विवेक अग्निहोत्री बोले- शाहरुख और करण जौहर ने सांस्कृतिक ताना-बाना बर्बाद कर दिया

Entertainment

‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर विवादों में रहे डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ को लेकर खबरों में हैं. विवेक अग्निहोत्री उन डायरेक्टर्स में से एक हैं जो हर मुद्दे पर खुलकर अपनी राय रखते हैं. हालांकि इसके चलते वो कई बार विवादों में भी रह चुके हैं. अब विवेक अग्निहोत्री ने बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान और डायरेक्टर करण जौहर पर निशाना साधा है.

विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि शाहरुख खान और करण जौहर जैसे लोगों ने निराश किया है. ‘इन लोगों ने भारत की वास्तविक कहानियों को सिनेमा से दूर कर दिया है. अग्निहोत्री ने अमिताभ बच्चन का जिक्र करते हुए कहा कि शहंशाह और दीवार जैसी फिल्मों के बाद से वास्तविक कहानियां फिल्मों से गायब हो गई हैं. खासतौर से करण जौहर और शाहरुख खान जिस तरह की फिल्में करते हैं उसने भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने को काफी नुकसान पहुंचाया है.’

स्टारडम को बढ़ा रहे हैं करण जौहर

विवेक अग्निहोत्री ने करण जौहर पर बॉलीवुड में स्टारडम को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि ‘करण जौहर हैं जिन्होंने बॉलीवुड में पॉलिटिक्स, स्टारडम और इस तरह की चीजों को बढ़ावा दिया है. ऐसा नहीं है कि उन्होंने अच्छी फिल्में नहीं बनाई, लेकिन वो स्टार सिस्टम को बढ़ावा दे रहे हैं. क्यों वो एक 8 साल के बच्चे के लिए फिल्म नहीं बना सकते. वो क्यों हिंदी बोलने वाले, भारतीय रॉ और जमीन से जुड़े टेलेंट को आगे नहीं आने देना चाहते’

शाहरुख की पॉलिटिक्स पसंद नहीं

विवेक ने कहा कि ‘कुछ लोग हैं जो सिर्फ अपने स्टारडम के लिए काम करते हैं. ये लोग फिल्म मेकर्स हैं ही नहीं. जो टिपिकल बॉलीवुड सिस्टम है उसमें लोगों के पास सिनेमा के लिए कोई पैशन नहीं है वो सिर्फ पैसे और अपने स्टारडम के लिए काम करते हैं. मैं शाहरुख खान का फैन हूं, लेकिन वो जिस तरह की पॉलिटिक्स बॉलीवुड में कह रहे हैं वो सिनेमा को बर्बाद कर रहा है.’

शाहरुख-करण ने सिनेमा को बर्बाद कर दिया

कभी वामपंथी विचारधारा से प्रभावित रहने वाले विवेक अग्निहोत्री का नजरिया अब काफी बदल चुका है. अब उनकी सोच और विचारधारा भी बदल चुकी है. एक वक्त पर चॉकलेट, हेट स्टोरी और धना धन गोल जैसी फिल्में बनाने वाले विवेक अग्निहोत्री अब हार्ड हिटिंग सिनेमा की ओर बढ़ रहे हैं. उनका कहना है कि भारत के छोटे शहरों में ऐसी सच्ची कहानियां है कि हमें स्टोरीज के लिए कहीं और जाने की जरूरत ही नहीं है.

-एजेंसी


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