देवालय में दर्शन करने की अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से उचित पद्धति

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हिन्दू धर्म में बताए गए प्रत्येक कृति को योग्य रीति से करने पर हमें आध्यात्मिक रूप से लाभ निश्चय ही मिलता है। आज के लेख में हम “देवालय में दर्शन करने की अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से उचित पद्धति ” समझ कर लेंगे। इन पद्धतियों में सबसे पहले देवता के दर्शन लेने से पूर्व हमें निम्नलिखित कृतियां करनी चाहिए।

देवता के दर्शन लेने से पूर्व की कृति

– सर्व प्रथम जूते चप्पल देवालय के बाहर संभवतः अपनी बाईं ओर उतारना चाहिए उसके उपरांत यदि पैर धोने की सुविधा हो तो धोकर, “अपवित्रः पवित्रो वा” बोलते हुए स्वयं पर तीन बार पानी छिड़कें। उसके उपरांत देवालय के प्रांगण से कलश को नमस्कार करें तथा देवालय की ओर बढ़ते हुए भी नमस्कार की मुद्रा में हों। देवालय की सीढियाँ चढ़ते हुए दाएं हाथ की उँगलियों से प्रथम सीढ़ी को स्पर्श कर हाथ भ्रूमध्य पर लगाएं। देवालय में प्रवेश करने से पूर्व प्रवेश द्वार को नमस्कार करें।

देवता के दर्शन कैसे करें ?

देवालय में दर्शन करने हेतु देवालय में अत्यंत धीमे स्वर में घंटा बजाएं। देवता की मूर्ति के समक्ष विद्यमान कछुए के (शिवजी के मंदिर में नंदी की ) एक ओर खड़े होकर हाथ जोड़कर दर्शन करें। इस समय देवता के चरणों पर दृष्टि टिकाकर रखें । तदुपरांत देवता की छाती पर मन एकाग्र करें एवं अंत में देवता के नेत्रों की ओर देख कर उनके रूप को अपनी आँखों में संजोएं। देवता को फूल अर्पित करते समय वे फूल देवता पर फेंकें नहीं, उनके चरणों में चढ़ाएं। मूर्ति यदि दूर हो तो सर्व सामग्री सामने रखी थाली में अर्पित करें.

इसके उपरांत देवता की परिक्रमा करें। सर्व प्रथम देवता से प्रार्थना करें। हाथ जोड़कर, भावपूर्ण नामजप करते हुए माध्यम गति से परिक्रमा लगाएं। ऐसा करते समय गर्भगृह को स्पर्श न करें। परिक्रमा लगाते हुए, देवता की पीठ की ओर पहुँचने पर रुकें एवं देवता को नमस्कार करें। संभव हो तो देवता की परिक्रमा सम संख्या में (उदा. 2,4,6 …. ) एवं देवी की विषम संख्या में (उदा. 1,3,5 ….. ) लगाएं। प्रत्येक परिक्रमा के उपरांत रूककर देवता को नमस्कार करें।

परिक्रमा के उपरांत शरणागत भाव से देवता को नमस्कार एवं प्रार्थना करें। दाएं हाथ में लिए गए तीर्थ का प्राशन कर उसी हाथ की मध्य उंगली एवं अनामिका के सिरों से हथेली को स्पर्श कर दोनों उंगलियां आँखों को लगाएं एवं मस्तक से सिर की ओर ऊपर की दिशा में घुमाएं। देवालय में बैठकर कुछ समय के लिए नामजप करें एवं संभव हो तो देवालय में बैठकर ही प्रसाद ग्रहण करें। देवालय से निकलते समय पुनः प्रार्थना करें। प्रांगण में खड़े होकर देवालय के कलश को नमस्कार करें।

साष्टांग नमस्कार करना

दोनों हाथ छाती से जोड़कर कटी से (कमर से) झुकें एवं तदुपरांत औंधे होकर दोनों हाथ भूमि पर टिकाएं। प्रथम दायां, फिर बायां पैर पीछे तानकर सीधा लम्बा करें। कोहनियां मोड़कर इस प्रकार लेटें कि सर, छाती, हाथ, घुटने एवं पैरों की उंगलियां भूमि से साथ जाएं। आँखें मूँद लें। मन से नमस्कार करें। मुख से नमस्कार का उच्चारण करें। खड़े होकर छाती से हाथ जोड़कर भावपूर्ण नमस्कार करें।

देवता को नमस्कार करना

साष्टांग नमस्कार करना संभव न हो, तब हाथ जोड़कर नमस्कार करें। दोनों हथेलियों को एक दूसरे से सटाकर हाथ जोड़ें। हाथ की उंगलिया जुडी हुई परन्तु अंगूठे से दूर रखें। गर्दन एवं पीठ कुछ आगे झुककर अंगूठे भ्रू मध्य पर टिकाएं। कुछ समय मन ईश्वर चरणो में एकाग्र करें। तत्पश्चात जुड़े हुए हाथ छाती के मध्य भाग पर टिकाकर कलाइयों को कुछ समय के लिए सटाए रखें। तदुपरांत नीचे लाएं।

देवालय में शांति बनाए रखने का महत्व

देवता से सात्त्विक तरंगें प्रक्षेपित होती हैं। शोरगुल एवं हड़बड़ी से रजोगुणी नादतरंगें उत्पन्न होती है। ये तरंगें देवता की तरंगों को बाधित करती हैं। इससे श्रद्धालुओं को अल्प सात्विकता मिलती है। देवालय में शांति हो तो एकाग्रता से देवता के दर्शन कर मन में शांति अनुभव कर सकते हैं , कुछ श्रद्धालुओं का वहां ध्यान भी लग सकता है। कोलाहल के कारण मंदिर का चैतन्य भी घटता है।

देवालय की सात्विकता बढ़ाएं देवालय में सामूहिक नाम जप एवं आरती तथा यज्ञविधि एवं धर्मशिक्षण देनेवाले सत्संग आरम्भ करें। त्यौहार, विधि, सोलह संस्कार, देवतापूजन, नामजप आदि विषयक शास्त्र बताने वाले फलक देवालय में लगाएं। देवालय में आर्केस्ट्रा जैसे मनोरंजक तथा सामाजिक एवं राजकीय कार्यक्रमों का आयोजन न करें। कार्यक्रमों का उद्घाटन भ्रष्ट राज्यकर्ता एवं अभिनेताओं की अपेक्षा संत अथवा उन्नत साधकों द्वारा करवाएं।

संदर्भ : सनातन-संकलित ग्रंथ ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ?’

कु. कृतिका खत्री
सनातन संस्था, दिल्ली