कश्मीरी पंडितों की हत्या करने वाला फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे की भी हो रही खूब चर्चा

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जम्मू-कश्मीर से कश्मीरी पंडितों की हत्या और पलायन पर बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स के बाद से कश्मीर पंडितों का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है। उस दौरान कई कश्मीरी पंडितों की हत्या करने वाला फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे की भी खूब चर्चा हो रही है।

एक इंटरव्यू में बिट्टा कराटे ने सार्वजनिक रूप से 42 कश्मीरी पंडितों की हत्या की बात स्वीकार की थी। बताया जाता है कि इशफाक मजिद वानी नाम का आदमी उसे कश्मीर हिंदुओं को मारे का आदेश देता था। 1990 में जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ उसके बाद 1994 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने सरेंडर कर दिया।

राज्य सरकार के अनुसार फारूक अहम डार को गिरफ्तार किया गया जबकि डार का कहना था कि उसने सरेंडर किया। डार पर आतंकवाद के 19 केस दर्ज हुए। डार ने अपने खास दोस्त सतीश टिक्कू की हत्या की थी। सतीश उसके घर के सामने रहता था।

…तो अपनी मां को भी मार देता

पत्रकार मनोज रघुवंशी ने सबसे पहले बिट्टे कराटे का इंटरव्यू लिया था। उस इंटरव्यू के बारे में मनोज रघुवंशी कहते हैं कि सबसे शॉकिंग बात उस इंटरव्यू में थी कि मैंने जब उससे पूछा कि इशफाक मजीद वानी अगर तुम्हे हुक्म देता कि तुम अपने सगे भाई को मार दो तो तुम मार देते। इसके जवाब में बिट्टे कराटे का कहना था कि वह मार देता। अगर वो कहता कि अपनी मां को जान से मार दो तो मैं मार देता। इसके पीछे की जो वजह बिट्टा कराटे ने बताई थी वह थी कि आतंकी संगठन में शामिल होने से पहले हलफ यानी शपथ लेनी पड़ती है।

शपथ के अनुसार उन्हें जो भी हुक्म मिलता है उसे पूरा करना होता है। रघुवंशी का कहना है कि जो आदमी अपने कारण के लिए खुद की मां को मारने को तैयार है, वह भारत मां को भी मार सकता है। उसे भारत के टुकड़े करने से कोई गुरेज नहीं होगी।

जब खबर से नाराज हो गए थे फारूक अब्दुल्ला

मनोज रघुवंशी ने कहा कि जुलाई 1989 में उनकी कश्मीर पर पहली खबर आई थी। ये दुनिया की पहली स्टोरी थी जिसमें बताया गया था कि कश्मीर में आतंकवाद फूटने वाला है। उस समय फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थी। इस खबर से फारूक अब्दुल्ला इतने नाराज हुए कि वे दिल्ली आए और प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिले। उस समय बूटा सिंह गृहमंत्री थे, उनसे मुलाकात की। उन्होंने कहा कि मनोज को और मधु त्रेहन को गिरफ्तार कर लो। रघुवंशी ने कहा कि नाराज तो वह हो ही जाते थे लेकिन हम लोग अपना काम करते जाते थे।

श्रीनगर की जामिया मस्जिद में जला रहे थे भारत का झंडा

जर्नलिस्ट मनोज रघुवंशी ने बताया कि उस समय दिनेश सिंह विदेश मंत्री थे। उन्होंने इस बारे में संकेत दिए थे कि कश्मीर में कुछ फूट सकता है। इसके बाद वे लोग ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए फिर से कश्मीर पहुंचे। वहां उस बात की पुष्टि हो गई। श्रीनगर की जामिया मस्जिद में भारत का झंडा जला रहे हैं। नकाबपोश आतंकी हाथ में एके-47 लिए हुए कह रहे थे कि भारत हमारा दुश्मन है, आर्मी हमारी दुश्मन है। जब ये बातें वेरिफाई हुई तब कश्मीर पर आतंकवाद की शुरुआत होने वाली रिपोर्ट फाइल की गई थी।

पहले पेज पर क्यों नहीं थी पलायन की खबरें

जम्मू-कश्मीर से जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हो रहा था तो उससे जुड़ी खबरें न्यूजपेपर में चौथे-पांचवें पन्ने पर आती थी। इस बारे में सवाल के जवाब में मनोज रघुवंशी कहते हैं कि अगर हमें कोई बात दिखाई दे गई तो उसके बारे में कुछ करना पड़ेगा, करने की हिम्मत नहीं है। इसलिए उससे नजरें हटा लो और कह दो कि दिखाई नहीं दे रहा है। कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर डिनायल सिंड्रोम दिखाई दिया। जब भी कोई नेगेटिव बात होती है तो मानवीय प्रवृत्ति होती है उसे नकारने की। यह दिमाग की कमजोरी है

-एजेंसियां