फ़िल्म ‘मिडिल क्लास लव’: कुल बनने के इस चक्कर में फूल बनते दर्शक

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निर्देशक रत्ना सिन्हा की साल 2017 में आई फ़िल्म ‘शादी में जरूर आना’ के सत्तू और आरती शुक्ला से बॉलीवुड फिल्मों के प्रेमी आज भी परिचित हैं। यह फ़िल्म अपनी कहानी और कलाकारों के शानदार अभिनय की वजह से लोगों को काफी पसंद आई थी। रत्ना सिन्हा अपने निर्देशन में साल 2022 में एक और फ़िल्म लेकर आई हैं जिसका नाम है ‘मिडिल क्लास लव’।

मिडिल क्लास लव के निर्माता रत्ना सिन्हा के पति और ‘तुम बिन’, ‘आर्टिकल 15’, ‘थप्पड़’ जैसी फिल्मों के निर्देशक अनुभव सिन्हा हैं।

कहानी की उलझन से ऊबते दर्शक

फ़िल्म की कहानी एक मिडिल क्लास परिवार के लड़के के इर्द गिर्द घूमती है, जो एक नामी कॉलेज में सिर्फ इसलिए जाना चाहता है ताकि वहां जाकर एक सोशल मीडिया स्टार लड़की को अपना दोस्त बना सके। खूबसूरत लड़की से दोस्ती करना ही उसके लिए कूल बनना है।

कॉलेज जाने के बाद उसके सामने कुछ ऐसी परिस्थितियां बनती हैं कि वह अपने घर की आर्थिक स्थिति को भूल सिर्फ लड़कियों के बारे में सोचने लगता है।

फ़िल्म की कहानी को देख बहुत से युवा फ़िल्म की शुरुआत में मुख्य पात्र से खुद को जोड़ने लगेंगे पर कहानी को इतना उलझा दिया गया है कि बाद में दर्शक इससे ऊबने लगेंगे।

प्रीत कमानी या आयुष्मान खुराना, प्रभावित करती ईशा सिंह

फ़िल्म के मुख्य पात्र यूडी बने प्रीत कमानी को शुरुआत से देखकर ही यह लगता है कि वह आयुष्मान खुराना की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं। नायिका को प्रभावित करने की कला को पर्दे पर बेहतरी से दिखाने में उन्हें अभी वक्त लगेगा। अभिनेत्री ईशा सिंह एक दबी सी लड़की के किरदार में असर छोड़ती हैं, टेलीविजन में नाम कमाने के बाद अब वह बड़े पर्दे के लिए भी तैयार लगती हैं।

काव्या थापर एक आधुनिक लड़की के किरदार में हैं और फ़िल्म में वह खूबसूरत लगी हैं पर उनके हावभाव प्रभावित नही करते।

फ़िल्म की स्क्रिप्ट ने दो ऐसे शानदार कलाकारों को व्यर्थ किया है, जिन्हें ज्यादा मौका देकर फ़िल्म दर्शकों के दिल में उतर सकती थी।

फ़िल्म में नए कलाकारों के बीच मनोज पाहवा का अनुभव इस्तेमाल में लाया जा सकता था, पर एक पिता के किरदार में फ़िल्म में उनकी भूमिका को सीमित रख दिया गया।

इसी तरह एक उभरते हुए अच्छे कलाकार संजय बिश्नोई को भी स्क्रीन पर ज्यादा वक्त नही दिया गया है।

फ़िल्म को नीरस बनाते संवाद पर रंग भरता छायांकन

फ़िल्म को नीरस बनाने में इसके संवादों ने भी कोई कसर नही छोड़ी है। ‘कड़वी मिठाई, मेरा भाई’ संवाद फीका लगता है।

‘सचिन, सचिन तब बना। जब उसने लॉर्डस में छक्के लगाए। अगर वो गली में क्रिकेट खेलता रहता तो क्या वो गॉड ऑफ क्रिकेट बनता’ संवाद भी कोई प्रभाव नही छोड़ता।

उत्तराखंड में आजकल बहुत सी फिल्में बन रही हैं और यह फ़िल्म भी मसूरी की खूबसूरती को दर्शकों के सामने लाने में कामयाब रही हैं। मसूरी के कुछ दृश्य बहुत अच्छे लगते हैं।

संगीत की वजह से यह फ़िल्म, फ़िल्म बन सकी

फ़िल्म में संगीत हिमेश रेशमिया का है और यही इस फ़िल्म को देखने लायक बनाता है। बैकग्राउंड स्कोर को अच्छा तैयार किया गया है।

फ़िल्म में गानों की भरमार है, ‘नया प्यार नया एहसास’ सुनने में इतना खास नही है पर इसमें जयेश प्रधान की कोरियोग्राफी अच्छी लगती है।

‘टुक टुक’, ‘किसको पता था’ और ‘मांझा’ गानों में हिमेश का जादू सर चढ़कर बोला है। ‘टुक टुक’ में रेमो डिसूजा की कोरिगोग्राफी ठीक ठाक है।

‘हिप्नोटाइज़’ और ‘अपना करेंगे’ को हर कोई जल्दी से खत्म करना चाहेगा इसलिए इन पर ज्यादा न ही लिखा जाए तो अच्छा।

-हिमांशु जोशी