यह है हमारे ‘नए भारत’ के प्राथमिक विद्यालय, बच्चो की जान से एक बार फिर आगरा के स्कूल में खिलबाड़

स्थानीय समाचार

आगरा: खबर उत्तर प्रदेश के ‘बदहाल शिक्षा’ तंत्र से आ रही है. वही तंत्र, जहां करोड़ों रुपये के बजट खर्च होने का दावा किया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि बच्चों को स्कूल में छत टपकने के बीच पढ़ना पड़ता है. मामला है शमसाबाद ब्लॉक के कांकरपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय का. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है. वीडियो किसी गांव वाले ने बनाया है. और उसमें दिख रहा है कि बच्चों की ‘क्लास’ किसी क्लासरूम में नहीं, बल्कि किसी झरने के नीचे चल रही है.

‘जलधारा’ के नीचे शिक्षा का ‘पाठ’!

वीडियो में साफ-साफ दिख रहा है कि प्राथमिक विद्यालय के क्लासरूम की छत से पानी ऐसे टपक रहा है, जैसे किसी झरने से धार बह रही हो. बच्चे बेचारे एक तरफ सिमटे बैठे हैं, कुछ तो नंगे पैर ही इस ‘जलमग्न’ क्लास में घूम रहे हैं. टीचर साहिबा बच्चों को एक तरफ करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन आखिर कहां तक? पूरी क्लास में पानी-पानी है. छत ‘गार्टर पटिया’ की बताई जा रही है, जो अब किसी छलनी से कम नहीं है.

अब सवाल यह है कि यह कौन सा ‘ज्ञान’ दिया जा रहा है, जहां बच्चे पानी से बचने की जुगत में लगे हैं, बजाय पढ़ने के? क्या हमारे देश में ‘शिक्षा’ का मतलब अब बच्चों को पानी के बीच बैठाकर अक्षर ज्ञान कराना हो गया है? क्या सरकारी स्कूलों की यही नियति है?

शिकायतें अनसुनी, हादसे का इंतजार?

गांव वाले, टीचर और अभिभावक, सबने मिलकर कई बार इस टपकती छत की शिकायत की है. लेकिन, साहब, कौन सुनता है? यहां तो फाइलों में ‘विकास’ होता है, असलियत में नहीं. शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं, और बच्चे भगवान भरोसे. बरसात के दौरान बच्चे क्लास में बैठ नहीं पाते. क्यों? क्योंकि छत इतनी टपकती है कि पूरी क्लास तालाब बन जाती है.

अब यहां सवाल यह है कि जब शिकायतें लगातार की जा रही थीं, तो फिर एक्शन क्यों नहीं लिया गया? क्या शिक्षा विभाग और प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है? क्या उन्हें लगता है कि जब कोई बच्चा इस टपकती छत के नीचे दब जाएगा, या बारिश के पानी में फिसल कर चोटिल हो जाएगा, तब जाकर उनकी नींद खुलेगी?

यह महज दो दिन पहले की बात है, पिढ़ौरा के गांव पोखरा गगनकी के प्राथमिक विद्यालय की बाउंड्रीवॉल और गेट गिर गए थे. और उस हादसे में 10 साल की बच्ची चांदनी की मौत हो गई थी. क्या यह एक सबक नहीं था? या हमारे अधिकारियों को ऐसे और हादसों की ज़रूरत है, ताकि वह अपनी कुंभकर्णी नींद से जाग सकें?

‘पॉवर पॉइंट’ प्रेजेंटेशन में चमचमाते स्कूल और ज़मीन पर बदहाल हकीकत

एक तरफ तो सरकारें ‘स्मार्ट क्लास’ और ‘डिजिटल इंडिया’ की बात करती हैं, ‘पॉवर पॉइंट’ प्रेजेंटेशन में स्कूल चमचमाते नजर आते हैं, और दूसरी तरफ हकीकत यह है कि बच्चे टपकती छत के नीचे अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर हैं. यह कैसा ‘रामराज’ है, जहां मासूम बच्चों के लिए सुरक्षित छत तक नसीब नहीं है?

क्या हमारे शिक्षा मंत्री और अधिकारी कभी इन स्कूलों का दौरा करते हैं? क्या वे कभी इन टपकती छतों के नीचे बैठकर बच्चों को पढ़ाने की कोशिश करते हैं? या फिर उनका काम सिर्फ कागजों पर ‘आश्वासन’ देना और ‘विकास’ दिखाना है?

सवाल सीधा है: क्या सरकार हमारे बच्चों को ऐसी ही ‘आधुनिक’ शिक्षा देना चाहती है, जहां बुनियादी सुविधाएं भी नदारद हों? क्या हमें ऐसे और हादसे देखने पड़ेंगे, ताकि प्राथमिक विद्यालयों की ‘टूटी छतें’ और ‘लापरवाह प्रशासन’ पर किसी की नज़र पड़े? या फिर यह मान लिया जाए कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ‘दोयम दर्जे’ के नागरिक हैं, जिनकी सुरक्षा और शिक्षा भगवान भरोसे है?

-मोहम्मद शाहिद की कलम से