हिंदी मीडिया ने अभी अपनी क्षमता को पहचाना नहीं : मृणाल पांडे

Press Release

नई दिल्ली. विश्व पुस्तक मेला के चौथे दिन मंगलवार को राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल जलसाघर में छह सत्रों में कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस दौरान शहादत के कहानी संग्रह ‘कर्फ़्यू की रात’; मृणाल पांडे की किताब ‘हिन्दी पत्रकारिता : एक यात्रा’ और सुजाता पारमिता की किताब ‘मानसे की जात’ का लोकार्पण हुआ। वहीं हेमन्त देवलेकर के कविता संग्रह ‘हमारी उम्र का कपास’; महेश कटारे के उपन्यास ‘भवभूति कथा’ और शिवानी सिब्बल के उपन्यास ‘सियासत’ पर बातचीत हुई।

मेले में आने वाले पाठक विविध विषयों की पुस्तकें पसंद कर रहे हैं। जलसाघर में मंगलवार को सोफी का संसार, भवभूति कथा, प्रेम में पेड़ होना, जूठन, तमस, वोल्गा से गंगा, भीमराव अंबेडकर की जीवनी, आपका बंटी, बीच का रास्ता नहीं होता, आधा गाँव किताबों की बिक्री सर्वाधिक हुई।

शहादत के कहानी संग्रह ‘कर्फ़्यू की रात’ का लोकार्पण
जलसाघर में आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में शहादत के कहानी संग्रह ‘कर्फ़्यू की रात’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र के दौरान विभूति नारायण राय और विभास वर्मा बतौर वक्ता मौजूद रहे। परिचर्चा के दौरान लेखक ने कहा कि “धर्म के नाम पर होने वाले सांप्रदायिक दंगे, समुदाय के एक तबके को उनके घरों से निष्कासित कर दिया जाता है। इस कहानी संग्रह में मैंने यही दिखाने की कोशिश की है।” कहानी संग्रह के विषय में विभास वर्मा ने कहा कि “आज़ादी के समय हमने जिस देश की परिकल्पना की थी, जो हमारे संविधान की भूमिका में लिखा गया है, हम कहीं न कहीं उससे फिसलते जा रहे हैं। सभी करप्ट लोग कैसे धर्म के नाम पर अपना व्यापार चलाते हैं। इस कहानी संग्रह में यह देखने को मिलता है।” शहादत की कहानियों के बारे में विभास वर्मा ने कहा कि शहादत न सिर्फ़ सांप्रदायिकता पर सवाल उठाते हैं बल्कि वे अपने समुदाय की कुरीतियों को भी प्रश्नांकित करते हैं। वहीं पर विभूति नारायण राय ने कहा कि “इस कहानी संग्रह में शहादत का अनुभव किया हुआ उत्पीड़न देखने को मिलता है। कोई अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति ही इस तरह की बारीकी से लिख सकता है। इन्होंने वही लिखा जो समाज में देखा है।”

‘हमारी उम्र का कपास’ कविता संग्रह पर कवि से बातचीत
अगले सत्र में हेमंत देवलेकर के कविता संग्रह ‘हमारी उम्र का कपास’ पर मनोज कुमार पांडेय ने कवि से बातचीत की। इस मौके पर अदनान कफील दरवेश ने नए संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ किया। ध्वन्यात्मकता के चित्रण के साथ लिखे गए बाल साहित्य के पाठ से श्रोताओं ने रोमांच का आस्वाद लिया। बातचीत के दौरान हेमंत देवलेकर ने कहा “एक अभिनेता होने के साथ मैंने बच्चे की शारीरिक गतिविधियों को आब्जर्व किया है। बच्चा हमारा हो या अन्य किसी का, हम उससे प्रेम और दुलार कर सकें, अपने बच्चे की तरह देख पाऍं, इस कविता के माध्यम से यही प्रतिष्ठापित करने का प्रयास किया है।” हेमंत देवलेकर ने कहा कि भविष्य में उनके द्वारा लिखे गए हर कविता संग्रह में पहली कवि बच्चे पर आधारित होगी।

‘भवभूति कथा’ उपन्यास पर हुई बातचीत

इसके बाद महेश कटारे के उपन्यास ‘भवभूति कथा’ के कथानक पर राजनारायण बोहरे ने लेखक से बातचीत की। परिचर्चा के दौरान महेश कटारे ने कहा “स्त्री मुक्ति की जिन लड़ाइयाॅं मैंने इस उपन्यास में दिखाया है वो उस समय में थी बल्कि कुछ परिवर्तित रूप के साथ आज भी हैं। परंपरा को तोड़ने की बात संस्कृत नाटकों में हमेशा रही है और परंपरा के कुछ नियमों को तोड़ना ज़रूरी भी है।” बातचीत के दौरान लेखक की स्थिति पर खेद प्रकट करते हुए राजनारायण बोहरे ने कहा कि “नाटक ख़त्म होने के बाद लोग नायक नायिकाओं को याद रखते और सम्मान देते हैं लेकिन लेखक इसमें पीछे रह जाता।” इस पर महेश कटारे ने कहा “यह तो लेखक की नियति है कि उसे सम्मान कम ही मिलता है। यह सभी नाटककारों के साथ होता है, मेरे साथ भी हुआ है, भवभूति के साथ भी हुआ होगा।”

