उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर जो खुलता है साल में सिर्फ एक दिन, जहां आज भी मौजूद हैं तक्षक नाग

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हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में मौजूद नागचंद्रेश्वर मंदिर में तक्षक नाग निवास करते हैं। उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि  नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।

मंदिर में 11 वीं शताब्दी की जो प्रतिमा मौजूद है, उसके जैसी प्रतिमा उज्जैन के अलावा कहीं भी मौजूद नहीं है। इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी।

पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

पुराणों के अनुसार तक्षक नाग ने महादेव को पाने के लिए घोर तपस्या की थी और महादेव तक्षक नाग की तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए। अत:  उन्होंने तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद से ही तक्षक नाग ने महादेव के पास ही निवास करना शुरू कर दिया, लेकिन उन्होंने महादेव से विनती की कि उनके एकांत में कोई भी विग्नन ना पड़े।  इस मंदिर को नाग पंचमी के दिन ही खोला जाता है।

इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।

यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं।