गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन महाविद्या तारा देवी की पूजा-अर्चना की जाती है. मां तारा देवी को श्मशान की देवी कहा जाता है. साथ ही यह भी माना जाता है कि वह मुक्ति देने वाली देवी हैं. बौद्ध धर्म में भी मां तारा की पूजा-अर्चना को बहुत महत्व दिया जाता है. मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने भी मां तारा की आराधना की थी और यही नहीं गुरु वशिष्ठ ने भी पूर्णता प्राप्त करने के लिए मां तारा की आराधना की थी.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां तारा देवी की उत्पत्ति उस समय हुई थी जब समुद्र मंथन से जब विष निकला तो उसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था. विष ग्रहण करने के बाद भगवान शिव के शरीर में अत्याधिक जलन और पीड़ा होने लगी थी. भगवान शिव को पीड़ा से मुक्त करने के लिए मां काली ने दूसरा स्वरूप धारण किया और भगवान शिव को स्तनपान कराया, जिसके बाद उनके शरीर की जलन शांत हुई थी. तारा देवी मां काली का ही दूसरा स्वरूप हैं.
मां तारा देवी की कथा
मां तारा देवी की उत्पत्ति से जुड़ी एक और पौराणिक कथा प्रचलित है. जिसके अनुसार, मां तारा देवी का जन्म मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में चोलना नदी के किनारे पर हुआ था. हयग्रीव नाम के एक दैत्य का वध करने हेतु मां महाकाली ने नील वर्ण धारण किया था. महाकाल संहिता के अनुसार, चैत्र शुक्ल अष्टमी को देवी तारा प्रकट हुई थीं इसलिए यह तिथि तारा-अष्टमी कहलाती हैं और चैत्र शुक्ल नवमी की रात्रि को तारा-रात्रि कहा जाता है.
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव जी ने मां पार्वती को बताया कि आदि काल में आपने भयंकर मुख वाले रावण का विनाश किया, तब सेआपका वह स्वरूप तारा नाम से जाना जाता है. उस समय सभी देवताओं ने आपकी स्तुति की थी. आप अपने हाथों में खड़ग, नर मुंड, वार तथा अभय मुद्रा धारण की हुई थी. मुख से चंचल जिह्वा बाहर कर आपने भयंकर रूप धारण किया था. आपका वह विकराल रूप देख सभी देवता भयभीत होकर कांप रहे थे. आपके विकराल भयंकर रुद्र रूप को देखकर शांत करने के लिए ब्रह्मा जी आपके पास गए थे.
रावण वध के समय आप अपने रौद्र रूप के कारण नग्न हो गई थी तथा स्वयं ब्रह्मा जी ने आपकी लज्जा निवारण हेतु आपको व्याघ्र चर्म प्रदान किया था. इसी रूप में देवी लम्बोदरी के नाम से विख्यात हुई. तारा-रहस्य तंत्र के अनुसार, भगवान राम निमित मात्र ही थे. वास्तव में भगवान राम की विध्वंसक शक्ति देवी तारा ही थी, जिन्होंने लंका पति रावण का वध किया था.
– एजेंसी