वेस्टर्न सहारा और मोरक्को: आइए समझते हैं कि ये संघर्ष है क्या

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क़रीब दो लाख 70 हज़ार वर्ग किलोमीटर इस रेतीले और बेहद कम आबादी वाले इलाक़े में बीते पचास सालों से संघर्ष चल रहा है.
अफ़्रीका के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित वेस्टर्न सहारा कभी स्पेन का उपनिवेश था जिसे 1975 में मोरक्को ने छीन लिया था.

साल 1991 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में हुए समझौते से मोरक्को और पोलिसारियो फ्ऱंट के बीच चल रही लड़ाई थम गई थी.

पश्चिमी अफ़्रीका के संघर्ष को भुलाया जा चुका था लेकिन साल 2020 की दो घटनाओं ने इस पर फिर से रोशनी डाली है. इसी साल मोरक्को ने सीमा पर स्थित एक असैन्य पोस्ट की तरफ़ क़दम बढ़ाए तो फिर से युद्ध जैसे हालात हो गए.
इसी साल दिसंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वेस्टर्न सहारा पर मोरक्को के अधिकार को मान्यता दे दी. आइए समझते हैं कि ये संघर्ष है क्या और ये कितना महत्वपूर्ण इलाक़ा है.

1. बेहद मुश्किल हालात वाला इलाक़ा जिसमें अकूत प्राकृतिक संसाधन हैं

ये इलाक़ा सहारा रेगिस्तान के पश्चिमी छोर पर है और अटलांटिक महासागर के तट पर एक हज़ार किलोमीटर तक फैला है.
इसके उत्तर में मोरक्को है, पूर्व में अल्जीरिया है जबकि दक्षिण और दक्षिण पूर्व में मॉरिटानिया है.
क़रीब दो लाख सत्तर हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैले इस दुर्गम इलाक़े में सिर्फ दस लाख के आसपास लोग रहते हैं.
यहां फ़ॉस्फ़ेट का बहुत बड़ा भंडार है. मछली पकड़ने के समृद्ध इलाक़े भी यहां हैं.

2. ज़मीन पर दावे और स्वतंत्रता

मूलरूप से बेर्बेर जनजाति समुदाय का इलाक़ा रहे पश्चिमी सहारा पर 1884 में स्पेन का नियंत्रण हो गया था.
50 साल बाद 1934 में इसे स्पेन के एक प्रांत का दर्जा दे दिया गया था. तब इसे स्पैनिश सहारा कहा गया था.
1965 में संयुक्त राष्ट्र ने स्पेन से यहां अपना उपनिवेश समाप्त करने की अपील की थी. मोरक्को की राजशाही ने साल 1959 में स्वतंत्रता हासिल कर ली थी.

तब पश्चिमी सहारा पर उसका दावा मज़बूत हो रहा था. मोरक्को और मॉरिटानिया सदियों से पश्चिमी सहारा पर अपना-अपना दावा पेश करता रहा था.
लेकिन उसी दौरान पश्चिमी सहारा में स्वतंत्रता के लिए भी आंदोलन शुरू हो गया था. 1973 में पोलिसारियो फ्ऱंट का गठन हुआ.
साल 1974 में स्पेन ने सहारा के लोगों को अधिक स्वतंत्रता देने और अगले साल आज़ादी को लेकर जनमत संग्रह कराने का एलान कर दिया.
लेकिन 1975 में स्पेन बिना जनमत संग्रह कराए इस इलाक़े को छोड़कर चला गया. उसी दौरान मोरक्को ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया.
मोरक्को ने अपने देश के लोगों को यहां बसाने पर भी ज़ोर दिया. नवंबर 1975 में मोरक्को से साढ़े तीन लाख से अधिक लोग सीमा पार कर पश्चिमी सहारा में चले आए.
तब से ही पोलिसारियो फ्ऱंट ने मोरक्को के ख़िलाफ़ गुर्रिला युद्ध छेड़ दिया जो अगले 16 साल तक चला.
फ्ऱंट ने अल्जीरिया की मदद से सहरावी अरब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (एसएडीआर) घोषित कर दिया. बाद में 1979 में मॉरिटानिया ने पश्चिमी सहारा पर अपना दावा छोड़ दिया.

