ओटीटी पर फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद से फिल्मों के लिए केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड सर्टिफिकेट की अहमियत कुछ ज्यादा नही रह गई है क्योंकि घर में बच्चों द्वारा मोबाइल पर क्या देखा जा रहा है, इसमें माता-पिता का नियंत्रण सीमित है।
फ़िर भी ‘गहराइयां’ के दो दृश्य ऐसे हैं जिनके लिए फ़िल्म को ‘ए’ की जगह ‘यू-ए’ सर्टिफिकेट दिया जाना चाहिए था।
हम भारत में अभी भी सेक्स एजुकेशन पर ज्यादा बात नही करते और भारतीय परिवारों में लड़कियों द्वारा रिश्तों में की गई गलती पर पर्दा डाल दिया जाता है। दीपिका पादुकोण ने अपने बेहतरीन अभिनय के साथ फ़िल्म में ‘दो’ ऐसे दृश्य दिए हैं जिनके बारे में हर माता-पिता को अपनी समझदार होती बेटी को समझाना चाहिए।
गौर करने वाली बात यह है कि फ़िल्म में मुश्किल समय के दौरान अपनी बेटी को समझने वाला भी उसका पिता ही है।
फ़िल्म में मिडल फिंगर दिखाए जाने पर बोले जाने वाले शब्द की भरमार है पर आप सिर्फ़ उसकी वज़ह से बच्चों को साथ बैठा इस फ़िल्म को देखने से डरेंगे तो यह जान लीजिए कि बच्चों के बीच यह शब्द अब आम है।
यंग सोच रखने वाले यंग डायरेक्टर शकुन बत्रा इस बार यंग लोगों के लिए गहराइयां लेकर आए हैं। साल 2012 में निर्देशक के तौर पर अपनी पहली फ़िल्म ‘एक मैं और एक तू’ से शुरुआत करने वाले शकुन साल 2016 में ‘कपूर एंड सन्स’ से चर्चा में आए थे और अब उन्होंने ‘गहराइयां’ से हिंदी सिनेमा में खुद को साबित करने की कोशिश करी है
त्रिकोणीय प्रेम सम्बन्ध विषय पर आधारित यह फ़िल्म दर्शकों को बीते कल से सीख लेने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से बनाई गई है।
दीपिका ने फ़िल्म में अलीशा का किरदार निभाया है, जो एक योगा इंस्ट्रक्टर है। दीपिका का चेहरा हमेशा की तरह ताज़गी भरा लगा है और उसमें चार चांद लगाती है उनकी ड्रेस।
उन्होंने अपने किरदार को पूरी तरह से जिया है और सबसे ज्यादा प्रभावित भी करती हैं।
फ़िल्म की पटकथा कसी हुई है और एक घण्टा पूरा होने के बाद फ़िल्म की कहानी गति पकड़ती है, जो आख़िर तक दर्शकों को खुद से थामे रखती है।
जेन के किरदार में सिद्धान्त चतुर्वेदी दीपिका के बाद अपने अभिनय से सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं, फ़िल्म में उनकी ड्रेसों का चयन भी शानदार है।
‘गली ब्वॉय’ के बाद सिद्धान्त के पास यहां काफ़ी कुछ करने के लिए था और उन्होंने इस फ़िल्म से अपनी अलग पहचान बनाई भी है।
जेन की गर्लफ्रैंड बनी अनन्या पांडे ‘टीया’ के किरदार में हैं और अनन्या ने अपनी पिछली फिल्मों से काफ़ी अच्छा किया है।
धैर्य करवा और नसरुद्दीन शाह ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। धैर्य को हम इससे पहले ’83’ में देख चुके हैं। रजत कपूर को कैमरे के सामने बहुत वक्त मिला है और फ़िल्म में उनका होना भर ही काफ़ी होता है।
फ़िल्म के गीतों की बात की जाए तो सिर्फ़ ‘बेक़ाबू’ ही ऐसा गाना है जिसे दर्शक लंबे समय तक अपनी कार में सफ़र के दौरान सुनना पसंद करेंगे।
गहराइयां का बैकग्राउंड स्कोर बेहतरीन है, फ़िल्म देखते यह माहौल सा बना देता है। समुद्र की लहरों की आवाज़ बार-बार दिल को छूती जाती हैं।
फ़िल्म का छायांकन भी बेहतरीन है। मुंबई में समुद्र की खूबसूरती हो या होटल ताज, सब कुछ आंखों को रिझाता जाता है।
फ़िल्म की विशेषता यह है कि इसमें दीपिका और सिद्धान्त के बीच के करीबी दृश्य इस तरह फिल्माए गए हैं कि वह अश्लीलता की श्रेणी में नही लगते बल्कि उनके स्पर्शों से सीधे दिल में असर होता है।
फ़िल्म में नए ज़माने के रिश्तों को भी दिखाया गया है जो चेहरों पर हावभावों के साथ मोबाइल पर ही बनते हैं। ये अलग बात है कि साथी से वीडियो कॉल के दौरान किसी दूसरे के नोटिफिकेशन वाला सीन दिखा रिश्ते टूटने का कारण भी दिखा दिया गया है।
फ़िल्म अपने अंत में हैरान करती है। फ़िल्म में सिर्फ एक कमी ही है, जो इसके हिट न होने का कारण भी बनेगी। वह यह कि इसमें अंग्रेज़ी में बोले गए ‘ऑलवेज चूस टू मूव ऑन’, ‘वॉट्स योर टाइप’ जैसे कुछ संवाद शामिल हैं।
इन्हें हिंदी में प्रभावी ढंग से पेश कर हिंदी सिनेमा के आम दर्शकों के ज्यादा क़रीब पहुंचा जा सकता था।
‘जब कोई तुम्हारे बारे में न सोच रहा हो न खुद को अपने बारे में सोचना पड़ता है’ संवाद इसका उदाहरण है।
निर्देशक- शकुन बत्रा
निर्माता- धर्मा प्रोडक्शन
अभिनय- दीपिका पादुकोण, सिद्धान्त चतुर्वेदी, अनन्या पांडे, धैर्य करवा, रजत कपूर, नसरुद्दीन शाह
संगीत- कबीर कठपालिया
ओटीटी- अमेज़न प्राइम वीडियो
रेटिंग- 2.5/5
-हिमांशु जोशी
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