अक्सर देखा जाता है कि मां बनने के बाद कुछ महिलाओं में चिड़चिड़ापन आ जाता है। छोटी-छोटी बात पर भी घर में विवाद होने लगता है। यूं तो देखने में यह आम समस्या है लेकिन मेडिकल फील्ड में इसे Postnatal Depression कहा जाता है। डॉक्टर्स की मानें तो यह डिप्रेशन सेहत को काफी नुकसान पहुंचा सकता है।
क्या है बीमारी
बच्चे के जन्म के बाद मां के शरीर में कई बदलाव आते हैं। जैसे- शरीर में हार्मोन्स के लेवल में चेंज, तनाव महसूस करना, नींद पूरी न होना आदि। इसके अलावा डर, अत्याधिक भावुक होना, चिड़चिड़ापन और मनोदशा में बदलाव भी बच्चे के जन्म के बाद सामान्य बात है लेकिन कुछ मांओं में यह समस्या बच्चा होने के कई महीने बाद तक जारी रहती है। इस स्थिति को पोस्टपार्टम या Postnatal Depression कहा जाता है। ये वो डिप्रेशन है, जिसका इलाज न किया जाए, तो कई हफ्तों या महीनों तक दर्द और तकलीफ हो सकती है।
और भी बीमारियों का असर
डॉक्टर्स के मुताबिक, बच्चे के जन्म के बाद सिर्फ पोस्टपार्टम डिप्रेशन ही नहीं होता बल्कि इसके साथ ही पोस्टपार्टम फ्लू और साइकोसिस भी असर डालते हैं। पोस्टपार्टम फ्लू थोड़े समय ही रहता है, जबकि सबसे कम मामले साइकोसिस के होते हैं। ऐसे पैरंट्स को पोस्टपार्टम डिप्रेशन का खतरा ज्यादा होता है, जिनके परिवार में आनुवंशिक रूप से यह समस्या होती है यानी आपके माता पिता को यह परेशानी रही है, तो आपको भी हो सकती है।
बीमारी के लक्षण
थकान महसूस होना, खालीपन, दुखी होना या आंसू आना, आत्मविश्वास खोना, अपराधबोध की भावना, शर्म महसूस करना, खुद को नाकाम मानना, उलझन में होना या घबराहट, अपने बच्चे के लिए खतरा महसूस करना, अकेलेपन या बाहर निकलने का डर, सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी खो देना, बहुत सोना या बिल्कुल ना सोना, बहुत खाना या बिल्कुल ना खाना, ऊर्जा की कमी महसूस करना, अपनी देखभाल सही से न करना, स्वास्थ्य में साफ सफाई का ध्यान ना रखना, स्पष्ट सोच ना पाना, निर्णय लेने में मुश्किल, जिम्मेदारियों से दूर भागना।
तो इसलिए होती है परेशानी
डिलीवरी के बाद हार्मोनल चेंजेस में गड़बड़ी होने पर ऐस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन और कोर्टि सोलहार्मोन में गिरावट होती है। गर्भावस्था से पहले किसी तरह की मानसिक बीमारी से पीड़ित होने पर भी यह परेशानी हो सकती है। इसके अलावा अगर परिवार में किसी को डिप्रेशन की शिकायत हो, कोई मानसिक बीमारी हो, पति पत्नी का एक दूसरे से दूरी महसूस करना, करियर खत्म होने का डर या तनाव, मातृत्व की जिम्मेदारी, दिनचर्या में बदलाव, शारीरिक बदलाव जैसे- स्ट्रेच मार्क्स और वजन का बढ़ना- ये ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से नई-नई मां बनी महिला तनाव महसूस करती है।
यूं कर सकती हैं बचाव
डॉक्टर्स के मुताबिक चिड़चिड़ाहट में बच्चे की देखभाल करना समझदारी नहीं है, बल्कि इस दौरान खुद के बारे में सोचना भी जरूरी है। अगर आप खुश रहेंगी, तभी बच्चे का भी ध्यान रख पाएंगी।
अपने खान पान की अनदेखी न करें। हरी सब्जियां, अंडे, चिकन आदि खाएं और चीनी, तेल और फैट से दूर रहें।
गर्भावस्था के समय आए स्ट्रेच मार्क्स् अक्सर डिप्रेशन का कारण बनते हैं। स्ट्रेच मार्क्स को हटाने के तरीकों पर काम करने की कोशिश करें।
बच्चे के जन्म के बाद आपकी जिंदगी में आए बदलावों को आपका पार्टनर बेहतर तरीके से समझ सके, यह भी जरूरी है।
मन में जो भी उधेड़बुन है, उसे एक दूसरे के साथ शेयर करें। पार्टनर को अपनी दिक्कतें बताएं और उनसे समस्या के समाधान पर बात करें।
अगर जरूरत महसूस हो तो शुरुआत के कुछ महीने बच्चे के पालन-पोषण के लिए किसी से मदद लें। नाते-रिश्तेदारों से मदद लेने में कोई बुराई नहीं है।
ये हैं उपचार
काउंसलिंगः मनोवैज्ञानिक या अन्य मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल के साथ काउंसलिंग के माध्यम से आप अपनी भावनाओं का सामना कर समस्याओं का समाधान और यथार्थवादी लक्ष्यों को निर्धारित करने के लिए बेहतर तरीके पा सकते हैं। कभी-कभी फैमिली या रिलेशनशिप थेरपी भी मदद करती है।
ऐंटीडिप्रेसेंटः ऐंटीडिप्रेसेंट पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लिए एक सिद्ध उपचार है। यदि आप स्तनपान करवा रही हैं, तो यह जानना जरूरी है कि आप अपने मन से कोई भी दवा नहीं ले सकती हैं क्योंकि मां के दूध में इसका असर होता है जो सीधे बच्चे पर पड़ता है।
हार्मोनल थेरपी: यदि पहली डिलवरी के दौरान किसी महिला को पोस्टपार्टम डिप्रेशन जैसी दिक्कतें हुई हों, तो अगली डिलवरी के वक्त इसकी जानकारी डॉक्टर को देना जरूरी है। उससे कुछ न छिपाएं। हार्मोनल थेरपी के जरिए भी हार्मोनल इमबैलेंस को ठीक किया जा सकता है।
-एजेंसी