीषण रूप से खुद भी भयभीत है. दूसरी ओर कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की मुख्य विपक्षी पार्टी अब मोर्चे पर है. और भारतीय जनता पार्टी को कुछ भी करके 2024 का रण जीतना ही है कांग्रेस को सिरे से खारिज कर देना यह भारतीय जनता पार्टी के लिए अभी संभव नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही उनके लिए सबसे बड़ी चैलेंज है. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का 200 सीटों पर सीधा मुकाबला कांग्रेस के साथ ही होने वाला है. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सरकार को जल्द से जल्द अपना रुख साफ करना ही होगा और न्यूज़ चैनल जो ऐसी भड़काऊ डिबेट्स को अपने चैनल पर जगह देते आए हैं जिन डिबेट के कारण उन्हें टीआरपी मिलती आई है क्या वह चैनल नफरत प्रोग्राम को चलाना बंद कर देंगे? दोस्तों अगर आप मेरी राय मांगे तो मैं कहूंगा ऐसा कुछ नहीं होने वाला हां अगर कोई बड़ा डेवलपमेंट इस मुद्दे पर हुआ तो यह होगा कि नफरत ही डिबेट इन चैनलों पर चलेंगी तो जरूर पर किसी और विकृत स्वरूप में.

लेखक: धर्मेश कुमार रानू ( ये लेखक के निजी विचार है)