भगवान परशुराम जैसा तपस्वी ना हुआ ना होगा । श्री करौली शंकर महादेव ने दिया परशुराम पर अपना वक्तव्य

Shri Karauli Shankar Gurudev celebrated the birth anniversary of Parashurama. The worship of such a great sage should be performed in every home.

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भगवान परशुराम जी की जयंती पर, श्री करौली शंकर महादेव पूर्वज मुक्ति धाम, कानपुर में उनका जन्मोत्सव बड़ी ही धूम-धाम से मनाया गया। भगवान परशुराम जी की भव्य आरती की गई एवं 56 भोग लगाया गया । पूज्य गुरुदेव श्री करौली शंकर जी ने भगवान परशुराम जी की आरती और पूजन, के बाद भगवान परशुराम जी की 501 फोटो भक्तों को वितरित की गई ताकि भगवान परशुराम जी का आदर्श व्यक्तित्व घर घर पहुँचे । उनके आदर्शों व्यक्तित्व पर गुरुदेव श्री करौली शंकर जी ने प्रकाश डालते हुए कहा की भगवान परशुराम जी उन महान अवतारों में से एक है जो चिरंजीवी हैं । उनके ऊपर आरोप लगाया गया ब्राह्मणवाद का, कहा गया कि वह क्षत्रिय विरोधी थे। हमे विचार करना चाहिए की हम उनकी बात कर रहे हैं जिनको जाति से कोई मतलब ही नहीं था। किसी से कोई लेना देना ही नहीं था। जिन्होंने मानव धर्म को ही श्रेष्ठ माना।

क्षत्रिय विरोधी नहीं थे भगवान परशुराम

भगवान भोलेनाथ के एक मात्र शिष्य जिनका नाम है भगवान परशुराम। यदि वे जातिवाद में होते तो योगेश्वर श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र भेंट स्वरूप नहीं देते । सुदर्शन चक्र भगवान श्री कृष्ण को भगवान परशुराम ने ही प्रदान किया था तो फिर कहां से यह जाति-पाति की बात आ गई? किस ब्राह्मण को उन्होंने सुदर्शन चक्र दिया? क्या भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण थे? लेकिन उनपर आरोप लगाते समय, यह कहा जाता है की वह तो क्षत्रिय विरोधी थे, ब्राह्मणवादी थे, जो की इस प्रकरण से बिलकुल असत्य सिद्ध होता है ।

शिव धनुष भी एक क्षत्रिय को भेंट में दिया

जब वह तपस्या में जा रहे थे, तो उन्होंने विचार किया की अब हमारा कार्य पूरा हो गया है, तो क्यों भगवान शंकर को उनके द्वारा दिये हुए अस्त्र-शस्त्र वापस कर दिए जाएँ । अब वह क्या ही करेंगे शिव धनुष का। इस पर भगवान भोलेनाथ ने भगवान परशुराम जी से यह कहते हुए उन्हें लौटा दिया कि वह अपना दिया हुआ कभी वापस नहीं लेते, अब आपको इन्हें जहां देना हो, जिसे देना हो आप दे सकते हैं । इस पर भगवान परशुराम जी ने वह शिव धनुष राजा जनक जी को भेंट किया, और वह वह भी एक क्षत्रिय ही थे ।

शिव जी के कहने पर सहस्त्र बाहु की कैद से रावण को छुड़ाया

एक बार रावण को सहस्त्रबाहु ने बंदी बना लिया था । भगवान शंकर ने परशुराम जी से कहा कि तुम हमारे शिष्य हो लेकिन तुमने हमें आजतक दक्षिणा नहीं दी। यह कह कर के उनसे आधी दक्षिणा माँगते हुए कहा कि रावण को सहस्त्रबाहु की कैद से छुड़ा लाओ । भगवान भोलेनाथ के कहने पर, पर उन्होंने जाकर के अकेले ही रावण को मुक्त करा लिया, वो तो वन मैन आर्मी थे, उनके बराबर कोई था ही नहीं।

महान ऋषि, तपस्वी के साथ एक महान पुत्र भगवान परशुराम

भगवान परशुराम जी एक महान ऋषि थे, तपस्वी थे, उनसे बड़ा तपस्वी आजतक धरती पर पैदा नहीं हुआ, और ना ही कभी होगा, उन्होंने सारे पिंडदान और जो पिता के मृत्यु के बाद पुत्र कर सकता है, वह सारे वैदिक कर्म-काण्ड पूरे विधि-विधान से किए, पितृ मुक्ति के लिए जो भी कर सकते थे, वह सब कुछ उन्होंने किया।

