South China Sea को लेकर चीन न सिर्फ दक्षिणपूर्व एशिया बल्कि दुनिया के कई देशों के सामने खड़ा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यहां ऐसा क्या है कि चीन इस पर अपना दावा ठोक रहा है और दूसरे देशों को टक्कर दे रहा है।
अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर को लेकर अपना कड़ा रुख साफ कर दिया। अमेरिका ने चीन पर आरोप लगाया कि वह दक्षिण चीन सागर पर अपना नौसैनिक साम्राज्य खड़ा करना चाहता है। हालांकि अहम बात यह है कि जाहिर तौर पर विरोधी बन चुका अमेरिका ही नहीं, ब्रूने, मलेशिया, फिलिपीन, ताइवान, इंडोनेशिया और वियतनाम भी चीन के इस क्षेत्र पर दावे को चुनौती दे रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर क्या कारण है कि चीन इस क्षेत्र के लिए पूरी दुनिया से टक्कर लेने पर अड़ा है।
दक्षिण चीन सागर इसलिए खास
दरअसल, दक्षिण चीन सागर में जिस क्षेत्र पर चीन की नजर है वह खनिज और ऊर्जा संपदाओं का भंडार है। चीन का दूसरे देशों से टकराव भी कभी तेल, कभी गैस तो कभी मछलियों से भरे क्षेत्रों के आसपास होता है।
चीन एक ‘U’ शेप की ‘नाइन डैश लाइन’ के आधार पर क्षेत्र में अपना दावा ठोकता है। इसके अंतर्गत वियतनाम का एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन (EEZ), परासल टापू, स्प्रैटली टापू, ब्रूने, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलिपीन और ताइवान के EEZ भी आते हैं। हेग स्थित एक ट्राइब्यूनल ने फिलिपीन द्वारा दर्ज किए गए केस में 2016 में कहा था कि चीन का इस क्षेत्र पर कोई ऐतिहासिक अधिकार नहीं है और 1982 के UN Convention on the Law of the Sea के बाद इस लाइन को खत्म कर दिया गया था।
चीन को फर्क नहीं, अमेरिका ने घेरा
चीन को इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दिखाई दिया है और उसकी ‘आक्रामक’ गतिविधियां जारी हैं। अमेरिका ने चीन के इस क्षेत्र में दावे को कानून-विरोधी बताया था और पेइचिंग पर आरोप लगाया था कि वह दूसरों को डराने-धमकाने का अभियान चला रहा है। अमेरिका का यह भी कहना है कि ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और भारत ने साउथ चाइना सी में चीन की गतिविधियों से चिंता जताई है जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय कानून खतरे में हैं।
वियतनाम को तेल उत्पादन में घाटा
पिछले साल चीन और वियतनाम के जहाज कई महीनों तक वियतनाम के EEZ में आमने-सामने रहे जब चीन के रिसर्च वेसल ने ऐसी जगह का सीस्मिक सर्वे (Sesmic Survey) किया जिसमें वियतनाम के तेल के ब्लॉक भी आते हैं। तनावपूर्ण स्थिति की वजह से वियतनाम के तेल उत्पादन पर असर पड़ा है। साथ ही यहां काम करने वाले रूस के Rosneft और स्पेन के Repsol के ऑपरेशन पर भी असर पड़ा है। कंसल्टंसी फर्म Wood Mackenzie के रिसर्च डायरेक्टर ऐंड्रू हारवुड का कहना है, ‘हम देख रहे हैं कि वियतनाम में तेल और गैस निवेश की दिलचस्पी में कमी आई है। तनाव बढ़ने से हालात सुधरेंगे नहीं।’
मई में चीन के इसी जहाज ने मलेशिया में भी एक महीने तक डेरा डालकर रखा। यहां भी इसका ठिकाना मलेशिया की सरकारी तेल कंपनी Petronas के ड्रिलशिप के पास था। मलेशिया सरकार का कहना है कि 2016-2019 के बीच चीन ने 89 बार ऐसी गतिविधियों को अंजाम दिया है। इंडोनेशिया ने भी चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना शुरू कर दिया है। जनवरी में जब चीन के जहाज इंडोनेशिया के EEZ में नटूना टापू के पास दाखिल हुए तो जकार्ता ने चीन के राजदूत को समन किया और अपने हवाई और समुद्री पट्रोल को तैनात कर दिया। नटूना टापू नैचरल गैस और मछलियों से भरपूर है और यहां के लोगों का कहना है चीन इस पर नजरें गड़ाए है।
फिलिपीन, वियतनाम ने उठाई आवाज
वियतनाम इस साल 10 सदस्यों वाले ASEAN (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स) की अध्यक्षता कर रहा है। उसका पहले से ही SCS को लेकर चीन से विवाद चल रहा है। हनोई में हुए समिट में वियतनाम और फिलिपीन ने कोरोना वायरस की महामारी की आढ़ में अपना दबदबा कायम कर रहे चीन को लेकर चिंता जताई कि क्षेत्र में असुरक्षा बढ़ रही है।
चीन के इस महीने SCS में सैन्य अभ्यास को वियतनाम ने दक्षिणपूर्वी देशों से संबंधों के लिए खराब बताया।
फिलिपीन के विदेश मंत्री तियोडोरो लॉक्सिन ने भी कहा है कि चीन के युद्धाभ्यास का कूटनीतक या कैसे भी, कड़ा जवाब दिया जाएगा। इसके बाद राष्ट्रपति ने अमेरिका के साथ दो दशकों के लिए किए सैन्य समझौते को खत्म करने का फैसला भी टाल दिया।
-एजेंसियां