पाकिस्तान आज जिस स्थिति में है, उसकी वजह से न केवल वहां के जानकार घबराए हुए हैं बल्कि अब दुनिया के आर्थिक विशेषज्ञों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। विशेषज्ञों की मानें तो पाकिस्तान अगर पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर होता है तो फिर यह एक वैश्विक खतरा होगा। अगर इससे बचना है तो फिर पाकिस्तान की सरकार को बड़े पैमाने पर बदलाव करने होंगे। इन बदलावों में पाकिस्तान की सरकार में होने वाले बदलावों को भी विशेषज्ञ काफी जरूरी मानते हैं। इन विशेषज्ञों की मानें तो पाकिस्तान को इस समय बड़े स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय मदद की जरूरत है। उसकी नजरें अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) से मिलने वाली मदद पर थीं मगर संगठन की तरफ से भी कोई कदम फिलहाल उठाया नहीं जा रहा है। ऐसे में अब जानकार मान रहे हैं कि कहीं पाकिस्तान का आर्थिक संकट दुनिया को भी खतरे में न डाल दे।
अगस्त 2021 से हालात बुरे
अगस्त 2021 से पाकिस्तान की स्थिति बिगड़नी शुरू हुई। इस साल अफगानिस्तान से अमेरिका ने अपनी सेनाओं को वापस बुला लिया और यहीं से मुल्क की बदहाली शुरू हो गई। जैसे ही अमेरिका अफगानिस्तान से गया पाकिस्तान पर सुरक्षा चुनौतियां बढ़ गईं। उस पर आतंकी संगठनों के और आतंकियों के खिलाफ एक्शन लेने का दबाव बढ़ने लगा। इसके अलावा राजनीतिक अस्थिरता ने भी आग में घी का काम किया।
सरकार ऐसे फैसले लेने के लिए मजबूर हो गई जो सिर्फ जनता को खुश कर सकें। ये फैसले कम समय के लिए थे मगर इन्होंने देश को जो नुकसान पहुंचाया उसका असर आज तक देखा जा सकता है। बिना किसी रणनीति के इन फैसलों को लागू कर दिया गया। इसके बाद सितंबर 2022 में जब बाढ़ आई तो इसने हालात बद से बदतर कर दिए। इस बाढ़ ने करीब 20 लाख घरों को तबाह कर दिया और असाधारण तौर पर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा दिया। अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पर पहुंच गई थी जहां पर कोई नतीजा मौजूद नहीं था।
हर कोई करना चाहता है मदद
हर कोई मुल्क को इस स्थिति से बाहर निकालने की कोशिशें कर रहा है। आईएमएफ की तरफ से देश को पिछले 35 सालों में 13 बार कर्ज दिया जा चुका है। सऊदी अरब जो देश का रणनीतिक साझीदार है, उसने भी देश में बड़ी मात्रा में निवेश किया। इस देश ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में कई साल तक साथ दिया। अमेरिका, ईरान, चीन, यूएई, कतर और कई और देशों ने भी संकट में देश का साथ देने की बात कही है। आईएमएफ की तरफ से एक और बेलआउट पैकेज की इच्छा जताई गई है। हालांकि इस बार जो शर्तें रखी गई हैं उनके जरिए यह सुनिश्चित करने की कोशिशें की जा रही हैं कि यह संकट बार-बार न पैदा हो।
सऊदी अरब ने भी पिछले दिनों पाकिस्तान से आर्थिक सुधारों की मांग की है। हैरानी की बात है कि देश के वित्त मंत्री इशाक डार ने आईएमएफ के पैकेज को 31 जनवरी को मानने से इंकार कर दिया था। इसकी वजह यही है कि पीएम शहबाज शरीफ की सरकार जानती है कि अक्टूबर में होने वाले चुनावों में ऐसा करने से उसे नुकसान हो सकता है। हाल में आई कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए राजी हो गया था। बेलआउट पैकेज के तहत भी देश को कोई ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है।
क्या हैं देश के सामने चुनौतियां
अगर पाकिस्तान ने अपनी सरकार को स्थिर नहीं किया तो फिर कई तरह की खराब स्थितियां पैदा हो सकती हैं। देश का रक्षा बजट, आम बजट का 17.5 फीसदी है। विशेषज्ञों की मानें तो इतना बड़ी रकम रक्षा में खर्च करने से बेहतर होता कि देश के अर्थव्यवस्था संकट को सुलझाने के प्रयास किए जाते। जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान में जो चीजें चलती आ रही हैं, वो बदलती हुई नहीं दिख रहीं। चीनी कर्ज जो कुल राष्ट्रीय कर्ज को 30 फीसदी है, वह आगे बढ़ सकता है और ऐसे में पाकिस्तान को चीनी प्रभाव के आगे खुद को सरेंडर करना पड़ सकता है। वह अपनी संप्रभुता को भी गंवा सकता है और चीन का गुलाम बन सकता है।
आतंकी हो जाएंगे मजूबत
इसके अलावा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तानी (टीटीपी) के नेतृत्व वाले आतंकवादी संगठन में मजबूत होते जा रहे है। आर्थिक संकट की वजह से उन्हें बड़ा बढ़ावा मिल सकता है। साथ ही यहां के नागरिक जिन्हें कुछ भी नहीं मालूम है वो सरकार को दोष दे सकते हैं। ऐसे पाकिस्तान में अव्यवस्था को बढ़ेगी। आर्थिक जानकारों की मानें तो पाकिस्तान एक परमाणु क्षमता वाला देश हे। इन हालातों में देश में कोई भी तख्तापलट फिलहाल नामुमकिन है। पाकिस्तान पर पूरी से नियंत्रण गंवाना एक वैश्विक खतरा साबित हो सकता है।
अर्थव्यवस्था के जानकारों के मुताबिक इस संकट का हल निकाला जाना बहुत जरूरी है। पाकिस्तान को अपनी मदद खुद करनी होगी।
Compiled: Legend News
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.