3. सालों तक चला संघर्ष

मोरक्को के ख़िलाफ़ पोलिसारियो फ्ऱंट को शुरुआती सालों में कामयाबियां मिली लेकिन बाद में उसे भीतरी इलाक़ों की तरफ़ भागना पड़ा.
1980 के दशक में मोरक्को ने अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों में रेत और पत्थरों की दीवारें खड़ी करीं ताकि गुर्रिला लड़ाकों को दूर रखा जा सके.
सबसे बाहरी दीवार 2700 किलोमीटर लंबी है जिसके दायरे में पश्चिमी सहारा का 80 फ़ीसदी इलाक़ा आता है जो अब मोरक्को के नियंत्रण में है.
इस पर कंटीली तारें लगी हैं और बारूदी सुरंगे बिछी हैं. ये दुनिया के सबसे बड़ी बारूदी सुरंग क्षेत्रों में से एक है. अब एसएडीआर के पास सिर्फ़ बीस फ़ीसदी इलाक़ा ही है.
ये भी रेतीला और खाली रेगिस्तान ही है. साल 1991 में समझौता होने तक लड़ाई चली. समझौते के तहत जनमत संग्रह होना था, जो कभी हो ना सका.
बीते साल नवंबर में मोरक्को की सेना एक सीमा चौकी को पार कर गई और फिर से युद्ध जैसे हालात हो गए.
पोलिसारियो फ्ऱंट ने इसे मोरक्को की तरफ़ से समझौते का उल्लंघन मानते हुए फिर से समूचे क्षेत्र में युद्ध का एलान कर दिया.
तब से फ्ऱंट ने मोरक्को की सेना पर हमला करने और सैनिकों को हताहत करने के दावे किए हैं. मोरक्को ने इससे इनकार किया है.
पोलिसारियो फ्ऱंट और मोरक्को दोनों ने ही विवादित क्षेत्र में बाहरी दुनिया के लोगों के जाने पर रोक लगा रखी है, ऐसे में इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि संभव नहीं है.
इस विवाद ने मोरक्को और अल्जीरिया के बीच भी तनाव पैदा कर दिया है. अल्जीरिया और मोरक्को के बीच सीमा 1994 से ही बंद है.
अल्जीरिया के रेगिस्तानी शहर टिंडोफ़ के इर्द-गिर्द सहरावी शरणार्थी बेहद मुश्किल हालातों में रहते हैं. अनुमान के मुताबिक़ इनकी संख्या एक से दो लाख के बीच है.

4. जनमत संग्रह जो कभी नहीं हुआ

संयुक्त राष्ट्र को जनमत संग्रह कराना था जिसके तहत सहारा के लोगों को तय करना था कि वो मोरक्के के साथ रहेंगे या स्वतंत्र राष्ट्र बनाएंगे.
इसके लिए संयुक्त राष्ट्र ने एक मिशन भी स्थापित किया था. लेकिन ये जनमत संग्रह अभी तक नहीं हो सका है.
संयुक्त राष्ट्र ने बिना कामयाबी के कई बार मामला सुलझाने के प्रयास किए हैं.
साल 1991 में समझौता होने के बाद से ये विवाद वहीं है जहां था, हालांकि कई बार नाकाम वार्ताएं ज़रूर हुई हैं.

5. अभी वेस्टर्न सहारा का दर्जा क्या है?

अस्सी से अधिक देशों ने एसएडीआर को मान्यता दी है. इसमें लातिन अमेरिका के कई देश भी शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र इसे ग़ैर स्वायत्त क्षेत्र मानता है लेकिन इसके जनमत संग्रह के अधिकार को मान्यता देता है.
हालांकि इसी साल दिसंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे मोरक्को का क्षेत्र माना था.
अमेरिका का कहना है कि मोरक्को के अधिकार को मान्यता देना इसराइल और मोरक्को के बीच हुए समझौते का हिस्सा था.
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति के मोरक्को के अधिकार को मान्यता देने से ज़मीनी हालात पर बहुत असर नहीं होगा.
ट्रंप के फ़ैसले का एसएडीआर और पोलिसारियो फ्ऱंट ने विरोध किया था.
फ्ऱांस ने भी पश्चिमी सहारा पर मोरक्को के अधिकार को मान्यता दी है. यानी अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दो ऐसे देश मोरक्को के साथ हैं जो वीटो का अधिकार रखते हैं.
हालांकि संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष एंतोनियो गुटेरेस को अभी भी लगता है कि सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों से इस विवाद का हल निकाला जा सकता है.
वहीं राना जावेद का मानना है कि अब एक स्वतंत्र वेस्टर्न सहारा की संभावना बहुत कम दिखती है और हाल के महीनों में जो तनाव बढ़ा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि आगे हालात और भी ख़राब हो सकते हैं.

-BBc