43 साल बाद सामने आएगा मुरादाबाद के दंगों का सच, विधानसभा में सक्सेना आयोग की रिपोर्ट पेश

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मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को हुए दंगों की रिपोर्ट आज यानि मंगलवार को विधानसभा में पेश की गई. 43 साल बाद यूपी सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया. इस दंगे में 83 लोगों की मौत हुई थी जबकि 113 लोग घायल हुए थे. दंगे की जांच जस्टिस एमपी सक्सेना की अगुवाई में गठित आयोग से कराई गई थी. आयोग ने तीन साल में ही सन 1983 में अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी, लेकिन किसी भी सरकार ने रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया था. योगी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में इस रिपोर्ट को विधानसभा में सार्वजनिक किया.

आज सदन में पेश की गई जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट में बताया गया कि मुस्लिम लीग के दो नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते यह दंगा हुआ था. एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, मुरादाबाद शहर में बने ईदगाह और अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या हिंदू उत्तरदाई नहीं था. दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी का भी हाथ नहीं था.

आम मुसलमान ने नहीं भड़काया दंगा, ये दो नेता जिम्मेदार

एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, जिले का आम मुसलमान भी ईदगाह पर उपद्रव करने के लिए उत्तरदाई नहीं था. इसके दंगे के लिए सिर्फ और सिर्फ डॉ. शमीम अहमद के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और डॉ. हामिद हुसैन उर्फ डॉ. अज्जी के नेतृत्व वाले ‘खाकसारो संगठन’, उनके समर्थकों और भाड़े के व्यक्तियों की कारगुजारी के चलते यह दंगा हुआ था. यह पूरा दंगा पूर्व नियोजित था और इन्हीं नेताओं के दिमाग की उपज थी.

दंगों में सबसे अधिक मुस्लिमों की हुई थी मौत

एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दंगा भड़काने के लिए इन लोगों द्वारा ईदगाह में नमाजियों के बीच में सुअर धकेल दिए गए. अफवाह फैला दी गई कि हिंदुओं के द्वारा यह सब किया गया है. अब समुदाय विशेष का नाम आते ही मुस्लिम क्रोधित हो उठे और पास के थाने, पुलिस चौकी और हिंदुओं पर हमला कर दिया. अपने ऊपर हमला होते देख हिंदू भी उत्तेजित हो उठे, जिससे संप्रदायिक हिंसा भड़की. भगदड़ में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अधिक संख्या में लोग गए थे.

– एजेंसी