राष्ट्रीय किसान दिवस की सार्थकता बेमानी सी लगती है…

अन्तर्द्वन्द

विश्व में हर मानव अन्न के बिना जीवित रहने की कल्पना नहीं कर सकता| यहां तक की अन्न के बाई प्रॉडक्ट अन्य जीवों का भी आहार होता है| हम सभी जानते हैं की अन्न की आवश्यकता प्रत्येक दिन पड़ती है, जो किसान अपनी उपज से हमें जीने के लिए भोजन मुहैया कराते हैं इसीलिए किसानों को अन्नदाता कहा जाता है|

संपूर्ण विश्व अन्नदाता का शुक्रगुजार होता है। इसी अन्नदाता की मेहनत को और उसके द्वारा प्रदत भोजन के लिए शुक्रिया अदा करने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2001 में पाँचवे देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्री चौधरी चरण सिंह की जन्म दिवस 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया । वैसे पूरी दुनिया में हर देश में अलग-अलग दिन अपने अन्नदाता के लिए समर्पित करता है| कुछ देशों में अक्टूबर का महीना तो कुछ में नवंबर का और कुछ में मई का महीना होता है|

भारत में राष्ट्रीय किसान दिवस भारत के पांचवें प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन 23 दिसंबर को इसलिए चुना गया कारण था आपने किसानों की स्थिति में सुधार लाने के लिए कई सुधारात्मक कार्य किए |आपकी कड़ी मेहनत का नतीजा था कि जमीदारी उन्मूलन विधेयक 1952 में पारित किया गया था । आप एक कृषि परिवार से ताल्लुक रखने के कारण आप किसानों की समस्या को अच्छी तरह समझते थे| कहते हैं पीर पराई ना जाने कोई * आपने अपने कार्यकाल में किसानों की दशा सुधारने के लिए कई नीतियां बनाई आप किसानों के पुरजोर समर्थक होने के साथ उनके किसान नेता के रूप में अनेक कार्य किये।उन्होंने अपने कार्य के माध्यम से किसान नेता का खिताब भी पाया ।हम सभी जानते हैं भारत में प्रत्येक साल जिस तरीके से दिन प्रतिदिन किसान आत्महत्या कर रहे हैं, सड़कों पर उतर के प्रदर्शन कर रहे हैं ऋण के बोझ तले दबे जा रहे हैं लागत मूल्य उन्हें मिल नहीं पा रही है|

आर्थिक बजट का एक हिस्सा मात्र बनकर रह गए हैं| ऐसे में राष्ट्रीय किसान दिवस की सार्थकता बेमानी सी लगती है। सरकार को पुनः विचार करना चाहिए कि वह किसान नेता के साथ देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी की तरह सोचें। भारत देश किसान (कृषि ) प्रधान देश है कहीं ऐसा ना हो कि किसान किसानी ना करना और गांव से पलायन होना वह अपनी नियति मान लें और हम एक बार फिर इतिहास में भारत सोने की चिड़िया था और भारत कृषि प्रधान देश था कहीं ऐसा हमें लिखा ना मिले|

मेरा देश के सभी सर्वोच्च पदों पर बैठे हुए सरकार के नुमाइंदों से आग्रह है कि किसान हित में अगर हम नीति बनाते हैं तो निश्चित रूप से हम देश को उन्नति के शिखर पर ले जाएंगे |जैसा सभी अर्थशास्त्री कहते हैं कि अगर किसान खुशहाल है, जमीन उपजाऊ है, लागत मूल का उचित मूल्य मिलता है तो वह देश सबसे धनी देश होगा| मैं आप सभी के माध्यमों से आज सभी अन्नदाताओं को हृदय से प्रणाम करता हूं और शुक्रिया अदा करता हूं कि अगर आप नहीं होते तो हम नहीं होते ।हम सभी प्रबुद्ध लोगों को किसानों के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहिए सहानुभूति नही ।हम सभी को देश की आर्थिक उन्नति में एक बहुत बड़े भागीदार के रूप में उनका सम्मान करना चाहिए।

–  राजीव गुप्ता जनस्नेही
लोक स्वर आगरा