सन्यासी, सांसद और फिर CM… आज जन्म दिन पर इस बिरले नेता की जानिए कुछ अनसुनी दास्तां…

अन्तर्द्वन्द

अजय उर्फ योगी आदित्यनाथ के चर्चे यूपी की सीमाओं से बाहर निकल कर समूचे देश में फैल गए हैं। माफिया और पेशेवर बदमाशों के लिए वे काल के समान हैं। आज उनका जन्म दिन है, आइए जानते हैं उनके सन्यासी सांसद और फिर CM बनने की दास्तां…।

ऐसे ली दीक्षा

21 साल का एक लड़का घर से नौकरी की बात कहकर निकला। 6 महीने तक घर नहीं लौटे। वापस आए तो सिर घुटा था। दोनों कानों में कुंडल और शरीर पर शर्ट-जींस की जगह गेरुआ वस्त्र। घर पहुंचे तो दरवाजा खटखटाया। घर की मालकिन आवाज सुनकर दरवाजे पर आईं। लड़के को देखा तो आंखें खुली की खुली रह गईं। तभी सामने से लड़के ने कहा, मां, भिक्षा दीजिए। मां के मुंह से कुछ शब्द ही नहीं फूटा। आंखों से आंसू बह निकले। भिक्षा मांगने वाला लड़का कोई और नहीं यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ थे। जो महिला उन्हें देखकर रो पड़ी थीं, वह उनकी मां सावित्री देवी थीं।

6 महीने तक घर से गायब रहे, संन्यासी बनकर लौटे, वामपंथी बनने से किया था इंकार

5 जून 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी गड़वाल जिले के पंचूर गांव में आनंद सिंह बिष्ट के घर पांचवी बार एक बच्चे की किलकारी गूंजी। नाम रखा अजय सिंह बिष्ट। अजय ने 8वीं तक की पढ़ाई पास के ही ठांगर के प्राइमरी स्कूल से की। 9वीं की पढ़ाई के लिए कुछ दूर स्थित चमकोटखाल के जनता इंटर कॉलेज को चुना। 10वीं तक की पढ़ाई के बाद अजय पंचूर छोड़कर ऋषिकेश पहुंच गए। यहां भरत मंदिर इंटर कॉलेज से पढ़ाई पूरी की। कॉलेज में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (ABVP) जॉइन कर लिया था। अजय संगठन के प्रति समर्पित थे। पहले साल जमकर प्रचार किया। दूसरे साल खुद चुनाव लड़ना तय किया। संगठन से सचिव पद के लिए टिकट मांगा। पदाधिकारियों ने अगले साल चुनाव लड़ने की बात कही। अजय पढ़ाई के साथ प्रचार करते रहे। आखिरी साल संगठन ने टिकट देने से मना कर दिया। अजय को गुस्सा आ गया। उन्होंने निर्दलीय ही चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। हालांकि रिजल्ट आया तो उन्हें अरुण तिवारी ने हरा दिया था। अजय ऋषिकेश में M.Sc की पढ़ाई कर रहे थे लेकिन श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रति व्यक्तिगत झुकाव की वजह से शिक्षा भूल गए। 1993 में वह गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में आए। महंत अवैद्यनाथ से मिले। महंत ने अजय की पूरी कहानी सुनी और कहा, ‘तुम एक जन्मजात योगी हो, एक दिन तुम्हारा यहां आना निश्चित है।’ महंत इसके पहले 1990 में भी अजय से मिल चुके थे।’

मई 1993 में अजय एक बार फिर से महंत अवैद्यनाथ से मिले। एक हफ्ते तक गोरखपुर में रहे। जब लौट रहे थे तो महंत ने कहा, पूर्णकालिक शिष्य के रूप में गोरखनाथ मंदिर में शामिल हो जाइए। अजय बिना कुछ बोले मन में हजारों सवाल लेकर वापस चले गए। जुलाई 1993 में महंत अवैद्यनाथ बीमार हो गए। उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती करवाया गया। अजय को जानकारी मिली तो वह भी उन्हें देखने दिल्ली पहुंचे। इस बार महंत ने अजय पर दबाव बनाया। कहा- “मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती। मुझे एक योग्य शिष्य की जरूरत है, जिसे मैं अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सकूं। अगर ऐसा नहीं कर पाया तो हिन्दू समुदाय मुझे गलत समझेगा।”

