टेकऑफ से पहले अंत: 242 ज़िंदगियाँ और एक सवालों से भरा आसमान

Cover Story

“ड्रीमलाइनर या डेथलाइनर?: जब उड़ान ही आख़िरी सफर बन गई”

“हादसे की ऊँचाई से गिरते सवाल: अहमदाबाद की एक दोपहर”

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार

अहमदाबाद की सुबह सामान्य थी। लोग अपनी-अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे। किसी ने नहीं सोचा था कि यह दिन भारत की नागरिक उड्डयन प्रणाली पर एक गहरा धब्बा छोड़ जाएगा। 12 जून 2025 को एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171, जो अहमदाबाद से लंदन के गैटविक एयरपोर्ट के लिए उड़ान भर रही थी, टेकऑफ के कुछ ही मिनटों बाद क्रैश हो गई। यह हादसा न केवल 242 ज़िंदगियों को लील गया, बल्कि एक पूरे राष्ट्र की आत्मा को भी झकझोर गया।

इस विमान में 230 यात्री और 12 क्रू मेंबर थे। सभी की अपनी-अपनी कहानियाँ थीं। कोई पहली बार विदेश जा रहा था, किसी को बेटी की शादी में शामिल होना था, कोई नौकरी के लिए लंदन रवाना हो रहा था, तो कोई सिर्फ़ अपने बेटे से मिलने। किसी ने शायद दरवाज़ा बंद करते समय पीछे मुड़कर देखा हो, किसी ने आख़िरी बार “फोन करना” कहा हो। लेकिन इस बार किसी को मौका नहीं मिला।

दुर्घटना स्थल मेघानी नगर का वो इलाका है जहाँ एक मेडिकल छात्रावास भी स्थित है। विमान का बड़ा हिस्सा उसी हॉस्टल पर गिरा, जिससे वहाँ रह रहे छह छात्र भी मौत के मुँह में समा गए। ये वो बच्चे थे जो भविष्य में किसी की जान बचा सकते थे। दुर्भाग्य देखिए, उनकी अपनी जानें ही नहीं बच सकीं। घटनास्थल की तस्वीरें जितनी भयानक थीं, उससे कहीं अधिक भयावह थी वहाँ बिखरी चप्पलें, जलते बैग, अधजली फाइलें और धुएँ में खोते चेहरे। किसी मोबाइल की स्क्रीन पर शायद अभी भी ममता का ‘मिस्ड कॉल’ दिख रहा होगा, किसी के फोन में व्हाट्सऐप पर अब भी “लैंड करते ही मेसेज करना” लिखा होगा।

किसी हादसे में मर जाना एक बात है, लेकिन बिना अलविदा कहे दुनिया छोड़ जाना एक अकल्पनीय दुःख होता है। एयर इंडिया के इस ड्रीमलाइनर विमान को ‘आधुनिकतम सुरक्षा तकनीक’ से लैस बताया जाता था। ड्रीमलाइनर 787 को उड्डयन जगत में विश्वसनीय माना जाता है। फिर सवाल उठता है—कैसे हुआ ये हादसा? क्या विमान में पहले से कोई तकनीकी गड़बड़ी थी? क्या मेंटेनेंस में लापरवाही बरती गई? या फिर यह एक दुर्भाग्यपूर्ण संयोग था?

कैप्टन सुमीत सबरवाल, जो इस विमान को उड़ा रहे थे, वे 8200 घंटे के उड़ान अनुभव वाले वरिष्ठ पायलट थे। उनके साथ सह-पायलट क्लाइव कुन्दर भी थे, जिनके पास भी पर्याप्त उड़ान अनुभव था। दोनों ने आख़िरी क्षण तक विमान को कंट्रोल करने की कोशिश की। ब्लैक बॉक्स से मिली रिकॉर्डिंग में कैप्टन की अंतिम आवाज़ दर्ज हुई है, जिसमें उन्होंने ‘मेडे’ कॉल दिया और विमान की ऊँचाई तेजी से गिरने की सूचना दी। इससे यह स्पष्ट होता है कि विमान ने अचानक ही कंट्रोल खो दिया और समय बहुत कम था।

