अपना आत्मसम्मान बरक़रार रखने के लिए ज़रूरी है महिलाओं की वित्तीय आत्मनिर्भरता

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हाल तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन अरुंधती भट्टाचार्य थीं, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन अर्चना भार्गव हैं और मोर्गन स्टेनले की मैनेजिंग चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी जैसे अहम प्रोफ़ेशंस में भी महिलाओं की भागीदारी अच्छी-ख़ासी है।

एक तरफ़ ख़ुद से ज़्यादा कमाने वाली या कमाने वाली महिलाओं से पतियों को तुलनात्मक हीनता महसूस होती रहती है और वे गाहे-बगाहे ताना मारते रहते हैं कि कमाती हो तो ख़ुद को बॉस मत समझो या ज़्यादा इतराओ मत। दूसरी ओर न कमाने वाली महिलाएं जब किसी काम के लिए पैसे मांगती हैं तो कुछ पति बातों ही बातों में सुना देते हैं कि पैसे ज़रा देखकर ख़र्च किया करो। कमाने वाले को पता चलता है कि कितनी मुश्किल से पैसा कमाया जाता है।

शादी हुई तो काम क्यों छूटा?

शानदार शैक्षणिक रिकॉर्ड, अच्छी-ख़ासी डिग्री और प्रतिष्ठा वाली नौकरी- ये सब होने के बावजूद ज़्यादातर महिलाओं को शादी के बाद अपनी वित्तीय ज़रूरतों के लिए पति की सहमति और स्वीकृति पर निर्भर रहना पड़ता है। बच्चे होने के बाद बहुत-सी महिलाएं जॉब छोड़ देती हैं और इनमें से बहुत कम ही दोबारा जॉइन करती हैं। कुछ अपनी मर्ज़ी से, कुछ सास-ससुर या पति के दबाव से, तो कुछ बच्चों में ही अपना भविष्य देखने की वजह से नौकरी नहीं करतीं। कई घर और ऑफ़िस दोनों जगह के दबाव को न झेल पाने की वजह से नौकरी छोड़ने के लिए बाध्य हो जाती हैं।

हालांकि कुछ समय तक तो सबकुछ ठीक-ठाक चलता है, लेकिन बाद में जब बच्चे बड़े होने लगते हैं और अपना-अपना कॅरियर संवारने में जुट जाते हैं तो इन महिलाओं को बड़ा अकेलापन और उपेक्षा-सी महसूस होने लगती है। वे अपने लिए कुछ भी ख़रीदती हैं, ख़ुद की ख़ुशी के लिए पैसे ख़र्च करती हैं या शौक़ पर पैसा लगाती हैं तो उन्हें अपराध बोध होता है। वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर न हो पाना इस उम्र में ही सबसे ज़्यादा खलता है।

क्योंकि अनहोनी कहकर नहीं आती

कल को पति के व्यवसाय में व्यवधान आ जाए, नुक़सान लग जाए, उन्हें कोई गंभीर बीमारी हो जाए, नौकरी छूट जाए या बेटा-बेटी आपकी उम्मीदों पर खरे न उतरें और अपनी व्यस्तता में आपको भूल जाएं, तो ऐसे समय में हर महिला को अपनी वित्तीय आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर होना ज़रूरी है।

आत्मसम्मान बरक़रार रखने के लिए महिलाओं की वित्तीय स्वनिर्भरता ज़रूरी है। निजी आवश्यकता की कई तरह की चीज़ें लेनी होती हैं, ज़रूरत पड़ने पर अपने मित्रों की या माता-पिता की आर्थिक मदद करनी होती है या भाई-भाभियों के लिए उपहार आदि ख़रीदने होते हैं। इन सब चीज़ों के लिए बार-बार पति या बेटे के आगे हाथ फैलाना गवारा नहीं होता।

ख़ुद को असहाय समझने की नौबत न आए इसके लिए हाथ में दो पैसे रहने ज़रूरी हैं। घरेलू हिंसा की शिकार होने या विवाहित व कमाऊ बेटे-बेटी की उपेक्षा का शिकार होने पर हाथ में पैसा रहना ज़रूरी है।

प्रतिष्ठा व सम्मान पाने के लिए कमाई करना और व्यस्त रहना आवश्यक है। साथ ही अपनी सोसायटी या रिश्तेदारी की अन्य महिलाओं व अपनी संतान का रोल मॉडल बनने के लिए भी आपका आत्मनिर्भर होना ज़रूरी होता है।

देश की जीडीपी भी बढ़ती है, अगर कामकाजी महिलाओं की आबादी ज़्यादा हो। महिलाओं की वित्तीय सक्रियता और उनका वित्तीय रूप से संपन्न होना किसी भी देश के लिए फ़ायदेमंद होता है। इससे वे एक अच्छी उपभोक्ता बन सकती हैं क्योंकि उनके पास मनचाही चीज़ें ख़रीदने की शक्ति बढ़ती है।

जीवन की सांझ के लिए महिलाओं को अपने पास कुछ पैसा ज़रूर रखना चाहिए। वैज्ञानिक अध्ययनों और कई अनुसंधानों में साबित हो चुका है कि महिलाओं की औसत आयु पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है।

अपने हक़ के लिए पहल करें

धन की आवश्यकता के लिहाज़ से परिवार में स्त्रियों, ख़ासतौर पर बड़ी उम्र की महिलाओं की गिनती सबसे आख़िर में आती है। यही माना जाता है इन्हें पैसों की क्या ज़रूरत हो सकती है। क्या वाक़ई कोई ऐसा वयस्क होता है, जिसके अपने ख़र्चे या अपनी ज़रूरतें न होती हों, जिनके लिए वो किसी से कहने में न हिचकता हो?

मन मारकर रहने वाले को कम ज़रूरतों वाला इंसान मान लेना उसके प्रति अन्याय ही है, और स्त्रियां अपने हक़ में पहल न करके, स्वयं यह अन्याय ख़ुद पर करती हैं। जीवन के सबसे अहम दो पहलुओं में स्त्रियां कमज़ोर पड़ जाती हैं – पहला स्वास्थ्य और दूसरा धन। इन दोनों पर इसलिए ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि इनके अभाव में वे न तो ख़ुद के लिए कुछ कर पाएंगी, न दूसरों के लिए।

– एजेंसी