चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है हनुमान जी का जन्मोत्सव। शास्त्रों के अनुसार बजरंगबली भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार हैं। हनुमान जी का जन्म धरती पर भगवान श्री राम की सहायता करने के लिए हुआ था। श्री राम के प्रिय भक्त हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नौ निधि के दाता के रूप में जाना जाता है।
हनुमान चालीसा में अष्ट सिद्धियों से संबंधित एक दोहा है- अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता। इस दोहे में जिन अष्ट सिद्धियों की बात की गई है, वह बहुत ही चमत्कारी शक्तियां हैं। इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी की सच्चे मन से उपासना करने पर वे अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियां तथा नौ प्रकार की निधियां प्रदान कर सकते हैं।
आइए जानते है पवनपुत्र के पास कौन सी चमत्कारिक अष्ट सिद्धियां हैं और उनका क्या महत्व है।
अणिमा
अणिमा सिद्धि के बल पर हनुमान जी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं। इस सिद्धि का प्रयोग हनुमान जी ने तब किया था जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। इस सिद्धि का उपयोग करके ही हनुमान जी ने पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।
महिमा
महिमा सिद्धि के बल पर हनुमान जी ने कई बार विशाल रूप धारण किया है। जब हनुमान जी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे तब बीच रास्ते में नागों की माता सुरसा ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमान जी स्वंय का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था। इसके अलावा माता सीता को श्री राम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वंय का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।
गरिमा
इस सिद्धि की मदद से हनुमान जी स्वंय का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं। वह इस सिद्धि का उपयोग हनुमान जी ने महाभारत काल में भीम के सामने किया था। जब भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था, उस समय भीम के घमंड को तोड़ने के लिए हनुमान जी ने एक वृद्ध वानर का रूप धारण करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने जब हनुमान जी की पूंछ उठाई तो वह उनकी पूंछ को नहीं उठा सके, इस प्रकार भीम का घमंड का टूट गया।
लघिमा
इस सिद्धि से बजरंगबली स्वंय का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ जा सकते हैं। जब हनुमान जी अशोक वाटिका में पहुंचे तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वाटिका में पेड़ के पत्तों में छिप गए। इन पत्तों में बैठे- बैठे ही उन्होंने माता सीता को अपना परिचय दिया था। जिसके बाद माता सीता ने हनुमान जी को उनके असली रूप में सामने प्रकट होने के लिए कहा था।
प्राप्ति
इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं आने वाले समय को देख सकते हैं। रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमान जी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु पक्षियों से बातचीत की थी। जिससे वह यह जान सके कि माता सीता इस समय में कहां पर हैं और हनुमान जी बहुत महान ज्योतिष के जानकार भी हैं,इसकी शिक्षा इनके गुरु भगवान सूर्य देव ने इन्हें प्रदान की थी। इन सबके कारण हनुमान जी ने माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।
प्राकाम्य
इसी सिद्धि की सहायता से हनुमान जी पाताल में भी जा सकते हैं। आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमान जी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। इसके साथ ही वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को धारण कर सकते हैं। रामचरितमानस के अनुसार हनुमान जी ने सुग्रीव के कहने पर ब्राह्मण का रूप धारण करके भगवान राम से भेंट की थी। प्राकाम्य सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं।
ईशित्व
इस सिद्धि के बल से हनुमान जी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं। ईशित्व के प्रभाव से हनुमान जी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा था। साथ ही इस सिद्धि से हनुमान जी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।
वशित्व
इस सिद्धि के प्रभाव से हनुमान जी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं। वशित्व के कारण हनुमान जी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर सकते हैं। हनुमान जी के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमान जी अतुलित बल के धाम हैं।
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