प्रशासन ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू करने में देर नहीं की। दमकल विभाग, NDRF, पुलिस और स्थानीय नागरिक मौके पर पहुँचे और मलबे से शव निकालने में जुट गए। लेकिन असली त्रासदी तो तब शुरू हुई जब अस्पतालों के बाहर परिजनों की चीखें सुनाई देने लगीं। जो लोग कुछ घंटे पहले तक हँसी-खुशी से अपनों को एयरपोर्ट छोड़कर आए थे, अब वे अस्पतालों में राख की थैलियाँ पहचान रहे थे।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया है। एयर इंडिया ने पीड़ित परिवारों के लिए 50 लाख रुपये मुआवज़े की घोषणा की है और केंद्र सरकार ने उच्च स्तरीय जाँच के आदेश दिए हैं। लेकिन इतिहास बताता है कि अधिकतर मामलों में ऐसी जाँच रिपोर्टें महीनों तक लंबित रहती हैं, और अंततः भूल दी जाती हैं। यह जरूरी है कि इस बार न केवल हादसे के कारणों की निष्पक्ष जाँच हो, बल्कि यह भी पता लगाया जाए कि क्या यह हादसा रोका जा सकता था।

यह केवल तकनीकी विफलता नहीं है, यह हमारी प्रणाली की असफलता भी है। DGCA (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) की क्या भूमिका थी? क्या विमान के उड़ान भरने से पहले समुचित परीक्षण हुआ था? क्या ग्राउंड स्टाफ ने किसी गड़बड़ी की अनदेखी की थी? ये सारे सवाल अब जनता के हैं, और जवाब भी जनता को ही चाहिए।

हादसों के बाद हम अक्सर संवेदनाएं प्रकट करते हैं, मोमबत्तियाँ जलाते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्ट डालते हैं और फिर भूल जाते हैं। लेकिन इस बार कुछ बदलना होगा। यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। यह हमें बताता है कि आधुनिक तकनीक और चमकदार हवाई जहाज़ भी अगर सिस्टम की लापरवाही के साथ उड़ें, तो वे केवल उड़ान नहीं, अंत बन जाते हैं।

कई परिवार ऐसे हैं जिनका एकमात्र कमाने वाला सदस्य इस हादसे में चला गया। कुछ ऐसे हैं जिनके तीन-तीन सदस्य एकसाथ उड़ान पर थे और अब उनकी कोई स्मृति शेष नहीं। एक 6 साल की बच्ची की तस्वीर वायरल हो रही है जो अपने दादा-दादी के साथ पहली बार विदेश जा रही थी। अब उसकी गुलाबी गुड़िया राख में मिली है। एक नवविवाहिता, जो ससुराल के लिए रवाना हुई थी, अब ताबूत में लौटेगी। ये केवल आँकड़े नहीं, इंसानी कहानियाँ हैं—जिन्हें हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।

इस हादसे के बाद हमें दो काम ज़रूर करने चाहिए—पहला, पीड़ित परिवारों को हर संभव सरकारी, कानूनी और मानसिक सहायता दी जाए। और दूसरा, यह सुनिश्चित किया जाए कि भारत की कोई भी उड़ान, अगली बार उड़ने से पहले सौ बार जाँची जाए।

एक कविता पंक्ति याद आती है—

<span;>> “जो उड़ने चले थे सितारे बन के,

वो राख में अब निशान बन के रह गए।”

हमारे लिए यह समय केवल शोक का नहीं, उत्तरदायित्व का भी है। यदि हम सिर्फ दुःख मना कर चुप हो जाएँगे, तो ये हादसे फिर होंगे। हवाई यात्रा अब केवल सुख-सुविधा की बात नहीं रही, यह अब सुरक्षा और जीवन की सबसे बड़ी चुनौती बनती जा रही है।

हमें इस बात की भी चिंता करनी होगी कि क्या भारत में नागरिक उड्डयन का निजीकरण और कम लागत की प्रतिस्पर्धा यात्रियों की सुरक्षा से समझौता करवा रही है? क्या पायलटों की थकावट, टेक्निकल स्टाफ की कमी और मुनाफे की भूख ऐसी त्रासदियाँ जन्म दे रही हैं? अगर हाँ, तो हमें निर्णय लेना होगा—सुरक्षा पहले या सुविधा?

यह दुर्घटना उन सभी यात्रियों को श्रद्धांजलि है जो सिर्फ मंज़िल की आशा लेकर चले थे, और अब हमारी यादों का हिस्सा बन गए हैं। वे लौटकर नहीं आएँगे, लेकिन अगर हमने उनकी याद में सिस्टम को बेहतर बना दिया, तो शायद उनके जाने का कोई अर्थ रह जाएगा।

-up18News