नवंबर 1993 में अजय घर पर नौकरी करने की बात कहकर गोरखपुर चले गए। घर वाले परेशान थे। दूसरी तरफ अजय की कठिन तपस्या शुरू हो गई। 15 फरवरी 1994 को बसंत पंचमी के मौके पर महंत अवैद्यनाथ ने अजय को नाथ पंथ की दीक्षा दी। गोरखनाथ मठ का उत्तराधिकारी घोषित किया। उसी 15 फरवरी को अजय बिष्ट का नाम योगी आदित्यनाथ कर दिया गया।

माँ रह गई हतप्रभ

संन्यासी बनने के बाद अजय अब योगी आदित्यनाथ बन गए थे। 1993 में अपने गांव पंचूर आए। पहले की तरह जींस पैंट में नहीं, बल्कि गेरुआ पहनकर। सिर घुटा कर, दोनों कानों में बड़े-बड़े कुंडल और हाथ में खप्पर लेकर। जिसने भी देखा उसने योगी को पहचानने के लिए अपनी आंखें मलीं। इसलिए कि, एक बार में वह पहचान ही नहीं पाया कि यह अजय सिंह बिष्ट हैं। बताते हैं कि अजय यानी योगी अपने घर के बाहर पहुंचे और भिक्षा के लिए आवाज लगाई। घर की मालकिन आवाज सुनकर दरवाजे पर आईं तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। जहां थीं, वहीं स्थिर हो गईं। मौन। मुंह खुला तो, लेकिन शब्द नहीं फूटे। आंखों से आंसुओं की धार बह निकली। जो सत्य साक्षात सामने खड़ा था उसे देखते हुए भी यकीन नहीं हो पा रहा था। मां के सामने उनका बेटा युवा संन्यासी के भेष में खड़ा था।’

मां चुप थीं, तभी आदित्यनाथ ने कहा, ‘मां भिक्षा दीजिए’। मां ने खुद को संभाला और कहा, ‘बेटा यह क्या हाल बना रखा है, घर में क्या कमी थी जो भीख मांग रहा है?’ योगी ने कहा, ‘मां संन्यास मेरा धर्म है। एक योगी की भूख भिक्षा से ही मिटेगी। आप भिक्षा में जो कुछ देंगी, वही मेरे मनोरथ को पूरा करेगा।’ मां को बेटे के इस रूप पर अब भी यकीन नहीं हो रहा था। उन्होंने कहा, ‘बेटा तुम पहले घर के अंदर आओ।’ आदित्यनाथ ने मां से कहा, “जब तक आप भिक्षा नहीं देंगी मैं वापस नहीं जा सकता”

आदित्यनाथ ने मना कर दिया और कहा, ‘नहीं मां, मैं बिना भिक्षा लिए न तो घर के अंदर आ सकता हूं और न ही यहां से जा सकता हूं। जो कुछ भी हो वह मुझे दीजिए। इसके बाद ही मैं यहां से जाऊंगा।’ मां बेटे की जिद के आगे हार गईं। घर के अंदर गईं और थोड़े चावल और पैसे लाकर आदित्यनाथ के पात्र में डाल दिए। भिक्षा पाने के बाद आदित्यनाथ पीछे मुड़े और वापस चल दिए। आंखों में आंसू लिए मां घर के दरवाजे पर खड़े होकर अपने बेटे को जाते हुए देखती रहीं।

