सुप्रीम कोर्ट ने 5 जजों की संवैधानिक बेंच को भेजा सेम सेक्स मैरिज का मामला

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पढ़िए कोर्ट में दोनों पक्षों ने क्या दलीलें दीं…

मामले की सुनवाई शुरू होते ही CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि हम आज इस मुद्दे पर बहस नहीं करेंगे।

कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट एन के कौल ने कहा कि इस मामले पर केंद्र सरकार का स्टैंड वही है जो हाईकोर्ट के सामने था। क्या इस मामले पर अप्रैल में सुनवाई हो सकती है?

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देश के हर नागरिक के पास प्यार करने और उसे जाहिर करने का अधिकार है। कोई भी उस अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें शादी करने की मंजूरी दे दी जाए।

स्पेशल मैरिज एक्ट में भी पुरुष और महिला की शादी की बात का जिक्र है। अगर सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दी जाती है तो स्पेशल मैरिज एक्ट बनाने की मंशा नष्ट हो जाएगी, जिसका असर पूरे समाज पर पड़ेगा।
इस पर CJI ने कहा कि समलैंगिक जोड़े की गोद ली हुई संतान का समलैंगिक होना जरूरी नहीं है।

सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के पक्ष में नहीं है केंद्र सरकार

रविवार को केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर इसका विरोध किया था। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक केंद्र ने 56 पन्नों के हलफनामे में कहा कि सेम सेक्स मैरिज भारतीय परंपरा के मुताबिक नहीं है। यह पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों के कॉन्सेप्ट से मेल नहीं खाती।

केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में समाज की वर्तमान स्थिति का भी जिक्र किया। केंद्र ने कहा- अभी के समय में समाज में कई तरह की शादियों या संबंधों को अपनाया जा रहा है। हमें इस पर आपत्ति नहीं है।

SC ने सेम सेक्स मैरिज से जुड़ी याचिकाएं अपने पास ट्रांसफर कीं

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले को लेकर दिल्ली समेत अलग-अलग हाईकोर्ट में दाखिल सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ करने का फैसला किया था। कोर्ट ने 6 जनवरी को इस मुद्दे से जुड़ी सभी याचिकाएं अपने पास ट्रांसफर कर ली थीं। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला की बेंच सोमवार को इस मामले की सुनवाई करेगी।

मेरिट के आधार पर याचिका खारिज करना उचित

हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है। इन फैसलों के आधार पर भी इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए, क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है। मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है।

कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा?

केंद्र ने कहा कि शादी की परिभाषा अपोजिट सेक्स के दो लोगों का मिलन है। इसे विवादित प्रावधानों के जरिए खराब नहीं किया जाना चाहिए।

समलैंगिक यौन संबंध अपराध की श्रेणी से बाहर

2018 में आपसी सहमति से किए गए समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाने वाले हाईकोर्ट की बेंच में जस्टिस चन्द्रचूड़ भी शामिल थे। जस्टिस चन्द्रचूड़ ने पिछले साल नवंबर में केन्द्र को इस संबंध में नोटिस जारी किया था और याचिकाओं के संबंध में सॉलिसिटर जनरल आर. वेंकटरमणी की मदद मांगी थी।

शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय बेंच ने 6 सितंबर 2018 को सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए देश में वयस्कों के बीच आपसी सहमति से निजी स्थान पर बनने वाले समलैंगिक या विपरीत जेंडर के लोगों के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।

Compiled: up18 News