आगरा: नेपाल केसरी, मानव मिलन संस्थापक डा.मणिभद्र महाराज ने कहा कि एकता में अनेकता के दर्शन ही वीतराग है। उसी में ही परम सुख की अनुभूति होती है। इसी को अपनाना चाहिए। उन्होंने यह विचार भक्तामर अनुष्ठान के दौरान मंगलवार को व्यक्त किए।
राजामंडी के जैन स्थानक में हो रहे वर्षावास के दौरान प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने आचार्य मांगतुंग द्वारा की गई आराधना, स्तुति की चर्चा की। कहा कि आचार्य मांगतुंग भगवान आदिनाथ की स्तुति करते हुए कहते हैं कि आपमें हमें विभिन्न स्वरूपों के दर्शन होते हैं। जिसने परम ज्ञान को प्राप्त कर लिया, वह बोधि ज्ञान कहलाता है। इसलिए हम आपमें भगवान बुद्ध के दर्शन भी करते हैं। आपसे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि हर व्यक्ति स्वयं बुद्ध बन कर बुद्धिदाता बने। भगवान आदिनाथ ने वीतराग बनने के लिए पुरुषार्थ किया, इसलिए हम उनमें शंकर का रूप भी देखते हैं। वे विधाता है, तो ब्रह्म भी हुए। दुनिया के श्रेष्ठ पुरुष हैं, इसलिए वे पुरुषोत्तम हैं। यानि हम भगवान आदिनाथ को महात्मा बुद्ध, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि सभी देवताओं की उपमा दे सकते है। यानि एक देव में अनेक देव के गुण विद्यमान हैं।
जैन मुनि ने कहा कि एक में अनेकता के दर्शन करना आसान नहीं है। यही ज्ञान हमें ऊंचाइयों पर ले जाता है। जिसने एकता में अनेकता को ढूंढ़ लिया, वही जीवन में सफल हो सकता है। उन्होंने कहा कि राग द्वेष में फंसा व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो सकता। सम्यक दृष्टा ही आत्म दृष्टा बन कर भगवान महावीर के पथ का अनुगामी बन सकता है।
जैन मुनि ने कहा कि आत्मा, सुख-दुख का अनुभव करती है। संयम में रहने पर ही हमें आत्म संतुष्टि प्राप्त होती है। सांसारिक सुख तो केवल हमें पीछे ढकेलने का काम करते हैं। उससे हमारे पीछ हजारों दुख आ जाते हैं। सही सुख नहीं मिल पाता।
आजकल जगह-जगह पर हो रहे भंडारों और दान पर चर्चा करते हुए जैन मुनि ने कहा कि लोग अन्नदान का ड्रामा करते हैं। जरा भी कोई बाहर का आदमी, भूखा, या भिक्षुक आ जाए तो उसे हम नहीं खिलाते। केवल अपने समाज या समूह की परवाह होती है। यह अनुचित है। अन्नदान हो या कोई दान, उसमें खुशी होनी चाहिए। उसका आकलन नहीं करना चाहिए, ना ही उसका कोई गुणगान हो। खिलाने के बाद खुशी होगी तो आत्मा को सुख प्राप्त होगा। हमारी दृष्टि सम्यक होनी चाहिए।
संप्रदायों की चर्चा करते हुए जैन मुनि ने कहा कि हम एक दूसरे की बुराई खोजते रहे, इसलिए संप्रदाय खड़े हो गए। आज भी संप्रदायों में कोई एकता नहीं है, जिससे बिखराव बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी को पराया मत समझो। जब हम यह समझ लेंगे कि सभी हमारे हैं, तो भेद, मतभेद सब खत्म हो जाएंगे।
जैन मुनि का कहना था कि धर्म एक निर्मल गंगा है। उसे हमें पावन बनाए रखना है। आत्मा मैली हो रही है। क्योंकि हम आत्मा के लिए नहीं, जो भी कुछ करते हैं शरीर के लिए करते हैं। इसलिए आत्मा को सुख नहीं मिलता। आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करके परमात्मा बनें, तभी जीवन सार्थक हो सकेगा।
संस्थापक डॉक्टर मणिभद्र मुनि,बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में मंगलवार को पच्चीसवीं गाथा का लाभ माधुरी मनीष जैन एवम रीना सुनील जैन परिवार ने लिया। नवकार मंत्र जाप की आराधना रेणु नरेश, निधि मनीष एवम रुचिका चितेश जैन परिवार ने की।
-up18news
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