आगरा महापौर चुनाव में जातिगत समीकरण बना भाजपा के लिए चुनौती, वाल्मीकि और खटीक समाज की बेरुखी न पड़ जाए भारी

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आगरा: नगर निगम चुनावों में बहुजन समाज पार्टी की मेयर प्रत्याशी लता वाल्मीकि अपने समाज के लोगों के बीच जाकर उन्हें लामबंद कर रही हैं। वाल्मीकि समाज की बढ़ती गोलबंदी भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती बनती जा रही है।

बता दें कि वर्ष 2012 में भाजपा से मेयर का चुनाव लड़े इंद्रजीत आर्य ने बसपा प्रत्याशी करतार सिंह भारतीय को 15 हजार से भी कम वोटों के अंतर से हराया था। इंद्रजीत आर्य वाल्मीकि समाज से हैं, वहीं करतार सिंह भारतीय जाटव समाज से हैं। बसपा अपनी जीत के लिए इस अंतर को खत्म करने के लिए इस बार वाल्मीकि समाज से मेयर प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है। शहर में वाल्मीकि समाज के एक लाख से अधिक मतदाता हैं। देखा जाए तो इस बार बसपा ने भाजपा का ही दांव खेला है।

रणनीति के मुताबिक बसपा ने शहर के वाल्मीकि समाज को रिझाने के लिए लता वाल्मीकि को मैदान में उतारा है। इससे बसपा के परंपरागत वोटर्स के साथ जब वाल्मीकि समाज जुड़ेगा तो बसपा पहले से मजबूत हो जाएगी और भाजपा इससे कमजोर होगी।

भाजपा ने हेमलता दिवाकर कुशवाह को प्रत्याशी बनाया है। “सबका साथ और सबका विकास तथा सबका विश्वास” का नारा लगाकर भाजपा यहां खुद को सबसे मजबूत मान रही है लेकिन जातिगत वोटों के आंकड़े भाजपा के इस नारे की हवा निकालते नजर आ रहे हैं।

भाजपा को इस बार खटीक और माहौर समाज की बेरुखी का नुकसान भी झेलना पड़ सकता है। स्थानीय स्तर पर भाजपा में खटीक और माहौर समाज खुद उपेक्षित महसूस कर रहा है। खटीक समाज के नेता भाजपा से मेयर की टिकट मांग रहे थे। टिकट की दौड़ में आखिर तक उनका नाम उछलता रहा लेकिन अंत में निराशा हाथ लगी। नाराज होकर खटीक समाज ने भाजपा के खिलाफ खटीक पाड़ा में चुनाव बहिष्कार करने का निर्णय लिया। इसके बाद भाजपा की ओर से खटीक समाज को मनाने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए हैं। खटीक समाज के शहर में करीब 60 से 80 हजार वोटर्स हैं।

दूसरी ओर मुस्लिम मतदाता इस बार साइलेंट मोड पर है। मुस्लिम मतदाता खुलकर किसी दल के साथ दिखाई नहीं दे रहे हैं। वे चुनावी हवा देख रहे हैं। मुस्लिम मतदाताओं से बात की गई तो अधिकांश लोगों का कहना था कि अभी कुछ तय नहीं है। वह देख रहे हैं कि सपा और बसपा में कौन कितना ज्यादा मजबूत है। शहर में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या दो लाख से अधिक है।