शबरी नामक भील जाति की राजकुमारी का रामभक्ति परंपरा में वही स्थान और महत्व है, जो कृष्ण भक्ति में विदुर पत्नी सुलभा का है। उसी प्रेम को एक श्लोक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। लेखिका उर्वशी अग्रवाल की पुस्तक मैं शबरी हूं राम की में प्रेम और भक्ति के आध्यात्मिक स्वरूप में रामभक्त शबरी की करुण कथा को मार्मिकता के साथ साथ भारतीय नारी के प्रेम और समर्पण एवं भाव की सुंदर प्रस्तुति इस पुस्तक में की गई है।
इस पुस्तक में उनके बारे में सारी जानकारी को दोहे के रूप में पेश किया गया है ताकि इनके माध्यम से पाठक कम शब्दों और सरल भाषा में उनसे जुड़ पाएं। शबरी से जुड़े बहुत से प्रसंग के बारे में लेखिका उर्वशी अग्रवाल कहती हैं कि बहुत ही कम लोगों को इसके बारे में जानकारी है। सम्भवत: इन दोनों के माध्यम से पाठक कम शब्दों में और सरल भाषा में इन प्रसंगों की जानकारी देने में कामयाब हुई हैं।
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक मैं शबरी हूं राम की की कथावस्तु बहुत ही संक्षिप्त है, जो प्रेम के कुछ मीठे बेरों से शुरू होकर राम मंदिर के निर्माण पर समाप्त हो जाती है। सूक्ष्म और विरल रेखाओं के बीच प्रेम, भक्ति, आस्था और विश्वास के गहरे रंग कविताओं में भरे हैं। शबरी की मनोदशा बिल्कुल मीरा जैसी हो गई है, मीरा के लिए उसका सर्वेश्वर गिरधर गोपाल थे, जो शबरी के लिए अवधपति श्रीराम।
लेखक ने स्वयं भी एक शबरी के रूप में जीने का प्रयास किया और सोचा कि वो भी एक शबरी थी तो क्या मैं भी एक शबरी हूँ?’’ यह उतना आसान नहीं था, पर कठिन भी नहीं था। अगर वह एक शबरी थी तो हर नारी एक शबरी है और हर पुरुष में भी शबरी-तत्त्व समान रूप से हैं।
प्रभात प्रकाशन दवारा प्रकाशित पुस्तक मैं शबरी हूं राम की, में कुल 135 पेज है जिसकी कीमत रखी गई है 300 रूपए।
समीक्षा – बालकिशन यादव