हिंदी मीडिया ने अभी अपनी क्षमता को पहचाना नहीं : मृणाल पांडे

कार्यक्रम के अगले सत्र में मृणाल पाण्डे की किताब ‘हिन्दी पत्रकारिता : एक यात्रा’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में प्रमोद जोशी और हर्ष रंजन ने किताब पर लेखक से बातचीत की। वहीं सत्र का संचालन मनोज कुमार पाण्डेय ने किया। इस दौरान मृणाल पाण्डे ने कहा “हिंदी भाषा की प्रकृति रही है कि वह जिस देश में जाती है उसी में रच जाती है। इस तरह का परिर्वतन अच्छा संकेत नहीं है जब तक प्रतिरोध नहीं हो सकता।” वर्तमान में मीडिया की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा “मीडिया में आज मुजरा हो रहा है। स्त्री पत्रकारों को टी.वी. में गुड़िया बनाकर रख दिया है। दुःख की बात है यह हमारे युग का प्रतिबिंब है।” वहीं पर हिंदी पत्रकारिता के विषय में मृणाल पाण्डे ने कहा कि हिंदी को पैसों की ज़रूरत नहीं है, शौहरत की ज़रूरत नहीं है बल्कि धीरज की ज़रूरत है। हिंदी ने तकनीक की बेहतरीन हुनर हासिल कर लिया है बस अपनी क्षमता को नहीं पहचाना। हमें इसे समझना होगा। हमें सर्वाधिक संप्रेषण अपनी भाषा में ही करना होगा और भाषा के प्रति हीन भावना से बाहर आना होगा।”

कार्यक्रम के अगले सत्र में सुजाता पारमिता की किताब ‘मानसे की जात’ का लोकार्पण हुआ। लोकार्पण के बाद जय प्रकाश कर्दम, मोहनदास नैमिशराय, हेमलता महिश्वर
और श्योराज सिंह बेचैन ने किताब पर बातचीत की। कार्यक्रम का संचालन मनोज कुमार पाण्डेय ने किया।

परिचर्चा के दौरान श्योराज सिंह बेचैन ने सुजाता पारमिता के बारे में कहा “नाटकों और लोककलाओं के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। इसके माध्यम से वे अपनी चेतना को समाज के सामने लाती थी।” हेमलता महिश्वर ने कहा “अपनी पुस्तक में स्त्री मुक्ति के सवाल उन्होंने थेरीगाथाओं से उठाया है। अपनी शारीरिक अस्वस्थताओं के बावजूद महिला आरक्षण जैसे मुद्दों को आँकड़ों के साथ प्रस्तुत करने की क़ुव्वत उनमें थी।” वहीं जय प्रकाश कर्दम ने कहा कि “हमारा समाज तब तक उन्नत नहीं होगा जब तक महिलाओं की समुचित भागीदारी नहीं होगी। इसलिए महिला कोड बिल और अन्य स्त्री संबंधित सवालों पर पर उन्होंने आलोचनात्मक कलम भी चलाई है।”

शिवानी सिब्बल के उपन्यास ‘सियासत’ पर हुई बातचीत
कार्यक्रम के अंतिम सत्र में शिवानी सिब्बल के उपन्यास ‘सियासत’ पर अनुवादक प्रभात रंजन ने बातचीत की। इस उपन्यास में निजी महत्त्वाकांक्षाओं, पारिवारिक सीमाओं और सामाजिक बदलावों की एक दिलचस्प कहानी है। नए भारत के बदलते यथार्थ को लेखक ने इस उपन्यास में बारीकी से चित्रित किया है। दिल्ली के व्यावसायिक एवं राजनीतिक परिवारों की गोपन दुनिया का परीक्षण करता यह उपन्यास भारतीय परिवारों के भीतर की जटिलताओं, सीमाओं और महत्वकांक्षाओं के टकराव को बखूबी बयान करता है। परिचर्चा के दौरान उपन्यासकार ने युवाओं को संदेश के रूप में कहा “वही लिखें जो आपके दिल में है, इंसपिरेशन कहीं से नहीं मिलती, ख़राब लिखो, रिड्राफ्ट करो इसी से सुधार होगा। लेखक बनने के लिए रोज-रोज लिखना पड़ता है।”

जलसाघर में कल के कार्यक्रम

जलसाघर में कल दिनांक 14 फरवरी (बुधवार) को दोपहर 12 बजे से कार्यक्रम शुरू होगा। पहले सत्र में एस. इरफान हबीब द्वारा सम्पादित किताब ‘भारतीय राष्ट्रवाद : एक अनिवार्य पाठ’ पर बातचीत होगी। दूसरे सत्र में ‘औरतनामा’ विषय पर वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा से हरियश राय बातचीत करेंगे। अगले सत्र में मोहनदास नैमिशराय की किताब क्रान्तिपुरुष ज्योतिराव फुले का लोकार्पण और उस पर बातचीत होगी। इसके बाद शिरीष मौर्य के कविता संग्रह ‘धर्म वह नाव नहीं’ का लोकार्पण होगा। अगले सत्र में भगवानदास मोरवाल के उपन्यास ‘मोक्षवन’ पर बातचीत होगी। अंतिम सत्र में एकता सिंह की पुस्तक ‘तलाश ख़ुद की’ का लोकार्पण होगा जिसमें ओम निश्चल लेखक से बातचीत करेंगे।

-हिमांशु जोशी