कोरोना ने इस एक सत्य की सच्चाई को पूरी शक्ति से किया साबित…

अन्तर्द्वन्द

सन् 2021 में जीवित हम लोगों ने कुछ ऐसा देखा है जो इतिहास में कहीं दर्ज नहीं था। महामारियां पहले भी फैलती थीं लेकिन उनका कारण किसी देश को नहीं माना जाता था। हां, किसी बेबस महिला को डायन का नाम देकर इल्जाम उसके सिर मढ़ने की कवायद कई बार होती थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी होने वाले विरोधाभासी बयानों का खोखलापन भी पहली बार महसूस किया गया है।

यह स्पष्ट है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन महज एक मार्केटिंग संस्थान है जिसका असली उद्देश्य सिर्फ बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनियों को लाभ पहुंचाना है। खेद का विषय है कि विश्व भर के अधिकांश डाक्टर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी शोध और निर्देशों को आंख बंद करके स्वीकार करते हैं जिससे झूठ का प्रसार और भी तेज़ी से होता है और डाक्टरों पर विश्वास करके जनसामान्य अपनी सेहत से खिलवाड़ के लिए विवश हो जाता है। लेकिन अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के खोखलेपन और चीन की संदिग्ध भूमिका को छोड़ दिया जाए तो कोरोना ने हमें कई सबक सिखाए हैं जिनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण सबक को एकदम से नज़रअंदाज् कर दिया गया है। हमारा विषय वही एक खास सबक भी है।

जीवन क्षण भंगुर है, यह तो हम हमेशा से ही कहते और मानते रहे हैं लेकिन कोरोना ने इस एक सत्य की सच्चाई को पूरी शक्ति से साबित किया है। कोरोना की पहली, दूसरी, तीसरी लहर ने कई तरह से कई शिकार किये हैं। कोरोना ने सारे विश्व को घुटनों पर ला दिया, घर-बार और रोज़गार छीन लिये, कंपनियां बंद करवा दीं, बहुत से बहुमूल्य जीवन लील लिये। लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया। साधन-संपन्न, बड़े संपर्कों वाले अमीरों और शक्तिशाली माने जाने वाले लोगों की बेबसी भी इस दौरान उजागर हुई। अस्पतालों में मेला-सा लग गया। जगह, बिस्तर और आक्सीजन की मारामारी रही। श्मशान पर शवों की कतारें लगीं। चेहरे मास्क से ढक गये और कोरोना ने जीने का अंदाज़ भी बदल दिया।

कोरोना के कारण अगर कई व्यवसाय बंद हुए तो कई दूसरे फले-फूले भी। आना-जाना कम हुआ तो ऑनलाइन मीटिंग का चलन बढ़ा जिसने लगभग हर तरह के व्यवसाय को प्रभावित किया और हम वर्क फ्रॉम होम तथा ऑनलाइन खरीदारी के लिए विवश हुए। तकनीक और ऑनलाइन व्यवसाय का बोलबाला हुआ जिससे हम सब की सोच में एक बड़ा परिवर्तन यह आया कि व्यवसाय कैसा भी हो, अंतत: वह तकनीक पर निर्भर हो जाएगा और पारंपरिक माने जाने वाले व्यवसाय भी तभी बच पायेंगे यदि वे तकनीक पर आधारित होंगे अन्यथा कोई आईटी कंपनी उस व्यवसाय को भी लील जाएगी।

कोरोना ने हमें जताया कि हमने प्रकृति का दोहन करने के बजाए प्रकृति का शोषण किया है। कोरोना के शुरुआती दौर में सड़कों और राजमार्गों पर जंगली जीव-जंतुओं के दर्शनों को हमने सराहा पर हम शीघ्र ही इस सबक को भूलकर अपनी पुरानी दिनचर्या पर आ गये और प्रकृति के शोषण का मुद्दा सिरे से ही गायब हो गया। इस मामले में हम सबने भीड़ की मानसिकता अपनी ली और एक बार फिर सिद्ध हो गया भीड़ की याद्दाश्त नहीं होती। प्रकृति के संरक्षण का सबक हम सीख पाते, इससे पहले ही हमने उस सबक को भुला डाला।

