भगवान शिव को समर्पित कांवड़ यात्रा आज 4 जुलाई से शुरू हो गई है. हर साल सावन के महीने में ये यात्रा होती है. हिंदू धर्म में इस यात्रा का खासा महत्व है. मान्यता के अनुसार कांवड़ यात्रा एक तरह से भगवान शिव का विशिष्ट अनुष्ठान है. कांवड़ लेकर जो शिव भक्त निकलते हैं, उन्हें कांवड़िया कहा जाता है.
कांवड़ यात्रा के दौरान केसरिया वस्त्रों में कांवड़ियों के जत्थे दूर-दूर से गंगाजल भरकर शिवालयों में जाते हैं. आइए आपको बतातें हैं कांवड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है और इसका इतिहास क्या है? इस साल की बात करें तो शिव भक्तों को कांवड़ यात्रा के लिए ज्यादा समय मिलेगा. दरअसल इस साल अधिमास की वजहसे सावन का महीना दो महीने तक चलेगा.
क्या है कांवड़ यात्रा का इतिहास?
शिव पुराण के मुताबिक सावन के महीने में समुद्र मंथन हुआ था. मंथन के दौरान चौदह प्रकार के माणिक निकलने के साथ ही हलाहल(विष) भी निकला. इस जहरीले विष से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने हलाहल विष पी लिया. भगवान शिव ने ये विष गले में जमा कर लिया, जिस वजह से उनके गले में तेज जलन होने लगी.
मान्यता है कि शिव भक्त रावण ने भगवान शिव के गले की जलन को कम करने के लिए उनका गंगाजल से अभिषेक किया था. रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया. इसके बाद से ही कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हुआ.
कांवड़ यात्रा के इतिहास जानने के बाद ये भी जान लीजिए कि ये कितने प्रकार की होती है.
सामान्य कांवड़: सामान्य कांवड़ यात्रा में कांवड़िएं जहां चाहे वहां आराम कर सकते हैं. ऐसे कांवड़ियों के लिए सामाजिक संगठन से जुड़े लोग पंडाल लगाते हैं. इनमें भोजन और विश्राम करने के बाद दोबारा कांवड़िए अपनी यात्रा शुरू करते हैं. आराम करने के दौरान कांवड़ को स्टैंड पर रखा जाता है ताकि ये जमीन से न छुए.
डाक कांवड़ यात्रा: डाक कांवड़ यात्रा की बात करें तो इसे 24 घंटे में पूरी की जाती है. इस यात्रा में कांवड़ लाने का संकल्प लेकर 10 या उससे अधिक युवाओं की टोली वाहनों में सवार गंगा घाट जाती है. यहां ये लोग दल उठाते हैं. इस यात्रा में शामिल टोली में से एक या दो सदस्य लगातार नंगे पैर गंगा जल हाथ में लेकर दौड़ते हैं. एक के थक जाने के बाद दूसरा दौड़ लगाता है. इसलिए डाक कांवड़ को सबसे मुश्किल माना जाता है.
झांकी कांवड़: कुछ शिव भक्त झांकी लगाकर कांवड़ यात्रा करते हैं. ऐसे कांवड़िए 70 से 250 किलो तक की कांवड़ लेकर चलते हैं. इन झांकियों में शिवलिंग बनाने के साथ-साथ इसे लाइटों और फूलों से सजाया जाता है. इसमें बच्चों को शिव बनाकर झांकी तैयार की जाती है.
दंडवत कांवड़ यात्रा: इस यात्रा में कांवड़िए अपनी मनोकामना पूरा करने के लिए दंडवत कावड़ लेकर चलते हैं. ये यात्रा 3 से 5 किलोमीटर होती है. इस दौरान शिव भक्त दंडवत ही शिवालय तक पहुंचते हैं और गंगा जल शिवलिंग पर चढ़ाते हैं.
खड़ी कांवड़ यात्रा: इस कांवड़ यात्रा को सबसे कठिन माना जाता है. इस कांवड़ की खास बात ये होती है कि शिव भक्त गंगा जल उठाने से लेकर जलाभिषेक तक कांवड़ को अपने कंधे पर रखते हैं. इस यात्रा में कांवड़ को आमतौर शिव भक्त जोड़े में ही लाते हैं.
– एजेंसी
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