पितृ स्मृतियों के कारण किया क्षत्रिय संहार

अब यह तो नहीं कहा जा सकता, की उन्हें वैदिक कर्म-कांड का ज्ञान नहीं था, उन्हें पूरा ज्ञान था जिससे उनके पितृ तो मुक्त हो गये , लेकिन पितरों की जो स्मृतियां थी वो नहीं गई, वह ज्यों की त्यों बनी रही, पिता की मृत्यु के समय बदला लेने की आख़िरी स्मृति बनी रही ।

श्री करौली शंकर धाम का अनुसंधान

दरबार का अनुसंधान है कि पितृ की मृत्यु के समय की जो स्मृति है वो सबसे भारी होती है, बहुत मजबूत होती है, वह अगर रह गई तो फिर आप वैसे ही नाचोगे जैसी वह स्मृति थी, तो जब-जब उनके पिता की बदला लेने वाली स्मृति आगे आती थी, तब तब वो सबको गाजर मूली की तरह काट के रख देते थे, उन्हें ही नहीं पता लगता था की वह ऐसा क्यों कर रहे है? ऐसा करते करते 21 बार उन्होंने हयहय वंश के क्षत्रियों का संघार कर डाला, क्यूकी उनके पिता के शरीर पर 21 घाव थे इसलिए 21 बार संघार कर डाला । 22वी बार जब फिर से उन्होंने अपना फ़रसा उठाया तो भगवान परशुराम फिर से ऋषि जमदगिनी बन गये, और चल पड़े नरसंघार करने ।

रुद्र अवतार और विष्णु अवतार के बीच युद्ध

कुछ लोग जो हय हय वंश के क्षत्रिय थे वो जामवंत जी और हनुमान जी के पास पहुंचे और उनसे कहा की हमें बचाओ । हनुमान जी उनकी रक्षा करने के लिए निकल पड़े और परशुराम जी के पास पहुंचे और पूछा कि यह सब कब तक चलेगा, आप कब तक इस तरह संघार करते रहेंगे । परशुराम जी बोले यह तो चलते रहेगा। मेरे मार्ग से हट जाओ नहीं तुम भी मारे जाओगे, इस पर परशुराम जी और हनुमान जी का युद्ध पांच दिन लगातार चलता रहा, एक विष्णु अवतार और दूसरे रुद्र के अवतार, दोनों का युद्ध बराबर चलता रहा, आखिर में हनुमान जी ने अंतिम कोई अस्त्र चलाया और परशुराम जी बेहोश हो गए । हनुमान जी ने उनको ले जाकर पेड़ में बांध दिया।

पितृ के बदले की स्मृति थी मुख्य कारण

सूक्ष्म रूप से उनके अंदर जाकर हनुमान जी ने देखा कि उनके भीतर उनके पिता की स्मृति पड़ी थी बदले की। जब वह स्मृति आगे आती थी तो वह सबको काटने लगते थे। हनुमान जी पित्र लोक गए और वहां से उनके पित्रों को लाए और उनसे कहा कि ये तुम्हारी जो स्मृति पड़ी है इसे समेटो, उनके पित्रों ने अपनी सारी स्मृतियां बटोरी और वहां से आ गये तब भगवान परशुराम जी के दो आंसू पश्चाताप के रूप में गिरे । वह अपने पिता की मृत्यु पर रोए नहीं थे इसीलिए कहा जाता है की रोना जरूरी है, ताकि स्मृतियां नष्ट हो जायें।

दरबार में भी संकल्प के बाद पहले आँसू क्यों गिरते है?

जैसे की दरबार में आपको रुलाया जाता है, आप जब संकल्प करते हो तो आंसू गिरते हैं आपको खांसी आती है, डकारे आती है, हिचकी आती है तो यह सब स्मृतियां नष्ट होती है तो ऐसे ही जब बच्चा पैदा होता है, उसको रुलाने की कोशिश करते हैं, रो जाए जिससे की जो बची खुची स्मृति इसके पिछले जन्म की हो वो भी निकल जाये।

परशु राम भगवान ने नहीं बल्कि उनके स्मृतियों ने करवाया क्षत्रिय संहार

ऐसे ही भगवान परशुराम के दो आंसू गिरे तब वह स्मृति नष्ट हुई जो उनके पिता स्मृति थी हत्या के बदला लेने की । तब उनका जो हत्या वाला कांड था 22वी बार तब बंद हुआ । तो इससे क्या सिद्ध हुआ कि भगवान परशुराम ने कभी किसी की कोई हत्या नहीं की और न ही कोई ऋषि कभी किसी की कोई हत्या कर सकता है, वह तो परम ऋषि थे, किताबों ने  समाज को भ्रमित कर रखा है । हमे इस भ्रम से बाहर निकलना है. ग्रंथों से बाहर निकलना है यथार्थ में आना है अनुभव में आना है अनुभव में जीना है कि कोई ऋषि मुनि कभी किसी की कोई हत्या ही नहीं कर सकता, वह चींटी तो मार नहीं सकता, मनुष्यों को कैसे मार देगा।
हरि हर