नव संवत्सरारम्भ के दिन किये जाने वाले धार्मिक क्रियाकलापों का आध्‍यात्‍मिक महत्‍व

Religion/ Spirituality/ Culture

अभ्यंग स्नान (मांगलिक स्नान) : संवत्सरारम्भ के दिन सुबह जल्दी उठकर प्रथम अभ्यंग स्नान करना चाहिए । अभ्यंग स्नान करते समय देशकाल कथन किया जाता है।

बंदनवार लगाना : स्नान के बाद आम्रपत्तों का बंदनवार बनाकर, प्रत्येक दरवाजे के पास लाल फूलों के साथ बांधना चाहिए क्योंकि लाल रंग शुभ दर्शक है।

पूजा : पहले नित्य कर्म, देव पूजन किया जाता है। वर्ष प्रतिपदा को महाशांति की जाती है। शांति के प्रारंभ में ब्रह्मदेव की पूजा की जाती है, क्योंकि इस दिन ब्रह्मदेव ने विश्व की रचना की। इस दिन होम हवन, एवं ब्राह्मण संतर्पण किया जाता है। फिर अनंत रूपों में होनेवाले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है “नमस्ते बहुरूपाय विष्णवे नमः” यह मंत्र बोलकर उन्हें नमस्कार किया जाता है। तत्पश्चात ब्राह्मण को दक्षिणा दी जाती है । संभव हो तो इतिहास, पुराण आदि ग्रंथ ब्राह्मण को दान दिये जाते हैं । यह शांति करने से समस्त पापों का नाश होता है, आयुष्य बढता है एवं धनधान्य की समृद्धि होती है। ऐसा कहा जाता है संवत्सर पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है। आयु में वृद्धि होती है, सौभाग्य बढ़ता है एवं शांति प्राप्त होती है । इस दिन जो वार (अर्थात दिन) होता है उस दिन के देवता की भी पूजा की जाती है।

धर्मध्वज लगाना : इस दिन विजय के प्रतीक स्वरूप सूर्योदय के समय शास्त्र शुद्ध विधि से ध्वज लगाया जाता है। धर्मध्वज सूर्योदय के तुरंत बाद मुख्य दरवाजे के बाहर, परंतु बांस (घर के अंदर से देखने पर दाहिने हाथ की ओर) भूमि पर पाट रखकर उस पर खड़ी करनी चाहिए। ध्वज लगाते समय उसकी स्वस्तिक चिन्हों पर सामने थोड़ी सी झुकी हुई स्थिति में, ऊंचाई पर स्थापना करनी चाहिए। सूर्यास्त के समय गुड़ का भोग लगाकर धर्मध्वज नीचे उतारना चाहिए।

दान : याचकों  को अनेक प्रकार का दान देना चाहिए। जैसे प्याऊ द्वारा जल दान, इससे पितर संतुष्ट होते हैं।

धर्म दान : धर्मदान सर्वश्रेष्ठ दान है, ऐसा शास्त्र बताता है । धर्मप्रसार करनेवाली संस्थाओं को दान देना उपयुक्त है l वर्तमान काल में धर्म शिक्षा देना यह समय की आवश्यकता है ।

पंचांग श्रवण : ज्योतिषी की पूजा करके उनके द्वारा, अथवा किसी पंडित द्वारा नए वर्ष का पंचांग अर्थात वर्षफल का श्रवण किया जाता है। इस पंचांग श्रवण के फल का वर्णन इस तरह किया गया है।

“तिथेश्च श्रीकरं प्रोक्तं वारादायुष्य वर्धनम।नक्षत्राद्धरते पापं  योगाद्रोगनिवारणम्।।
करणाच्चिन्तितं कार्यं पंचांग फलमुत्तमम्।एतेषां श्रवणान्नित्यं गंङ्गास्नानफलं लभेत।।

अर्थ : तिथि के श्रवण से लक्ष्मी प्राप्त होती है, वार (दिन) के श्रवण से आयुष्य बढ़ता है, नक्षत्र श्रवण से पाप नष्ट होते हैं, योग श्रवण से रोग नष्ट होते हैं, करण श्रवण से सोचे हुए कार्य पूर्ण होते हैं, ऐसा यह पंचांग श्रवण का उत्तम फल है। उसके नित्य श्रवण से गंगा स्नान का लाभ मिलता है।

नीम का प्रसाद : पंचांग श्रवण के बाद नीम का प्रसाद  बांटा जाता है। यह प्रसाद नीम की पत्तियां, जीरा, हींग, भीगे हुए चने की दाल, एवं शहद इनको मिलाकर बनाया जाता है।

भूमि (जमीन) जोतनाइस दिन जमीन में हल चलाना चाहिए। हल चलाकर (जोतने की क्रिया से) नीचे की मिट्टी ऊपर आती है। मिट्टी के सूक्ष्म कणों पर प्रजापति लहरों का संस्कार होकर भूमि की उपजाऊ क्षमता अनेक गुना बढ़ जाती है। खेती के औजार एवं बैलों पर प्रजापति लहरें उत्पन्न करने वाले मंत्रों के साथ अक्षत डालनी चाहिए । खेतों में काम करने वाले लोगों को नए वस्त्र देने चाहिए, उस दिन खेतों में काम करने वाले लोगों एवं बैलों के भोजन में, पका हुआ कुम्हडा, मूंग की दाल, चावल, पूरण आदि पदार्थ होने चाहिए ।

सुखदायक कार्य : अनेक प्रकार के मंगल गीत, वाद्य एवं महान व्यक्तियों की कथाएं सुनते हुए यह दिन आनंद पूर्वक व्यतीत करना चाहिए। वर्तमान समय में त्यौहार का अर्थ मौज-मस्ती करने का दिन इस तरह की कुछ संकल्पना हो गई है। परंतु हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार त्यौहार का अर्थ है “अधिक से अधिक चैतन्य सकारात्मकता प्राप्त करने का दिन” होता है । इसलिए त्यौहार के दिन सात्विक भोजन, सात्विक वस्त्र, आभूषण धारण तथा अन्य धार्मिक कृत्य करने के साथ ही सात्विक सुखदायक कार्य करना चाहिए ऐसा शास्त्र बतलाते हैं। त्यौहार, धार्मिक विधियों के दिन एवं संवत्सराम्भ जैसे शुभ दिन नया अथवा रेशमी वस्त्र, एवं गहने धारण करने से देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वस्त्रों में आकर्षित देवताओं की तरंगे वस्त्र में दीर्घकाल तक रहते हैं और इन वस्तुओं को पहनने से देवताओं के तत्व का लाभ वर्ष भर प्राप्त होता है ।

संवत्सरारम्भ के दिन की जाने वाली प्रार्थना : ‘हे ईश्वर आज आप की ओर से आने वाले शुभ आशीर्वाद एवं ब्रह्मांड से आने वाली सात्विक तरंगें मुझे अधिक से अधिक ग्रहण होने दीजिए, इन तरंगों को ग्रहण करने की मेरी क्षमता नहीं है, मैं संपूर्ण रुप से आपके शरण आया हूं, आप ही मुझे इन सात्विक तरंगों को  ग्रहण करना सिखाइए, यही आपके चरणों में प्रार्थना है !’

संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव, एवं व्रत’

– कु. कृतिका खत्री
सनातन संस्था, दिल्ली


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