कठिन दौर और फिर मिली दिशा

नवंबर 1993 से 14 फरवरी 1994 तक योगी को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। वे पीछे नहीं हटे। डटे रहे और 14 फरवरी को पूर्ण संन्यासी बन गए। 28 साल पहले कपड़े की दुकान पर एक झगड़ा हुआ था तत्काल एक्शन के लिए योगी मशहूर हुए, जनता ने सांसद बनाया। छात्रों की मदद करते-करते योगी इतने मशहूर हो गए कि गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्र नेता उनसे मिलने जुलने लगे। वह पहले से ही गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी थे। मंदिर और जनता दोनों जगहों पर उनकी पैठ बढ़ती गई।

चार साल बाद, साल 1998 में महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया। असल में अवैद्यनाथ गोरखपुर लोकसभा सीट से सांसद थे। उनके राजनीति से बाहर होते ही BJP ने उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ को उसी सीट से टिकट दे दिया और 26 साल के योगी, 12वीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद बने। पहला चुनाव वह 26 हजार वोटों से जीते थे। इसके बाद 1999, 2004, 2009 और 2014 में योगी चुनाव जीतते रहे।

CM बनने की गाथा

यूपी के 2 बड़े नेता, 1 केंद्र की मंत्री लगी थीं लेकिन योगी ने पासा पलट दिया। इस कहानी के 4 किरदार हैं। पहले, तब के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य, दूसरे गाजीपुर के तत्कालीन सांसद मनोज सिन्हा, तीसरी तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और चौथे गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ। इसकी शुरुआत होती है दिसंबर 2016 से। दिल्ली की सर्दी में उत्तर प्रदेश सदन के एक कमरे में यूपी BJP अध्यक्ष केशव मौर्य को एक फोन आया। सामने वाले शख्स ने एक सर्वे के बारे में बताया, किसी TV चैनल का था। उसमें था कि अगर यूपी में BJP की सरकार बनी तो किन नेताओं को जनता CM देखना चाहेगी। सर्वे में 36% वोट के साथ केशव दूसरे नंबर पर थे। उन्हें समझ नहीं आया, उनसे आगे कौन निकल गया? थोड़े समय बाद पता चला कि पहले नंबर पर 48% वोट के साथ गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ हैं। जो उनके समझ से परे था, योगी तो कहीं सीन में थे ही नहीं, उनका नाम क्यों सर्वे में रखा गया! सर्वे में 11% वोट के साथ तीसरे नंबर पर राजनाथ सिंह और 4% वोट के साथ चौथे नंबर पर मनोज सिन्हा थे। अगली सुबह केशव BJP दफ्तर पहुंचे और तब के गृह मंत्री राजनाथ सिंह मीडिया के सामने आए। बोले कि वो यूपी के CM नहीं बनेंगे।

भाजपा ने प्रचार किया कि चुनाव के बाद CM तय होगा लेकिन मार्च 2017 में जब BJP का मेनिफेस्टो आया तो योगी की फोटो नहीं लगाई गई। फ्रंट पेज पर राजनाथ सिंह और केशव मौर्य रखे गए। योगी साइलेंटली इन चीजों को देख रहे थे। तभी एक फोन आया और सीन में सुषमा स्वराज की एंट्री हुई। 25 फरवरी 2017 की सुबह योगी फील्ड में प्रचार के लिए निकलने की तैयारी में थे। तभी एक फोन आया, उस तरफ से तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बोल रही थीं, “योगी जी आपको पार्लियामेंट्री डेलीगेशन का पार्ट बनकर विदेश जाना है।” योगी ने जवाब दिया, “6 मार्च तक यूपी में चुनाव प्रचार करना है। अभी नहीं जा सकता।” सुषमा ने फिर कहा, “6 मार्च के बाद ही जाना है।” योगी मान गए।

