दुनिया में एक शहर ऐसा जहाँ खोई हुई चीजें भी लौट आती हैं

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ज़्यादातर लोगों के लिए अपना पर्स या बटुआ खो देना, सिर्फ़ एक असुविधा भर नहीं. ये एक बड़ी मुसीबत बन जाता है.
आज के दौर में हमारे बटुए में ढेर सारे कार्ड, पहचान पत्र और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होते हैं. ऐसे में बटुए के गुम होने का मतलब है अच्छी ख़ासी परेशानी.

फिर आप सारे कार्ड कैंसिल कराएं. नया कार्ड जारी कराएं. लेकिन दुनिया में एक शहर ऐसा है, जहाँ आप अपना बटुआ गुम होने पर भी बेफ़िक्र हो सकते हैं.

और उस शहर का नाम है टोक्यो. जापान की राजधानी टोक्यो में क़रीब डेढ़ करोड़ लोग रहते हैं. हर साल यहां दसियों लाख सामान गुम होते हैं.

लेकिन इन में से ज़्यादातर सामान अपने मालिकों को वापस मिल जाते हैं.

जापान में पुलिस

साल 2018 में टोक्यो महानगर की पुलिस ने 5 लाख 45 हज़ार से ज़्यादा लोगों को उन के गुम हुए पहचान पत्र वापस किए थे.

इसी तरह गुम हुए मोबाइल फ़ोन में से क़रीब 83 फ़ीसद या एक लाख तीस हज़ार फ़ोन, उन के मालिकों को वापस मिल गए थे.

यही नहीं, टोक्यो में गुम हुए क़रीब 65 प्रतिशत या 2 लाख 40 हज़ार से ज़्यादा बटुए उन के मालिकों को लौटा दिए गए थे.

इन में से ज़्यादातर सामान को अक्सर उसी दिन वापस कर दिया गया, जिस दिन वो खो गए थे. अमरीका की रहने वाली काज़ुको बेहरेन्स, जापान की मूल निवासी हैं.

काज़ुको एक क़िस्सा बताती हैं. जब वो अमरीका के सैन फ्रैंसिस्को शहर में रह रही थीं तो शहर के चाइनाटाउन में एक आदमी का बटुआ खो गया था.

एक आदमी से उसे वापस कर दिया. इस बात की बड़ी चर्चा हुई थी. बटुआ लौटाने वाले को बड़ा ईमानदार आदमी बता कर उस का गुणगान किया गया था.

अजीब और चौंकाने वाली बात

स्थानीय टीवी चैनल्‍स में उस का इंटरव्यू लेने की होड़ मच गई थी.

लेकिन काज़ुको कहती हैं, “जापानियों के लिए तो ये ऐसा है कि हां, उसे तो बटुआ लौटाना ही चाहिए था. वो ऐसा क्यों नहीं करेगा. जापान में तो अगर आप किसी का खोया हुआ बटुआ पाने पर वापस नहीं लौटाते तो ये अजीब और चौंकाने वाली बात होगी.”

अगर आप ये सोच रहे हैं कि लौटाने वाले को कोई इनाम मिलता है, या गुम सामान उसे दे दिया जाता है तो ऐसा नहीं है.

2018 में जो एक लाख 56 हज़ार गुमशुदा मोबाइल फ़ोन लौटाए गए थे. उन में से एक को भी उसे पाने वाले को नहीं दिया गया. ना ही उसे सरकार ने अपने पास रखा.

गुम हुए फ़ोन मिलने के बाद उन में से 17 प्रतिशत उन के मालिकों तक नहीं पहुंचाए जा सके, तो ये सारे मोबाइल फ़ोन नष्ट कर दिए गए थे.

जापान में पुलिस स्टेशन बहुत कम फ़ासले पर हैं. इन्हें कोबान कहते हैं जहाँ लंदन में हर 100 वर्ग किलोमीटर पर 11 पुलिस थाने होते हैं.

कोचीकामे नाम की कॉमिक सिरीज़

वहीं जापान में इतने ही इलाक़े में 97 पुलिस स्टेशन होते हैं. जापान के पुलिस वालों का बर्ताव दोस्ताना होता है.
वो शैतानी करने वालों को झिड़की देते हैं लेकिन ज़रूरतमंद बुज़ुर्गों की मदद करते हैं.
अक्सर पुलिस वाले लोगों के घर पर फ़ोन कर के पूछते हैं कि वो ठीक-ठाक हैं या नहीं.

