जानिए: किस तरह सोशल मीडिया हमारे व्यवहार को आवेगी व्यवहार में बदल रहा

अन्तर्द्वन्द

शायद हमने कभी सोचा भी नहीं होगा, लेकिन भावावेग में आकर किसी भी सोशल मीडिया ग्रुप को छोड़ देना या जुड़ जाना, किसी को भी अपने दोस्तों की सूची से बाहर कर देना, ब्लॉक कर देना भी ऐसे ही व्यवहार में आता है। कई बार हम बिना सोचे-समझे कोई भी स्टेटस शेयर कर देते हैं या फिर अपनी निजी जानकारियां भी साझा कर देते हैं और बाद में पश्चाताप करते रहते हैं। आपका आवेगशील व्यवहार एक सामान्य-सी बातचीत को भी आक्रामक स्थिति में बदल सकता है।

ऑनलाइन या किसी मॉल में की गई इंपल्सिव शॉपिंग भी एक आवेगी निर्णय है जो हमें बिना ज़रूरत के ख़रीदारी करने पर विवश करता है। इसमें क्षणिक ख़ुशी मिलती है, लेकिन बाद में अफ़सोस भी होता है। इस तरह हम अपने परिवार के बजट को भी दांव पर लगाते हैं।

लगातार फिल्में देखना या पूरी रात जागकर वेबसीरीज़ निपटाना भी एक आवेगी व्यवहार है। किशोर बच्चों में गेमिंग की लत भी इसी के अंतर्गत आती है। इसे रोकने पर वे आक्रामक हो जाते हैं। कई बार ख़ुद को भी चोट पहुंचाते हैं। इससे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।

आवेगी व्यवहार में व्यक्ति बहुत अधीर व भावुक होता है और अक्सर यह जोखिम भरे निर्णयों को जन्म दे सकता है। आमतौर पर इस तरह के व्यवहार के बाद आपके अफ़सोस की सूची बढ़ती जाती है और आप स्वयं को विवेकहीन और कमज़ोर मानने लगते हैं। यह स्थिति मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज़ से ठीक नहीं है।

कैसे पहचानें-

आप किसी भी तरह के सकारात्मक और नकारात्मक आग्रह में अंतर नहीं कर पाते हैं यानी अच्छे-बुरे पर विचार नहीं करते हैं और बहुत जल्दी आत्मसमर्पण कर देते हैं (वह काम कर बैठते हैं या कुछ कह बैठते हैं)।

आप अक्सर संवेदना या सनसनी की तलाश में रहते हैं।

आप योजनाबद्ध ढंग से कार्य नहीं करते, बल्कि जो मन में आता है, करते रहते हैं। आपमें दृढ़ता की कमी है।

हो सकता है कि आपके मन में अनुपयोगी विचारों का चक्र चलता रहता है। काफ़ी लंबे समय से आप भावनाओं के असंतुलन से जूझ रहे हों या किसी तरह के दबाव या तनाव में हों। ऐसे में आवेगी व्यवहार के हावी होने की संभावना अधिक होती है।

उबरने के लिए अभ्यास करें

इंपल्सिव बिहेवियर पर तुरंत रोक लगा पाना आसान नहीं है। यदि यह आपकी आदत हो गई है, तो नियमित रूप से अपनी सोच और कार्यों पर ग़ौर करने की दरकार होती है।

तर्कसंगत सोच का अभ्यास करें। इस बार ख़रीद लेता हूं, एक बार खाने से क्या होता है, जैसे विचार आएं तो तुरंत सतर्क हो जाएं। यह जान लें कि नियंत्रण की ज़रूरत केवल बड़े मामलों में ही नहीं होती, छोटे-छोटे मामले भी आपका आत्मविश्वास बढ़ाते हैं कि मैं अपने आवेग/आवेश पर क़ाबू कर सकता हूं।

कोई भी कार्य करने से पूर्व उसके अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक परिणामों के बारे में अवश्य विचार करें। जानें कि किन परिस्थितियों में ऐसा व्यवहार करने की संभावना अधिक होती है।

व्यवहार में पुनरावृत्ति और अति को लेकर सतर्क रहें (जैसे, लगातार मोबाइल चलाना, रातभर टीवी देखना)। आत्मनियंत्रण का अभ्यास करें। भावनात्मक एवं व्यावहारिक संतुलन बनाएं।

अपराधबोध की भावना से ख़ुद को मुक्त करें। आत्मविश्वास बढ़ाएं। एकाग्रता का अभ्यास करें। पहले से जो काम या गतिविधि आपने सोच रखी है, उसी पर टिके रहने का प्रयास करें। छोटे लक्ष्य निर्धारित करें।

त्वरित निर्णय लेने की परिस्थिति में किसी विश्वसनीय की सहायता लेने से न हिचकें। इन अभ्यासों से ख़ुद में आए परिवर्तन का मूल्यांकन करें।

दरअसल, आत्मनियंत्रण भी मांसपेशी के विकास की तरह होता है। आपका सतत प्रयास और अभ्यास आवेगों को नियंत्रित रखने में सहायक होगा।

– एजेंसी