18 मार्च की सुबह, दिल्ली एयरपोर्ट पर भाजपा के CM पद के दो उम्मीदवार उड़ान भरने को तैयार थे। पहले, केशव मौर्य, उनके साथ प्रदेश प्रभारी ओम माथुर और संगठन मंत्री सुनील बंसल थे। दूसरे थे योगी आदित्यनाथ। उनके पास चार्टर्ड प्लेन था। साथ में बस एक सहयोगी। योगी और केशव की मुलाकात हुई। योगी ने सभी नेताओं को चार्टर्ड प्लेन से साथ चलने को कहा। सब लखनऊ एयरपोर्ट पहुंच गए। केशव जब एयरपोर्ट से बाहर आए तो उनके लिए करीब 1000 कार्यकर्ताओं की भीड़ लग गई। ‘पूरा यूपी डोला था, केशव-केशव बोला था’ के नारे लगने लगे। दूसरी तरफ योगी अपने 6-7 समर्थकों के साथ चुपचाप गाड़ी में बैठकर VVIP गेस्ट हाउस निकल गए।

फैसले की वो शाम…

18 मार्च की शाम करीब 5:30 बजे। विधायक दल की बैठक के लिए मंच सजा। NDA के 325 विधायक समेत सभी बड़े नेता लोकभवन पहुंचे। केशव मौर्य भी। सबसे आखिर में एंट्री लिए योगी आदित्यनाथ। विधायकों के बीच एक सांसद का होना कुछ लोगों को चौंका रहा था। मीटिंग खत्म हुई। दिसंबर 2016 में केशव ने जो सर्वे देखा था, वो सच हो गया। उन्हें नंबर 2 पर रखा गया। योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बन गए। 19 मार्च को उन्होंने उत्तर प्रदेश के CM पद की शपथ ली।

अखिलेश ने पहली बार सीएम योगी को बुलडोजर बाबा कहा।

यूपी में योगी की एंट्री के साथ उनके सामने कई चुनौतियां थीं। सबसे बड़ी चुनौती थी यूपी में माफियाओं का आतंक खत्म करने की। इसके लिए पांच साल में 141 से ज्यादा एनकाउंटर हुए और 13 से ज्यादा बाहुबलियों के घरों पर बुलडोजर गरजे। बीजेपी ने इसके लिए सुरक्षा, अपराध मुक्त प्रदेश जैसे टैगलाइन्स दिए।20 जनवरी को अखिलेश ने सीएम योगी पर तंज करते हुए कहा, “जो जगहों का नाम बदलते थे, आज एक अखबार ने उनका ही नाम बदल दिया। अखबार अभी गांवों में नहीं पहुंचा होगा। हम बता देते हैं, उनका नया नाम रखा है, बाबा बुलडोजर।”

योगी ने उसी बुलडोजर को भुना लिया

अखिलेश के बाबा बुलडोजर कहते ही योगी आदित्यनाथ और BJP ने बुलडोजर का बेतहाशा प्रचार शुरू किया। अगले दिन योगी ने कहा, “बुलडोजर हाईवे भी बनाता है, बाढ़ रोकने का काम भी करता है। साथ ही माफिया से अवैध कब्जे को भी मुक्त करता है।” इसी के साथ सीएम योगी ने अपने कार्यकाल में कई बड़े फैसले लिए। नतीजा ये कि 10 मार्च 2022 को 403 में से 273 सीटें भाजपा गठबंधन ने अपने नाम कर लीं। 2022 में पूर्ण बहुमत के साथ यूपी में भाजपा सरकार की दूसरी बार वापसी हुई।

1985 के बाद कोई CM दोबारा कुर्सी पर नहीं बैठा, सीएम योगी ने ये रिकॉर्ड तोड़ दिया बीजेपी के 3 सीएम हुए। कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, राम प्रकाश गुप्ता। कल्याण सिंह दो बार सीएम बने लेकिन लगातार नहीं। 37 साल के क्रम को योगी आदित्यनाथ ने तोड़ दिया। 2017 के बाद 2022 में भी सीएम बने। इकाना स्टेडियम में मंच सजा। स्टेज से आवाज आई, मैं आदित्यनाथ योगी…

-एजेंसी