सुख दीधां सुख होत है, दुख दीधां दुख होय: जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र

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आगरा:  हे मनुष्य जैसे तुझे अपना सुख प्रिय है, वैसे ही दूसरों को भी अपना सुख प्रिय है। तू सुख चाहता है, तो दूसरों को सुख दे। सुख देगा तो सुख पाएगा इसी प्रकार अगर किसी को दुख देगा तो स्वयं भी दुख पायेगा। ये प्रवचन जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र महाराज ने रविवार को महावीर भवन जैन स्थानक राजा की मंडी में श्रावकों के सम्मुख रखें।

उन्होंने कहा कि एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ कैसा व्यवहार है,उसके उस व्यवहार में कड़वापन है या मिठास है, यही हिंसा और अहिंसा की कसौटी है। यदि व्यवहार में कटुता है और हिंसा का तांडव नृत्य है, वहाँ मानवता के पनपने के लिए कोई भूमिका नहीं है। जहाँ राक्षसी भावनाओं का वातावरण है, जहाँ एक-दूसरे को चूसना, लूटना, दबोचना और पद-दलित करना ही केवल विद्यमान है, वहाँ अहिंसा कहाँ रहेगी और मानवता के दर्शन कैसे हो सकेंगे।

मानव.शास्त्र अन्तर्मन के द्वारा ही देखा और समझा जाता है। मनुष्य को सोचना चाहिए, कि मैं जो चेष्टाएँ कर रहा हूँ, आस-पास में उनकी प्रतिक्रिया कैसी होगी। मेरे मन की हरकतों से दूसरों को आनन्द मिलेगा या वे दुख के क्लेश के अथाह सागर में डूब जाएँगे।

मनुष्य और पशु पक्षियों के संबधों के विषय में प्रवचन करते जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र महाराज ने कहा कि मानव जाति का पड़ौसी कौन है। मनुष्य का पड़ौसी नारकी नहीं है और देवता भी नहीं है उसका सन्निकटतर पड़ौसी है, पशु.जगत। आज तक मनुष्य ने जो विकास और प्रगति की है, जिन सुख-सुविधाओं को हासिल किया है, और इस दर्जे तक पहुँचा है, उसमें मनुष्य का पुरुषार्थ तो है ही, परन्तु पशुओं का सहयोग भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। मनुष्यों की सभ्यता की अभिवृद्धि में पशुओं का बहुत बड़ा सहयोग रहा है। पशु अनादिकाल से मानव जाति के सहयोगी और सहायक रहे हैं। परन्तु उनके सहयोग को आज हम भूल.से.गए हैं।

यदि हम भारतवर्ष के इतिहास पर नजर डाले तो पाएंगे की हमारे पूर्वजों ने जो कुछ भी किया उसमें और आज मानव.जाति सभ्यता की उन्नति में पशुओं ने मनुष्य की बहुत अधिक सहायता की है। मानव जाति की उन्नति का इतिहास इस बात का साक्षी है। मनुष्य अपनी माता का दूध पीता है और थोड़े समय पीकर छोड़ देता है। फिर गौ.माता या अन्य दुधारू जानवरों का दूध पीना शुरू कर देता है। हमारे शरीर में आज दूध से बनी हुई रक्त की जितनी भी बूँदें हैं, उनका अधिकांश गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं के दूध से ही बना है। अगर आप गम्भीरतापूर्वक विचारें, तो निस्सन्देह जान सकेंगे, कि पशुओं के दूध से बनी रक्त की बूँदें हो। अधिक हैं। मनुष्य माता का दूध तो अत्यल्प काल तक ही पीता है, पर गौ.माता के दूध की धार तो मृत्यु की अन्तिम घडिय़ों तक उसके मुँह में जाती रहती है। इसी कृतज्ञता से गद्गद् होकर पूर्वजों ने कहा है
गौ में माता, वृषभ: पिता में,

इससे पूर्व जैन मुनि पुनीत महाराज ने नवकार महामंत्र के विषय में बताते हुए कहा कि ये मंत्र सिद्ध मंत्र है और इसमें किसी को भी व्यक्तिगत नमस्कार नही किया गया है। प्रवचनों से पूर्व णमोत्थुर्ण पाठ का सामूहिक जाप एस. एस. जैन युवा संगठन एवं जैन स्तुति मंडल द्वारा आयोजित किया गया जिसमे समाज के छोटे बच्चों, युवाओं से लेकर वरिष्ठ सदस्यों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया

इस दौरान तपस्या करने वाली सुमित्रा सुराना एवं पद्मा सुराना का सम्मान किया गया।

-विवेक कुमार जैन