जापान के पुलिस वाले इतने लोकप्रिय हैं कि उन पर कोचीकामे नाम से एक कॉमिक सिरीज़ बनाई गई थी, जो चालीस साल तक छपती रही थी.

जापान के वक़ील मासाहिरो तमूरा कहते हैं कि बचपन से ही लोगों को गुम हुई चीज़ मिलने पर पुलिस को देने की आदत सिखाई जाती है.

कोई बच्चा अगर दस पैसे का सिक्का भी गिरा हुआ पाता है तो उसे पास के थाने में जमा कराने जाता है.

ईमानदारी

पुलिस वाला बाक़ायदा उस का रिकॉर्ड दर्ज करता है. फिर हो सकता है कि वो सिक्का पाने वाले बच्चे को ही दे दिया जाए.
यही वजह है कि जहाँ टोक्यो में खो जाने पर 86 प्रतिशत फ़ोन वापस मिल जाते हैं. वहीं, न्यूयॉर्क में गुम हुए फ़ोन में से केवल 6 फ़ीसद ही वापस मिल पाते हैं.

इसी तरह न्यूयॉर्क में गुम हुए बटुओं में से केवल दस प्रतिशत ही अपने मालिकों तक वापस पहुंच पाते हैं. वहीं, टोक्यो में ये तादाद 80 प्रतिशत है.

मज़े की बात ये है कि टोक्यो में अगर किसी का छाता खो जाता है तो ना उसे गंवाने वाला उसे खोजने में वक़्त ज़ाया करता है और ना ही उसे पाने वाला, वापस करने की ज़हमत उठाता है.

काज़ुको कहती हैं कि इस मिसाल से साफ़ है कि बटुआ या मोबाइल वापस करना केवल ईमानदारी का मसला नहीं. ऐसा होता तो लोग छाते भी वापस कर देते.

कोई देख तो नहीं रहा है?

काज़ुको कहती हैं कि जापान में ज़्यादातर लोग धर्म में आस्था नहीं रखते. फिर भी जापानी समाज पर बौद्ध और शिंतो धर्म का बहुत प्रभाव है. जिसमें जीवन और मौत को लेकर तमाम श्रद्धाएं और विश्वास हैं. माना जाता है कि इन्हीं धर्मों के प्रभाव से जापान के लोग गुम सामान वापस कर देते हैं.

जापान की इस ईमानदारी के पीछे, वहाँ के पुलिस बंदोबस्त का भी रोल बताया जाता है. लोग मानते हैं कि पुलिस की मौजूदगी या किसी के देख लेने के डर से ही लोग दूसरों का सामान पाने पर लौटा देते हैं.

इस की मिसाल 2011 के भूकंप के बाद फ़ुकुशिमा इलाक़े में देखा गया था. जहाँ विकिरण की वजह से लोगों को वहाँ से हटा दिया गया था. जिस के बाद फ़ुकुशिमा इलाक़े में काफ़ी चोरियां हुईं. यानी लोगों की नज़र नहीं थी, तो चोरियां हुईं.

शिंतो धर्म की तमाम मान्यताओं में एक ये भी है कि हर चीज़ में आत्मा होती है. तो, उन के मुताबिक़ कोई ना कोई देख रहा होता है. इसलिए भी बहुत सा सामान वापस कर देने का चलन जापान में दिखता है.

वैसे भी, पूर्वी एशिया में लोगों में सामुदायिक भावना बहुत होती है. लोग एक-दूसरे के बारे में सोचते हैं. समाज के बारे में सोचते हैं. वैसी सोच होने की वजह से ही दूसरों का खोया सामान मिलने पर लौटा देते हैं.

अमरीका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मार्क डी. वेस्ट कहते हैं, “जापान के लोग गुम सामान लौटा देते हैं, इस की वजह क़ानून और व्यवस्था है. सामाजिक मान्यताएं हैं. ना कि ईमानदारी का जज़्बा. वरना लोग छाते ना चुराते.”
ये बात तो काज़ुको भी मानती हैं.

क़दम-क़दम पर पुलिस थानों की मौजूदगी और सांस्कृतिक परंपराओं की वजह से जापान के लोग अपने से पहले दूसरों के बारे में सोचते हैं. इसलिए उन्हें बाक़ी दुनिया से ज़्यादा ईमानदार कहना एक चूक होगी.

-BBC