इस जगह 8 साल से चल रहा है गृहयुद्ध, UN ने माना दुनिया का सबसे विकट संकट

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वो कहती हैं, “हर क़दम उठाते हुए मेरा दिल डर से कांप रहा है क्योंकि इन कुत्तों के हमले का डर है.”

“यहां सड़कों पर रोशनी नहीं है और सभी घर बंद हैं, ऐसे में कोई मेरी मदद के लिए नहीं आएगा. मैं सहमे क़दम ख़ामोशी से चलने की कोशिश करती हूं ताकि कुत्ते मेरी आवाज़ ना सुनें.” वो यमन की राजधानी सना में रहती हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने यमन में चल रहे गृहयुद्ध को दुनिया का सबसे विकट संकट माना है. यहां 2023 में दो तिहाई आबादी यानी लगभग 2.16 करोड़ लोग, किसी ना किसी तरह से मदद के लिए मोहताज हैं.

यहां आठ साल से गृहयुद्ध चल रहा है. एक तरफ़ सऊदी समर्थित सरकारी बल हैं और दूसरी तरफ़ ईरान समर्थित हूती विद्रोही जिन्होंने राजधानी सना समेत देश के अधिकतर पश्चिमी हिस्से पर नियंत्रण कर लिया है. यहां की आबादी, ख़ासकर महिलाएं और बच्चे इस युद्ध की सबसे बड़ी क़ीमत चुका रहे हैं.

उम्म आदेल जैसे परिवार जिनकी प्रमुख महिलाएं हैं, खाद्य असुरक्षा का सबसे अधिक सामना कर रहे हैं क्योंकि यमन में घर से बाहर निकलकर बेहद कम संख्या में ही महिलाएं काम कर पाती हैं.

हालांकि संयुक्त राष्ट्र के पॉपुलेशन फ़ंड का अनुमान है कि यमन में युद्ध की वजह से प्रभावित हुए हर तीसरे परिवार में से एक में महिलाएं ही कमाने वाली हैं.

आम नागरिकों की मुश्किलें कैसी हैं

उम्म आदेल एक छोटे से घर में रहती हैं जहां उनका सामान फ़र्श पर धूल खा रहा है. सभी सामान को उन्होंने पैक करके रखा है ताकि अगर उन्हें अपने चार बच्चों के साथ तुरंत छोड़कर जाना पड़े तो वो जा सकें.

घर में कोई फ़र्नीचर नहीं है, परिवार फ़र्श पर ही चादरें बिछाकर सोता है. घर में दीवारों पर कोई तस्वीर नहीं है ना ही आराम की कोई चीज़ है. ये ऐसी जगह जहां सिर्फ़ ज़िंदा रहा जा सकता है और संघर्ष किया जा सकता है.

राहत संगठनों से मिलने वाले खाने के पैकेटों की भी कमी है. आदेल को अभी तक सिर्फ़ एक बार ही खाद्य सामान मिला है, हालांकि वो कई बार अपने आप को इसके लिए पंजीकृत कराने की कोशिश कर चुकी हैं

वो कहती हैं, “मुझे आग जलाने के लिए लकड़ियां खोजनी पड़ती है ताकि मैं चावल बना सकूं. अधिकतर खाना जो हम खाते हैं अधपका होता है, क्योंकि यही मुझे मिल पाता है. मेरा बेटा बीमार है, उसका शरीर ऐंठता है, लेकिन मैं दवाई नहीं ख़रीद सकती हूं.”

हालांकि सना में ज़िंदगी मुश्किल है, लेकिन वो अपने मूल शहर ताइज़ के मुक़ाबले यहां अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं. सरकारी नियंत्रण वाले इस शहर को हूतियों ने घेर रखा है और देश के बाक़ी हिस्से से इसे काट दिया है.

वो कहती हैं, “वहां हालात बहुत ख़तरनाक़ हैं, लोग जानवर बन गए हैं और वो एक-दूसरे से नफ़रत करते हैं. मैंने वहां रहने की कोशिश कि ताकि मेरे बच्चे अपने परिवार के क़रीब रह सकें, लेकिन किसी ने मेरी वहां मदद नहीं की, इसलिए मुझे शहर छोड़कर यहां आना पड़ा.”

यमन में काम करने वाले एक स्थानीय मानवाधिकार संगठन सिविल कोएलिशन फ़ॉर ह्यूमन राइट्स के अनुमान के मुताबिक़, साल 2021 में क़रीब एक करोड़ महिलाओं और लड़कियों को सहायता की ज़रूरत थी.

बुनियादी चीज़ों के लिए संघर्ष

मइन सुल्तान अल ओबैदी ताइज़ में रहती हैं और एक मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता हैं. वो इस बात को लेकर बिलकुल स्पष्ट हैं कि इस युद्ध की असली क़ीमत कौन चुका रहा है.

वो कहती हैं, “इस युद्ध से सबसे ज़्यादा प्रभावित महिलाएं हैं.”

