गणेश संकष्टी चतुर्थी: व्रत से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं और पूजा विधि

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आषाढ़ महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि यानी 27 जून रविवार को गणेश संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है। ये आषाढ़ महीने का पहला व्रत है। भगवान गणेश को समर्पित इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और गणपति जी की पूजा-अर्चना करते हैं। इस बार रविवार के दिन गणेश संकष्टी चतुर्थी पड़ने के कारण आदित्य संकष्टी चतुर्थी का विशेष योग बन रहा है। इस व्रत से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं और पूजा विधि नारद और गणेश पुराण में बताई गई हैं।

पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जो जातक गणेश संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखता और भगवान गणेश की पूजा मन से करता है विघ्नहर्ता उसके जीवन के आने वाले सभी कष्ट और संकट हर लेते हैं।

इन जातकों को मिलता है विशेष लाभ

जिन लोगों की जन्मपत्रिका में सूर्य तुला राशि में हो ऐसे लोग यदि ये व्रत रखें और सूर्य भगवान को अर्घ्य दें साथ ही भगवान गणेश की पूजा करें तो उन्हें गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऐसे लोगों की शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती है।

तांबे के लोटे से सूर्य को अर्घ्य दें

इस दिन तांबे के लोटे में लाल चंदन, लाल फूल और चावल मिलाकर उगते हुए सूरज को अर्घ्य देना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देते वक्त ऊं सूर्याय नम:, ऊं आदित्याय नम:, ऊं नमो भास्कराय नम:। मंत्र बोलना चाहिए। हो सके तो इस दिन बिना नमक का खाना खाना चाहिए।

गणेश संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि और व्रत का समय

संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने बाद पूजाघर को स्वच्छ कर आसन पर बैठकर व्रत का संकल्प लें और पूजा शुरू करें।
गणेश भगवान गणेश जी की प्रिय चीजें दूर्वा, मोदक पूजा में अर्पित करें और भोग लगाएं।
सूर्योदय के समय से लेकर चंद्रमा उदय होने के समय तक व्रत रखा जाता है। चंद्रमा दर्शन के बाद ही गणेश चतुर्थी व्रत पूर्ण माना जाता है।