छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर: जहां दो नहीं, तीन नवरात्र मनाए जाते हैं

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दशहरे पर माता बस्तर दशहरा में शामिल होने मंदिर से बाहर निकलतीं हैं। बस्तर दशहरा में रावण का दहन नहीं बल्कि रथ की नगर परिक्रमा करवाई जाती है। जिसमें माता का छत्र विराजित किया जाता है। जब तक दंतेश्वरी माता दशहरा में शामिल नहीं होती हैं, तब तक यहां दशहरा नहीं मनाया जाता है। माता महा-अष्टमी के दिन दर्शन देने निकलती हैं। बस्तर में मनाए जाने वाला दशहरा पर्व की रस्में 75 दिनों तक चलता है। यह परंपरा करीब 610 साल पुरानी है।

तेलंगाना, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के लोगों की भी इष्ट देवी हैं मां दंतेश्वरी

आदिकाल से मां दंतेश्वरी को बस्तर के लोग अपनी कुल देवी के रूप में पूजते हैं। ऐसा माना जाता है कि, बस्तर में होने वाला कोई भी विधान माता की अनुमति के बगैर नहीं किया जाता है। इसके अलावा तेलंगाना के कुछ जिले और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के लोग भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी मानते हैं। वहां के लोग भी बताते हैं कि काकतीय राजवंश जब यहां आ रहे थे तब हम कुछ लोग वहां रह गए थे। हम भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजते हैं।

मां दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्रनाथ जिया ने बताया कि, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से सती के शरीर को 52 भागों में विभक्त किया था, तो उनके शरीर के 51अंग देशभर के विभिन्न हिस्सों में गिरे। 52वां अंग उनका दांत यहां गिरा था। इसलिए देवी का नाम दंतेश्वरी और जिस ग्राम में दांत गिरा था उसका नाम दंतेवाड़ा पड़ा। बदलते वक्त के साथ मंदिर की तस्वीर भी बदलती। माता के चमत्कारों ने लोगों के मन में आस्था और विश्वास को और बढ़ा दिया।

दशहरा मनाने जगदलपुर जाती हैं देवी

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में शामिल होने हर साल शारदीय नवरात्र की पंचमी पर आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को निमंत्रण देने के लिए बस्तर के राज परिवार के सदस्य मंदिर पहुंचते हैं। इस बार भी पंचमी के दिन राज परिवार ने माता को निमंत्रण दिया है। यह प्रथा सदियों से चली आ रही है। अष्टमी पर माता अपने भक्तों को आशीर्वाद देने मंदिर से निकलेंगी। माता के छत्र और डोली को बस्तर दशहरा में ले जाया जाएगा। इस दौरन जगह-जगह माता की डोली और छत्र का भव्य रूप से स्वागत किया जाता है।

-एजेंसी