“बहुत-सी महिलाएं दरबदर हो गई हैं और उनके घरों के कमाने वाले इस युद्ध में मारे जा चुके हैं. घर के मुश्किल आर्थिक हालात की वजह से अभिभावक कम उम्र में बच्चियों की शादी करने के लिए मजबूर हैं. बहुत-सी महिलाओं के बेटे, भाई और पति मारे गए हैं. जो महिलाएं कैंपों में संघर्ष कर रही हैं उनके लिए शिक्षा या स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं है.”
वो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं.

वो कहती हैं, “युद्ध की शुरुआत में जल-आपूर्ति प्रभावित हो गई थी. ऐसे में पानी लेने के लिए महिलाओं को घर से बाहर निकलना पड़ता है, कई जगहों पर लंबी दूरी तय करके सर पर पानी रख कर लाना होता है.”

“गैस आपूर्ति भी काट दी गई थी. लकड़ी लेने के लिए महिलाओं को जंगल जाना पड़ता है. बारूदी सुरंगे बिछी हैं. बहुत-सी महिलाएं ऐसी हैं जो लकड़ी उठाते हुए बारूदी सुरंग का शिकार हो गईं और हाथ पैर गंवा दिए. इस युद्ध ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है.”

यमन में सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय समर्थन से एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया है जो मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की निगरानी करता है. इस आयोग के डेटा के मुताबिक़ साल 2014 में युद्ध शुरू होने के बाद से कम से कम 109 महिलाएं घास के मैदान या खेत में काम करते हुए या तो मारी गई हैं या घायल हो गई हैं.

मुजाहिद कामिल सना में एक किराना दुकान चलाते हैं. वो हर दिन ये देखते हैं कि आम लोगों के लिए हालात कितने मुश्किल हो गए हैं.

वो कहते हैं, “यहां लोग बहुत ग़रीब हैं, भूखे हैं और परेशान हैं. परिवहन, तेल और टैक्स की वजह से हर चीज़ इतनी महंगी हो गई है कि ग़रीब उसे ख़रीद नहीं पा रहे हैं.”

यमन में लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है पेट भरने लायक खाने का इंतेज़ाम करना. भुखमरी यहां वास्तविक ख़तरा है. विश्व खाद्य कार्यक्रम के मुताबिक़ साल 2022 में दुनियाभर में उसका सबसे बड़ा कार्यक्रम यमन में चल रहा था. यहां कम से कम 1 करोड़ 30 लाख लोगों को या तो राशन उपलब्ध करवाया गया या ख़रीदने के लिए कैश फ़ंड दिया गया.

उम्म सईद का संघर्ष

मुजाहिद कहते हैं कि यमन में लोग अब अलग तरह से सामान ख़रीदते हैं.

वो कहते हैं, “आमतौर पर लोगों के पास सिर्फ़ एक वक़्त का खाना ख़रीदने लायक ही पैसे होते हैं. ज़्यादातर लोग गेहूं, आटा, तेल और घी जैसी बुनियादी ज़रूरत की चीज़ें ही ख़रीद पाते हैं.” उम्म सईद के लिए ये रोज़ाना का संघर्ष है.

वो अपने परिवार के साथ राजधानी सना में ही रहती हैं और जब से युद्ध शुरू हुआ है उनका परिवार यहीं है. वो मूलरूप से राज़ीह शहर की हैं जो उत्तरी प्रांत सादा में सऊदी अरब की सीमा के नज़दीक है. उन्हें वो पल अब भी याद है जब अपनी तीन बेटियों और चार बेटों के साथ उन्हें अचानक वहां से भागना पड़ा था.

वो कहती हैं, “एक हवाई हमले में हमारे घर पर बम गिरे थे और हमारा घर पूरी तरह बर्बाद हो गया था. सिर्फ़ राख और धूल ही बची थी.”

हम पहले से ही डर में रह रहे थे क्योंकि हमारे इलाक़े में कई जगहों पर हमले हुए थे. हमने अपना घर और मेरे पति की एक छोटी-सी किराना दुकान को गंवा दिया. सना पहुंचने से पहले कुछ दिनों के लिए हमें पहाड़ पर गुफ़ा में भी रहना पड़ा.

“मेरे आंसू नहीं रुक रहे थे. बच्चे भी लगातार रोये जा रहे थे. हमें अंधेरे में रहना पड़ रहा था क्योंकि अगर हम रोशनी करते तो हवाई हमला हो सकता था.”

उम्म सईद को एक नए शहर में रहना पड़ा. वो अपने परिवार का पेट भरने के लिए दाने-दाने के लिए मोहताज हो गईं.

अब उनके कई बेटे हूतियों के साथ लड़ रहे हैं और पहाड़ी इलाक़ों में हैं. इसका मतलब अब ये है कि उन्हें अपने पोते-पोतियों का भी पेट भरना है.

वो शादी समारोह में जाती हैं और वहां कपड़े और मेकअप का सामान बेचती हैं. लेकिन उसका स्वास्थ्य ख़राब है और इस वजह से वो इतना काम नहीं कर पातीं ताकि अपनी ज़रूरतों को पूरा कर सकें.

वो कहती हैं, “कई बार हम रात को बिना खाना खाये ही सो जाते हैं. मेरे गले में दर्द होता है और मुझे सांस लेने में दिक़्क़त होती है, लेकिन जब तक मैं ज़िंदा हूं मैं काम करती रहूंगी, इसके अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है.”

Compiled: up18 News