विजय दिवस: लांस नायक अलबर्ट एक्का को जाने बिना अधूरी है जीत की चर्चा

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4 दिसंबर 1971 का वो दिन

4 दिसंबर 1971 को लांस नायक एक्का 14 जवानों के साथ गंगाशहर में एक चौकी की रक्षा के लिए तैनात थे। इसी दौरान एक्का ने देखा कि दुश्मन सैनिक बंकर से लाइट मशीनगन के जरिए उनकी कंपनी पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे हैं। इसे देश दुश्मनों को बड़ा सबक सिखाने के लिए एक्का ने एक ऐसा फैसला किया, जिसकी उम्मीद पाकिस्तानी सैनिकों को सपने में भी नहीं थी। अपनी जान की परवाह किए बिना एक्का ने पाकिस्तानी सेना के बंकर में घुसकर वहां तैनात दुश्मन जवानों को हक्का-बक्का कर दिया। उन्होंने इस दौरान दो पाकिस्तानी जवानों को ढेर कर दिया और उनकी लाइट मशीनगन को शांत कर दिया।

दुश्मन के दूसरे ठिकाने को भी किया ध्वस्त

एक्का जैसे ही पाकिस्तान बंकर को ध्वस्त कर वहां से निकल रहे थे तभी, एक दूसरी बिल्डिंग से दुश्मन सैनिकों ने उनपर छोटे मशीनगन से फायर झोंक दिया। बुरी तरह घायल होने के बाद भी एक्का रुके नहीं। उन्होंने दुश्मन जवानों को ललकारते हुए उनकी तरफ एक ग्रेनेड फेंक दिया। उनके ग्रेनेड हमले में एक दुश्मन सैनिक ढेर हो गया। इस दौरान भी पाकिस्तान सैनिक लगातार मशीनगन से फायरिंग करते रहे। दुश्मन सैनिकों के ढेर करने के बाद बुरी तरह से घायल एक्का ने अपने चौकी को सुरक्षित कर लिया और देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनके इस सर्वोच्च बलिदान के लिए एक्का को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

झारखंड के इस वीर पुत्र की कहानी जान लीजिए

एक्का का जन्म झारखंड के गुमला जिले के जारी गांव में हुआ था। एक्का के पिता का नाम जूलियस एक्का और मां का नाम मरियम एक्का था। एक्का बचपन से ही काफी साहसी थे। वो शुरू से भारतीय सेना में जाना चाहते थे। उनका भारतीय सेना में जाने का सपना 27 दिसंबर 1962 को पूरा हो गया। जब वह 20 वर्ष की उम्र में बतौर जवान भारतीय सेना में शामिल हुए। उन्हें 14वीं बटालियन ऑफ ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स में शामिल हुए थे। इस बटालियन को अपने निडर सैनिकों के लिए जाना जाता था।

गंगासागर का वो युद्ध

1971 के युद्ध में एक्का के बटालियन को भी एक बेहद अहम गंगासागर के युद्ध में तैनात किया गया। 9 साल सेना में बिता चुके एक्का ने इस दौरान कई साहसिक ऑपरेशन को अंजाम दे चुके थे। गंगासागर ही वो इलाका था जहां से भारतीय सेना बांग्लादेश में आगे बढ़ी थी। एक्का ने इस युद्ध में न केवल पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटाई बल्कि अपनी वीरता से देश के सैनिकों का मान भी बढ़ाया था।

पाकिस्तानी सैनिकों को यूं चटाई थी धूल

एक्का के 14 गार्ड्स बटालियन ने दुश्मन की पोस्ट पर 3 दिसंबर 1971 को हमला कर दिया। हालांकि, पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय जवानों को रोकने के लिए भारी फायरिंग झोंक दी थी। लेकिन एक्का ने अपने रेजिमेंट का ध्येय वाक्य ‘पहला हमेशा पहला’ को साकार करते हुए दुश्मनों के एक के बाद एक बंकर नष्ट करते हुए आगे बढ़ने लगे। हालांकि, इस दौरान वो बुरी तरह घायल भी हो गए थे। एक्का के साहसिक शौर्य ने भारतीय जवानों में जोश भर दिया और देश के वीर जवानों ने गंगाशहर के पास से दुश्मन के सैनिकों को खदेड़ दिया। इसके बाद भारतीय सेना का ढाका तक विजय रथ फिर रुका नहीं। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए।

Compiled: up18 News