विभिन्न व्यवसायों का ढर्रा बदलना और हमारे लाइफस्टाइल का बदलाव अब पुरानी बातें हैं। इन पर चर्चा बहुत हो चुकी। जो एक सबक नया है और जिस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया वह सबक यह है कि यह आवश्यक नहीं है कि हम इतिहास को मानक मान लें और उसके हिसाब से ही अपने जीवन को ढालें। इतिहास से हम कुछ तो सीखते ही हैं पर सब कुछ इतिहास से ही सीखेंगे, यह संभव नहीं है। यह स्पष्ट है कि यह एक आंशिक सच्चाई है कि इतिहास खुद को दोहराता है। भविष्य की तैयारी के लिए इतिहास एक सर्वदा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक नहीं है, इसका असली सबक यह है कि इतिहास ही सब कुछ नहीं है और हम अपनी प्रतिरक्षा के लिए कैसी भी तैयारी करें, सब कुछ वैसा ही नहीं होगा जो इतिहास में होता आया है।

अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमला एक नई मिसाल थी, मोबाइल फोन और इंटरनेट का संगम एक नई मिसाल थी, लगभग हर व्यावसायिक गतिविधि का तकनीक पर ही निर्भर हो जाना एक नई मिसाल है। किसी एक देश द्वारा बनाए गए विषाणु से सारे विश्व का हिल जाना एक नई मिसाल है, हालांकि इसकी कल्पना बहुत पहले से की जाती रही है। विश्व भर के विकसित देश भी अगर इसके सामने नतमस्तक हुए तो इसका कारण यह नहीं है कि संसार में प्रतिभा की कमी है, योग्यता की कमी है। यह लापरवाही भी नहीं है। यह विश्लेषण की असफलता नहीं है, यह कल्पनाशक्ति की असफलता है क्योंकि हम कल्पना ही नहीं कर पाये कि हम कभी कोरोना जैसी एक षडयंत्र के तहत विषाणुजनित किसी महामारी का शिकार हो जाएं तो तैयारी कैसी हो।

हम जीवन ताश के खेल सरीखा ही है। हम नहीं जानते कि हमारे हाथ में कैसे पत्ते आयेंगे। हम जुआरी नहीं होना चाहते पर एक बार एक जुआरी ने, जो खेल में अक्सर जीता करता था, मुझे एक ऐसा पाठ दिया जो जीवन भर का पाठ बन गया। उसने कहा कि जीत के लिए जुआरी में विनम्रता एक आवश्यक गुण है। चूंकि हम नहीं जानते कि हमारे हाथ में कैसे पत्ते आयेंगे और सामने वाले खिलाड़ी के हाथ में कैसे पत्ते हैं, अत: हम चाहे कितना ही आत्मविश्वास दिखायें, अपने दिल में हमें स्पष्ट होना चाहिए कि खेल का पासा किसी भी ओर पलट सकता है, अंदाज़ा गलत हो सकता है। यह भाव तब भी बना रहना चाहिए जब हमें लगता हो कि हमारे हाथ में बहुत अच्छे पत्ते हैं। विनम्रता तब भी बनी रहनी चाहिए और हमें तब भी स्वीकार करना चाहिए कि हमारा अंदाज़ा गलत हो सकता है। ऐसे में हम दांव बढ़ाते समय भी यह ख़याल रखते हैं कि यदि हम यह चाल हार जाएं तो भी हमारे पास इतना धन अवश्य बचा रहना चाहिए कि हम अगली चाल चल सकें। अंतत: यह सोच कि खेल अनिश्चित है और खेल का रुख कुछ भी हो सकता है, हमारी जीत की संभावनाएं सिर्फ इसलिए कुछ और बढ़ जाती हैं क्योंकि हम मानकर चलते हैं कि हमारी योजना गलत हो सकती है, उसमें खामियां हो सकती हैं और हम हार सकते हैं, परिणाम यह होता है कि हम अपनी योजना की असफलता की स्थिति में नई वैकल्पिक योजना के साथ तैयार रहते हैं।

कारपोरेट जगत में हमेशा यह सिखाया जाता है कि आप योजना बनाएं, उसकी सफलता के लिए पूरा ज़ोर लगा दें, लेकिन यदि सफलता हाथ न लगे तो वैकल्पिक योजना के साथ तैयार रहें। यह विनम्रता कि हम इन्सान हैं और हमसे गलती हो सकती है, कई बार हमें समग्र विनाश से बचा लेती है। कोरोना का यह सबक अगर हम सीख लें तो बहुत सी ऐसी स्थितियों से बच सकते हैं जो हमारे लिए विनाशकारी साबित हो सकती थीं।

– पी. के. खुराना,
हैपीनेस गुरू व मोटिवेशनल स्पीकर